गांव में महाशिवरात्रि की धूम
गांव में महाशिवरात्रि का उत्सव बड़े धूमधाम से मनाया जा रहा था। इस बार झांकी कुछ खास थी। पूरे बाजार में भगवान शिव, माता पार्वती और अन्य देवी-देवताओं की सुंदर झांकियां निकाली जा रही थीं।
मिलन की पहली झलक
राजू, जो अपनी ठरकी हरकतों के लिए मशहूर था, दोस्तों के साथ झांकी देखने आया था। जैसे ही उसने माता पार्वती का किरदार निभा रही लड़की को देखा, उसकी आंखें फटी की फटी रह गईं। सफेद-लाल साड़ी, माथे पर बड़ी बिंदी, हाथ में कमल का फूल और चेहरे पर दिव्य मुस्कान—राजू को ऐसा लगा जैसे साक्षात माता पार्वती धरती पर उतर आई हों।
"भाई, ये कौन है?" राजू ने अपने दोस्त पप्पू से पूछा।
"पता नहीं रे, लेकिन दिखने में तो गजब की सुंदर है!" पप्पू बोला।
इश्क़ भी अजीब सौदा है,
जिसे चाहिए होता है, उसी से सौदा करता है।
झांकी के पीछे-पीछे
राजू का मन झांकी में कम और उस लड़की पर ज्यादा था। झांकी जिधर जाती, वह उधर-उधर घूमता। भगवान शिव बने लड़के को देखकर जलन हो रही थी। "ये कैसे शिव बने बैठा है! माता पार्वती के साथ मजे ले रहा है!"
झांकी आगे बढ़ी, तो राजू भीड़ से धक्का-मुक्की करता हुआ और करीब जाने की कोशिश करने लगा। आखिर झांकी मंदिर प्रांगण में पहुंची और समाप्त हो गई। लड़की ने अपनी पोशाक ठीक की और जाने लगी।
मिलन की घड़ी
राजू ने हिम्मत जुटाई और आगे बढ़कर बोला, "माफ करना, आप कौन हैं?"
लड़की हंसी और बोली, "मुझे कोई माता पार्वती समझकर तो नहीं बोल रहे?"
"अरे नहीं, मैं तो... मेरा मतलब... आप बहुत सुंदर लग रही थीं!"
लड़की हंस पड़ी। "तो पूरे मेले में बस मैं ही सुंदर दिखी?"
"सच कहूं तो हां।"
तू पार्वती है या कोई अप्सरा,
मेरा दिल तुझ पर ही ठहरा।
"तो फिर?" लड़की ने आंखें घुमाई।
"तो फिर... अगर आप बुरा न मानें तो हम दोस्त बन सकते हैं?"
लड़की मुस्कुराई और बोली, "ठीक है, लेकिन दोस्ती में ठरक नहीं चलेगी!"
राजू ने सीना चौड़ा किया, "कसम से, आज से ठरकीबाजी बंद!"
अब क्या होगा?
राजू को ऐसा लगा जैसे उसे पूरी दुनिया मिल गई हो। अब उसे नेहा से दोस्ती आगे बढ़ानी थी, लेकिन क्या वह अपनी ठरकी आदतों को छोड़ पाएगा? क्या नेहा उसे दिल से स्वीकार करेगी? या फिर यह केवल एक तरफा मोहब्बत बनकर रह जाएगी?
इश्क़ वो नहीं जो लफ्जों से बयां हो,
इश्क़ वो है जो आँखों से समझा जाए।
सच्चा प्यार या ठरकीबाजी?
राजू को उस दिन के बाद किसी चीज़ की भूख-प्यास नहीं रही। पूरे गाँव में उसका दिमाग सिर्फ एक ही नाम दोहरा रहा था—नेहा! हालाँकि, उसका असली नाम क्या था, कहाँ रहती थी, ये सब जानने की उसे ज़रा भी सुध नहीं थी।
इश्क़ में भूख-प्यास कहाँ लगती है,
दिल तो बस एक नाम दोहराता रहता है।
राजू का हाल ऐसा हो गया था कि जहाँ भी लाल बॉर्डर वाली सफेद साड़ी दिखती, वहीं उसे अपनी पार्वती नजर आती। मंदिर में, हाट-बाजार में, यहाँ तक कि खेतों में भी अगर कोई लड़की लाल चूड़ियाँ पहने दिखती, तो वह दौड़कर पास जाता और फिर मायूस होकर लौट आता।
"भाई, अब तो हद हो गई!" पप्पू झुंझलाया, "उसका असली नाम, घर-गाँव कुछ तो पता कर!"
