कहानी
सोनू एक छोटे गाँव से आया एक युवा था, जिसने अपनी पढ़ाई पूरी करने के बाद बड़े सपने देखे थे। उसके माता-पिता ने अपने खेत गिरवी रखकर उसकी पढ़ाई करवाई थी, यह सोचकर कि एक दिन वह सरकारी नौकरी पाएगा और उनका नाम रोशन करेगा। पढ़ाई में होशियार सोनू ने बड़ी मेहनत से अपनी डिग्री पूरी की और उम्मीद थी कि अब उसे एक अच्छी नौकरी मिल जाएगी।
शुरुआत में जब वह गाँव लौटा, तो हर कोई उसकी तारीफ कर रहा था। चाचा-ताऊ, पड़ोसी, दोस्त- सब कहते, "अरे, अब तो सोनू बाबू अफसर बन जाएंगे!" लेकिन जैसे-जैसे दिन बीतने लगे और नौकरी की कोई खबर नहीं आई, लोगों का व्यवहार बदलने लगा।
सोनू ने कई जगह नौकरी के लिए आवेदन किए, इंटरव्यू दिए, लेकिन हर जगह वही जवाब- "अनुभव चाहिए," "अभी वेकेंसी नहीं है," या फिर "हम आपको कॉल करेंगे।" वह दिन-रात मेहनत करता, नए-नए कौशल सीखता, लेकिन सफलता उससे कोसों दूर थी।
धीरे-धीरे उसके दोस्तों ने भी उससे दूरी बना ली। पहले जो लोग चाय की दुकानों पर उसके साथ बैठकर बड़े-बड़े सपने बुनते थे, अब वे उससे कटने लगे। कुछ ने प्राइवेट नौकरी पकड़ ली, कुछ ने पारिवारिक बिज़नेस संभाल लिया, और कुछ ने सरकारी नौकरी के लिए रिश्वत तक दे दी। लेकिन सोनू के पास न तो रिश्वत देने के पैसे थे, न ही कोई बड़ा राजनीतिक सहारा।
समय बीतता गया, और अब गाँव में लोग बातें बनाने लगे- "पढ़ाई करके भी घर बैठा है!" "कोई काम-धंधा कर लेता तो अच्छा होता!" यहाँ तक कि उसके माता-पिता भी चिंता में पड़ गए। माँ रोज़ भगवान से प्रार्थना करती, और पिता हर रोज़ पूछते- "कोई नौकरी की खबर आई?"
सोनू को समझ नहीं आ रहा था कि गलती कहाँ हो रही है। उसने सब कुछ किया था- पढ़ाई, मेहनत, आवेदन- फिर भी उसे सफलता क्यों नहीं मिल रही थी? कई बार उसने हताशा में खुद को कोसा, लेकिन फिर एक दिन उसने फैसला किया कि वह हार नहीं मानेगा।
उसने छोटे स्तर पर काम शुरू किया। फ्रीलांसिंग, ऑनलाइन स्किल्स, और छोटे-मोटे बिज़नेस के ज़रिए उसने खुद को साबित करना शुरू किया। धीरे-धीरे उसे पहचान मिलने लगी, और एक दिन उसे एक बड़ी कंपनी में नौकरी भी मिल गई।
अब वही लोग, जो उसे ताने मारते थे, उसे फिर से सम्मान देने लगे। दोस्तों ने फिर से बातें करनी शुरू कर दीं, और गाँव में लोग कहने लगे- "देखा, मेहनत कभी बेकार नहीं जाती!"
सीख:
यह कहानी उन लाखों युवाओं की हकीकत बयां करती है, जो बेरोजगारी की मार झेल रहे हैं। जब कोई सफल होता है, तो पूरा समाज उसे सिर पर बिठा लेता है, लेकिन जब वही व्यक्ति संघर्ष कर रहा होता है, तो उसे अकेला छोड़ दिया जाता है।
"सुख में सुबीरण सब करे, दुख में न करै कोई"—इसका यही अर्थ है कि जब तक चीज़ें अच्छी चल रही होती हैं, तब तक सब साथ होते हैं, लेकिन जब मुश्किलें आती हैं, तो असली चेहरे सामने आ जाते हैं। लेकिन मेहनत और धैर्य से हर समस्या का हल निकल सकता है, बस हार नहीं माननी चाहिए।
"सुख में सुबीरण सब करे, दुख में न करै कोई"
(बेरोजगार युवा पीढ़ी की व्यथा)
जब तक जेब भरी रहे, सब अपने संग खड़े,
खाली हाथ जो रह गया, कौन पूछे, कौन पड़े?
डिग्रियाँ हैं लहराती, सपने भी बेशुमार,
पर नौकरी की राहों में, किस्मत देती वार।
माँ-बाप की आँखों में, आस का इक दीप है,
बेटा रोशन करेगा, यही इक तीव्र पीर है।
मित्र जो संग बैठे थे, चाय की चुस्की संग,
अब वही उड़ाते हैं, बेरोजगारी के रंग।
इंटरव्यू पर इंटरव्यू, जवाब नहीं आता,
दफ़्तरों के दरवाज़ों पर, ताला ही नज़र आता।
कोई कहे सरकारी बन, कोई कहे प्राइवेट सही,
पर जहाँ भी जाओ, बस "अनुभव" चाहिए वहीं।
फिर समाज कहे निकम्मा, आलसी और हताश,
कोई नहीं समझता, इस पीड़ा की तलाश।
सुख में सब अपनाते, हँसी में साथ देते,
दुख में जो संभाले, वही सच्चा स्नेह देते।
जो संघर्ष में है आज, कल रोशन करेगा,
यही सोच कर हर युवा, फिर नया सपना बुनेगा।
क्योंकि आशा जब तक संग रहे,
संघर्ष भी जीवन का रंग रहे!