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जिन्दगी साँप सीढ़ी होती है...

 ज़िन्दगी साँप सीढ़ी का खेल हो गयी है... कितना जतन करके तो शून्य से खिसक पाता हूँ...सामर्थ्य से ज्यादा हिम्मत करके घिसटते पिटते कटते जैसे तैसे सीढ़ियाँ जुहाते पैदल चलते जब जब सौ के करीब पहुँचने वाला होता हूँ तो निन्यानबे पर समय नाम का साँप डस लेता है "फिर वहीं लौट आता हूँ जहाँ से चला था...सम्पूर्ण जीवन शून्य के आसपास सिमटकर रह गया है।"

 

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