राजू ने सिर खुजा कर कहा, "अबे, नाम में क्या रखा है! प्यार दिल से होता है!"
नाम से नहीं, इंसान की फितरत से इश्क़ होता है,
पर जब दिल लगे तो फिर नाम भी प्यारा लगता है।
"तो क्या पूरी जिंदगी उसे 'झांकी वाली पार्वती' ही बुलाएगा?" पप्पू ने ताना मारा।
राजू को झटका लगा। "सच में, अगर दोबारा मिली तो क्या कहेगा?" तभी उसे याद आया कि उसने आखिरी बार लड़की को मंदिर की तरफ जाते देखा था।
मंदिर में मुलाकात
राजू अगले दिन तड़के मंदिर पहुँच गया। वहाँ फूल चढ़ाते-चढ़ाते हर लड़की का चेहरा गौर से देखने लगा। लेकिन उसकी पार्वती कहीं नहीं दिखी। वह मायूस होकर मंदिर के द्वार पर बैठ गया।
तभी पीछे से एक मीठी आवाज़ आई, "तुम यहाँ क्या कर रहे हो?"
राजू मुड़ा तो सामने वही लड़की खड़ी थी! आज साड़ी की जगह उसने गुलाबी सूट पहना था, लेकिन चेहरा वही, मुस्कान वही!
"मैं... मैं तो बस... भगवान से प्रार्थना करने आया था!" राजू लड़खड़ा गया।
प्यार का हाल मत पूछो जनाब,
अब तो मंदिर भी बहाना बन गया है।
"सच में? या फिर मुझे ढूँढ़ने आए थे?" लड़की ने शरारती मुस्कान दी।
राजू की चोरी पकड़ी गई। वह हकलाने लगा, "अरे नहीं... मतलब हाँ... मतलब, वो..."
लड़की हँस पड़ी, "मेरा नाम जानना चाहोगे या हमेशा 'झांकी वाली पार्वती' ही कहते रहोगे?"
"बिल्कुल! नाम क्या है?"
"नेहा," लड़की ने हल्की मुस्कान के साथ कहा।
नाम छोटा हो या बड़ा,
अगर दिल से जुड़ जाए तो सबसे खास बन जाता है।
अब क्या होगा?
राजू को ऐसा लगा जैसे उसे पूरी दुनिया मिल गई हो। अब उसे नेहा से दोस्ती आगे बढ़ानी थी, लेकिन क्या वह अपनी ठरकी आदतों को छोड़ पाएगा? क्या नेहा उसे दिल से स्वीकार करेगी? या फिर यह केवल एक तरफा मोहब्बत बनकर रह जाएगी?
इश्क़ की राहें आसान नहीं होतीं,
पर जो सच्चे हों, वो मंज़िल तक पहुँच ही जाते हैं।
नेहा से दोस्ती की पहली परीक्षा
नेहा का नाम जानने के बाद राजू की दुनिया ही बदल गई। अब तो वह दिन-रात बस "नेहा... नेहा... नेहा" ही बड़बड़ाता रहता। घर में माँ पूछती,
"बेटा, खाना खाएगा?" तो वह जवाब देता,
"नेहा खाएगी तो मैं भी खा लूंगा!"
इश्क़ में भूख-प्यास कहाँ लगती है,
दिल तो बस उसका नाम रटता रहता है।
अगले दिन राजू बड़े रोमांटिक मूड में मंदिर पहुँचा। नेहा वहीं बैठी थी, आरती के बाद प्रसाद बाँट रही थी। राजू ने सोचा, "बस आज तो लाइन मार ही दूँगा!"
जैसे ही उसने नेहा को देखा, तुरंत जाकर बोला,
"नेहा, तुम सच में पार्वती जैसी लगती हो!"
नेहा मुस्कुराई, "अच्छा? और तुम?"
"मैं तो शिव बन ही सकता हूँ तुम्हारे लिए!" राजू ने बाल झटकते हुए कहा।
नेहा ने आँखें घुमाई, "शिव बनने के लिए त्याग और तपस्या करनी पड़ती है, और तुम तो ठरकी हो!"
इश्क़ वो नहीं जो लफ्जों से जताया जाए,
इश्क़ वो है जो नजरों से बयां हो जाए।
राजू के दिल पर साँप लोट गया। "अबे, ये तो उल्टा insult कर दी!"
