आज तारीख है 22/2/25 सफर से लौटने का समय
दोस्तो अब समय आ गया सफर से लौटने का अपने घर की ओर, इस सफर ने मुझे आध्यात्म, इतिहास और घर की मिट्टी से जोड़े रखा!
दिल्ली की हलचल, कुंभ का आध्यात्मिक स्नान, अयोध्या में प्रभु श्रीराम की भक्ति, और हरिद्वार की गंगा आरती के बाद अब घर लौटने का समय था- पटना, जहाँ से मेरी यात्रा शुरू हुई थी और जहाँ मेरा दिल बसता है।
हरिद्वार से पटना – ट्रेन का सफर और यादों की गठरी
हरिद्वार रेलवे स्टेशन पहुँचा तो वहाँ श्रद्धालुओं की भीड़ थी। कुछ गंगाजल से भरी बोतलें लेकर घर लौट रहे थे, तो कुछ अभी भी हरिद्वार-ऋषिकेश की गलियों में खोए हुए थे। मेरी ट्रेन कुंभ स्पेसल एक्स्प्रेस पटना के लिए तैयार थी। स्टेशन से थोड़ी गंगा जल की बोतलें और प्रसाद खरीदा, ताकि इस यात्रा की पावन स्मृतियाँ घर तक ले जाऊँ।
ट्रेन जैसे ही रवाना हुई, खिड़की से गंगा के अंतिम दर्शन किए और माँ गंगे को प्रणाम किया। अब सफर लंबा था, लेकिन मन में हरिद्वार की भक्ति, अयोध्या के रामलला के दर्शन और कुंभ के दिव्य अनुभव की स्मृतियाँ ताज़ा थीं।
सहयात्रियों की कहानियाँ और सफर का आनंद
ट्रेन में मेरी सीट के पास ही कुछ श्रद्धालु बैठे थे, जो हरिद्वार से काशी और गया जाने की योजना बना रहे थे। कोई तीर्थ यात्रा पूरी करके लौट रहा था, तो कोई अपने अनुभव साझा कर रहा था। किसी ने बताया कि वे हर साल कुंभ और अयोध्या जाते हैं, तो किसी ने अपनी पहली यात्रा का अनुभव सुनाया। यह बातें सफर को और भी रोचक बना रही थीं।
स्टेशनों का सिलसिला – सफर की नई झलकियाँ
रास्ते में ट्रेन कई बड़े स्टेशनों से गुजरी- सहारनपुर, लखनऊ, वाराणसी, बक्सर और आरा। वाराणसी में कुछ देर के लिए ट्रेन रुकी, तो प्लेटफॉर्म पर हलचल बढ़ गई। चाय, समोसे और बनारसी मिठाइयों की खुशबू से मन फिर से घूमने को करने लगा। लेकिन सफर जारी रखना था—गंतव्य पटना जो था!
रात में ट्रेन का सफर – चाँदनी रात और रेलवे ट्रैक की लय
रात होते ही ट्रेन के अंदर शांति छा गई। कुछ यात्री गहरी नींद में थे, तो कुछ खिड़की से बाहर चाँदनी रात का आनंद ले रहे थे। मैं भी खिड़की से झाँकते हुए रेलवे ट्रैक की लयबद्ध आवाज़ सुन रहा था। सफर के ये शांत पल भी बेहद खास होते हैं, जब हम अपने विचारों में डूब जाते हैं।
सुबह पटना का स्वागत - घर लौटने की खुशी
सुबह होते ही ट्रेन पटना जंक्शन के करीब पहुँच गई। जैसे ही गंगा नदी की झलक दिखी, मन में एक अलग ही सुकून महसूस हुआ। पटना स्टेशन पर उतरते ही चारों ओर अपने शहर की जानी-पहचानी हलचल थी- रिक्शे वालों की पुकार, लिट्टी-चोखा की खुशबू, और अपने लोगों की जानी-पहचानी भाषा।
यात्रा से मिली सीख
दिल्ली की रफ़्तार, कुंभ का आध्यात्म, अयोध्या की भक्ति, हरिद्वार की शांति और अब पटना की अपनी मिट्टी- इस पूरी यात्रा ने मुझे सिखाया कि सफर सिर्फ़ गंतव्य तक पहुँचने का नाम नहीं, बल्कि रास्ते में मिलने वाले अनुभवों और यादों का संगम भी होता है।
प्रिय पटना, तुम्हारी गलियों और तुम्हारी गंगा की लहरों को फिर से महसूस करने का समय आ गया है। अब मैं वापस हूँ, लेकिन मेरे भीतर यह पूरी यात्रा जीवंत रहेगी- जब तक अगली यात्रा की पुकार न सुनाई दे!
"हर सफर हमें कुछ नया सिखाता है, और हर यात्रा एक नई कहानी होती है!"
तुम्हारा यात्री
[कुंंदन]
बहुत जल्द फिर मिलते है नए सफर में तब तक अपाना ख्याल रखिए bay bay