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अयोध्या यात्रा


तारीख - 21/02/2025

स्थान - प्रयागज (कुंभ) से अयोध्या

समय - सुबह

दोस्तो आज अयोध्या यात्रा का दास्तां सुनते हैं। कुंभ में गंगा के पावन जल में स्नान और संतों के प्रवचनों के बाद, अब मेरी यात्रा एक और पवित्र नगरी की ओर थी—अयोध्या, भगवान श्रीराम की जन्मभूमि। यह सफर सिर्फ़ किलोमीटर तय करने का नहीं, बल्कि आध्यात्मिकता, भक्ति और इतिहास को महसूस करने का था।

प्रयागराज से अयोध्या – रामनाम के साथ सफर

सुबह कुंभ के मेले से निकलकर अयोध्या जाने के लिए ट्रेन पकड़ी। ट्रेन में भी श्रद्धालुओं की भीड़ थी—कुछ रामलला के दर्शन के लिए जा रहे थे, तो कुछ सरयू स्नान की कामना लिए बैठे थे। किसी ने भजन गाना शुरू किया, तो पूरा डिब्बा "जय श्रीराम" के जयकारों से गूंज उठा। इस सफर ने मेरे भीतर रामभक्ति की भावना और गहरी कर दी।

अयोध्या में पहला कदम – दिव्य वातावरण

अयोध्या स्टेशन पर उतरते ही एक अलग ही ऊर्जा महसूस हुई। ऐसा लग रहा था जैसे पूरी नगरी राममय हो गई हो। हर दीवार पर रामकथा चित्रित थी, हर गली में "जय श्रीराम" के उद्घोष सुनाई दे रहे थे। दुकानों में रामायण, रामनाम की पट्टियाँ और पूजा सामग्री मिल रही थी।

श्रीराम जन्मभूमि – भक्ति और आस्था का केंद्र

सबसे पहले पहुँचा श्रीराम जन्मभूमि मंदिर, जहाँ प्रभु श्रीराम बालरूप में विराजमान हैं। मंदिर में प्रवेश करते ही मन श्रद्धा और भक्ति से भर गया। जैसे ही रामलला के दर्शन किए, आँखें स्वतः ही बंद हो गईं, और एक दिव्य शांति का अनुभव हुआ। भक्तों का उत्साह, जयकारों की गूँज और मंदिर की भव्यता देखकर मन राममय हो गया।

हनुमानगढ़ी – बिना यहाँ गए रामलला के दर्शन अधूरे

इसके बाद पहुँचा हनुमानगढ़ी, जो अयोध्या का सबसे प्रसिद्ध मंदिरों में से एक है। मान्यता है कि बिना हनुमानजी के दर्शन किए रामलला के दर्शन अधूरे माने जाते हैं। पहाड़ी पर स्थित इस मंदिर में बजरंगबली की विशाल प्रतिमा के दर्शन किए और आशीर्वाद लिया।

सरयू तट पर आरती – आत्मिक शांति का अनुभव

शाम को सरयू तट पहुँचा, जहाँ घाटों पर भव्य आरती का आयोजन हो रहा था। जलते हुए दीपों की कतारें, मंत्रों की गूँज और घंटों की ध्वनि से पूरा वातावरण भक्ति से भर गया। सरयू की लहरों पर दीपों का प्रतिबिंब देखकर ऐसा लगा जैसे स्वयं देवता इस दृश्य का आनंद ले रहे हों। वहाँ बैठकर कुछ देर ध्यान लगाया, और मन को अद्भुत शांति मिली।

अयोध्या की गलियों में भक्ति और मिठास

अयोध्या की गलियाँ सिर्फ़ भक्ति से भरी नहीं, बल्कि स्वादिष्ट प्रसाद और पारंपरिक भोजन से भी सराबोर थीं। कचौड़ी-सब्जी, जलेबी और पेड़े का स्वाद चखा, जो सच में अलौकिक था। बाजारों में घूमते हुए रामनाम लिखी पट्टियाँ और तुलसी की मालाएँ खरीदीं, ताकि इस यात्रा की यादें हमेशा मेरे साथ रहें।

यात्रा से मिली सीख

अयोध्या सिर्फ़ एक शहर नहीं, बल्कि भक्ति, संस्कृति और मर्यादा का प्रतीक है। यहाँ आकर यह महसूस हुआ कि यह केवल भगवान श्रीराम की जन्मभूमि नहीं, बल्कि हमारी संस्कारों और श्रद्धा की भी जन्मभूमि है।

प्रिय अयोध्या, तुमसे बिछड़ते हुए मन भारी हो रहा है, लेकिन रामलला की कृपा और तुम्हारी यादें हमेशा मेरे हृदय में रहेंगी। फिर मिलेंगे किसी नए सफर में, किसी नए अनुभव के साथ।

तुम्हारी भक्ति में लीन
[कुंंदन]

"जय श्रीराम!"

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