पप्पू गुरु का ज्ञान
बदनाम ठरकी होने के कारण राजू की छवि पहले से ही खराब थी। उसने अपनी इज्जत बचाने के लिए दोस्त पप्पू से सलाह ली।
"भाई, अब क्या करूँ? वो मुझे ठरकी समझ रही है!"
पप्पू ने गहरी सोच में माथा खुजाया और कहा,
"भाई, अगर सच में उसे पाना है, तो ठरकीबाजी छोड़नी पड़ेगी!"
"लेकिन..." राजू को मानना मुश्किल लग रहा था।
"कोई लेकिन-वेकिन नहीं! शिव बनने के लिए पहले आदमी बन!"
सच्चा इश्क़ वो है जो इंसान को बेहतर बना दे,
वरना मोहब्बत के नाम पर खेल तो बहुत चलते हैं।
राजू को समझ आ गया कि उसे अपनी छवि बदलनी होगी। अब वह सच में सुधरने का प्लान बनाने लगा।
राजू का सुधार अभियान
राजू ने तय कर लिया कि अब से कोई छेड़खानी नहीं, कोई फालतू कमेंट नहीं, और सबसे बड़ी बात- नेहा से इज्जत के साथ दोस्ती!
अगले दिन जब वह नेहा से मिला, तो उसने बहुत शालीनता से कहा,
"नेहा, क्या हम दोस्त बन सकते हैं? बिना किसी मजाक के, बिना किसी ठरकीबाजी के?"
नेहा ने उसे गौर से देखा और फिर मुस्कुराई,
"अगर सच में बदल सकते हो, तो हाँ!"
मोहब्बत तब खूबसूरत लगती है,
जब इज्जत उसकी बुनियाद बन जाए।
राजू के दिल में जैसे घंटियाँ बज उठीं। लेकिन क्या वह वाकई खुद को बदल पाएगा? या फिर उसकी ठरकी आदतें फिर से बाहर आ जाएँगी?
नेहा की परीक्षा
अब पूरा गाँव राजू की तब्दीली की चर्चा कर रहा था। पहले जो लड़कियाँ उसे देखकर रास्ता बदल लेती थीं, अब उससे बिना डरे बात करने लगीं। लेकिन नेहा अब भी उस पर पूरा भरोसा नहीं कर पा रही थी।
इश्क़ में यकीन जरूरी है,
वरना अधूरी मोहब्बतें किसे पसंद हैं?
नेहा सोच रही थी, "अचानक इतना बदलाव? ये सच में बदल गया है या सिर्फ दिखावा कर रहा है?"
गाँव की पंचायत में तमाशा
एक दिन गाँव की चौपाल में कुछ बुजुर्ग बैठे थे। पप्पू ने मज़ाक में कहा,
"अबे, राजू को देखो! पहले ठरकी नंबर वन था, अब संत बना घूम रहा है!"
राजू शरमा कर बोला,
"भाई, प्यार इंसान को बदल देता है!"
इतना सुनते ही गाँव के बुजुर्ग भड़क गए।
"कौन है वो लड़की?"
पंचायत के मुखिया ने पूछा, "बता बेटा, किसका दिल लूटकर हमें ये दिन दिखा दिया?"
इश्क़ अगर सच्चा हो,
तो पूरी दुनिया भी उसका गवाह बन जाती है।
राजू को लगा कि कहीं नेहा का नाम लेने से उसकी बदनामी न हो जाए। उसने झट से कह दिया,
"मैंने अब ठरकीबाजी छोड़ दी है, बस इतना ही जानिए!"
गाँववालों ने सोचा कि शायद सच में राजू सुधर गया है।
नेहा का दिल पिघलना शुरू
इधर नेहा भी धीरे-धीरे राजू की सच्चाई पर यकीन करने लगी थी। उसे अब राजू पहले जैसा नहीं लगता था।
एक दिन उसने खुद ही पूछ लिया,
"तुम सच में बदल गए हो, या सिर्फ दिखावा कर रहे हो?"
बदलाव तब ही मायने रखता है,
जब वो दिल से किया जाए, किसी के लिए नहीं।
राजू ने गंभीरता से जवाब दिया,
"नेहा, अगर तुम कहो तो सारी जिंदगी बदल सकता हूँ!"
नेहा मुस्कुराई, लेकिन उसने कुछ नहीं कहा।
अब क्या होगा?
