रंगों की बहार आई है,
पर दिल पे अंधेरा छाया है।
गली-गली खुशियाँ बिखरी हैं,
मगर मेरी मन्जिल खोई है।
अबीर-गुलाल उड़ता है,
हर चेहरे पर मुस्कान है।
मगर मेरी आँखों में सपने,
बेरोजगारी के मैदान में खोए हैं।
दोस्तों के संग खेलें होली,
यही सपना मन में पलता है।
पर रोज़गार की तलाश में,
मेरी ज़िन्दगी अधूरी रह जाती है।
रंगों की ये रंगीनियाँ,
मुझे बेरंग सी लगती हैं।
जब तक हाथ में न हो काम,
तब तक ये होली कैसी?
देखो न ये बेरोजगार नौजवान,
ख्वाबों से भरा हुआ है।
बस एक मौका चाहिए उसे,
रंग बिखेरने को अपनी होली में।
जब तक न मिलेगा रोज़गार,
तब तक ये दिल उदास रहेगा।
होली के रंग फीके पड़ेंगे,
जब तक हाथ में काम न होगा।
(एक बेरोजगार नौजवान की आवाज़)