राजू सही राह पर था, मगर क्या नेहा उसे सच में अपना दिल देगी? या फिर यह बदलाव सिर्फ दिखावा था?
इश्क़ की राहें आसान नहीं होतीं,
पर जो सच्चे हों, वो मंज़िल तक पहुँच ही जाते हैं।
नेहा की चुप्पी और राजू की बेचैनी
अब तो गाँव में हर कोई राजू की बदलती छवि पर चर्चा कर रहा था। लेकिन राजू के दिल में एक ही सवाल घूम रहा था—क्या नेहा मुझ पर भरोसा करेगी?
इश्क़ में सब्र रखो,
अगर मोहब्बत सच्ची है तो मंज़िल मिलेगी ही।
नेहा अब भी पूरी तरह से राजू को परख रही थी। वो उसे देखकर मुस्कुराती, लेकिन कुछ बोलती नहीं थी।
एक दिन मंदिर में आरती के बाद राजू ने हिम्मत करके पूछ लिया,
"नेहा, अब तो भरोसा हो गया न कि मैं बदल चुका हूँ?"
नेहा ने हल्की मुस्कान दी,
"बदलना आसान है, लेकिन बदले रहना मुश्किल। अगर तुम सच में बदल गए हो, तो वक्त खुद साबित कर देगा।"
वक्त से बड़ा इम्तिहान कोई नहीं,
जो सच्चा होता है, वही इसमें पास होता है।
सच्चे प्यार की परीक्षा
गाँव में नवरात्रि का उत्सव शुरू हो गया था। हर कोई गरबा और डांडिया की तैयारियों में जुटा था। नेहा भी अपनी सहेलियों के साथ गरबा पंडाल में आई। राजू दूर से उसे देखकर बस मुस्कुराता रहा, लेकिन उसने कोई छेड़खानी नहीं की, न ही जबरदस्ती पास जाने की कोशिश की।
नेहा ने उसे ध्यान से देखा। उसके मन में सवाल उठा,
"पहले होता तो अब तक कोई फ़ालतू हरकत कर चुका होता, मगर आज बस दूर खड़ा मुस्कुरा रहा है?"
अचानक पंडाल में हलचल मच गई!
गाँव का ही एक बदमाश शिवा गुंडा जबरदस्ती एक लड़की का हाथ पकड़कर उसे खींचने लगा। लड़की रोने लगी, लेकिन कोई कुछ नहीं कर रहा था।
राजू से रहा नहीं गया। वह तुरंत आगे बढ़ा और गरज कर बोला,
"छोड़ उसका हाथ, वरना अंजाम बुरा होगा!"
शिवा हँस पड़ा,
"अबे राजू, तू तो खुद बड़ा छेड़खानी करता था! आज हमें रोक रहा है?"
राजू ने गुस्से से कहा,
"पहले गलत करता था, अब सही का साथ दे रहा हूँ!"
जब मोहब्बत सच्ची हो,
तो इंसान सही-गलत का फ़र्क समझ जाता है।
राजू ने शिवा को जोर से धक्का दिया और लड़की को बचा लिया। गाँववालों ने भी राजू का साथ दिया और शिवा को पंडाल से बाहर निकाल दिया।
नेहा का दिल पिघल गया
ये सब देखकर नेहा की आँखों में चमक आ गई। अब उसे यकीन हो गया कि राजू सच में बदल चुका है।
गरबा खत्म होने के बाद जब राजू मंदिर की तरफ जा रहा था, तभी पीछे से नेहा ने उसे रोक लिया।
राजू चौंका, "क्या हुआ?"
नेहा हल्की मुस्कान के साथ बोली,
"अब तुम शिव बनने के लायक हो गए!"
इश्क़ में जब यकीन जुड़ जाए,
तो हर ठरकी भी सच्चा आशिक़ बन जाता है।
राजू का दिल जोरो-जोरो से धड़कने लगा।
"मतलब?"
नेहा शरमा गई,
"मतलब ये कि... हाँ, अब हम दोस्त से कुछ ज्यादा बन सकते हैं!"
सच्ची मोहब्बत हमेशा बदलती नहीं,
बल्कि इंसान को बेहतर बना देती है।
राजू को लगा जैसे पूरी दुनिया उसकी झोली में आ गई हो! उसने आसमान की तरफ देखा और जोर से बोला,
"भोलेनाथ की जय हो!"