यह एक कहानी है कोचिंग वाले प्यार की है, जहाँ किताबों के पन्नों के बीच मोहब्बत की ख़ुशबू छुपी थी।
पटना की एक छोटी सी गली में बसी थी वो कोचिंग जहाँ हर सुबह सैकड़ों सपने आकार लेते थे। दसवीं कक्षा के स्टूडेंट्स, बोर्ड एग्ज़ाम की तैयारी में जुटे थे। उन्हीं में से एक था राहुल, जो पढ़ाई में औसत था लेकिन दिल से बिल्कुल साफ। और फिर थी नेहा, क्लास की सबसे तेज़ और शांत लड़की, जिसे सब ‘टीचर की फेवरेट’ कहते थे।
राहुल का दिल कब नेहा पर आ गया, उसे खुद पता नहीं चला। बस हर रोज़ क्लास में उसकी सीट के पास बैठने का बहाना ढूँढता, कभी नोट्स माँगता, तो कभी पेन गिराकर उसकी नज़रों का इंतज़ार करता।
सवालों के जवाबों में तेरा नाम दिखा।"
एक दिन मैथ्स की क्लास में राहुल को सवाल हल नहीं आया। टीचर ने गुस्से में कहा, "नेहा, इसे समझाओ!" नेहा ने ब्लैकबोर्ड पर राहुल के लिए सवाल हल किया और पहली बार मुस्कुराई। उस मुस्कान ने राहुल के दिल में तूफान ला दिया।
उस दिन से कोचिंग सिर्फ पढ़ाई की जगह नहीं रही, बल्कि एक नया एहसास भी जुड़ गया। राहुल अब ज्यादा मेहनत करने लगा, ताकि नेहा को इम्प्रेस कर सके। कभी-कभी जब क्लास में नेहा के नोट्स से मदद मिलती, तो राहुल मन ही मन गुनगुनाता—
"तेरी आँखों का ये जो नशा है,
इसी में तो मेरी दुनिया बसी है।"
धीरे-धीरे दोनों के बीच दोस्ती हो गई। अब टिफिन में साथ खाना, ग्रुप स्टडी के बहाने बातें करना आम हो गया। लेकिन राहुल चाहता था कि ये दोस्ती कुछ और बने, कुछ ख़ास।
एक दिन कोचिंग के बाद जब नेहा अकेली जा रही थी, राहुल ने हिम्मत करके कहा—
"नेहा, एक बात कहूँ?"
"क्या?" नेहा ने हल्की मुस्कान के साथ पूछा।
"अगर मैथ्स की इक्वेशन होती, तो तेरा नाम हमेशा मेरे X और Y में आता!"
नेहा हंस पड़ी, "फिज़िक्स की तरह लाजिकल बनने की कोशिश मत कर, राहुल!"
राहुल थोड़ा झेंप गया, लेकिन फिर नेहा ने खुद ही कहा, "चल अब पढ़ाई कर, बोर्ड एग्ज़ाम आ रहे हैं!"
पर अब राहुल को पढ़ाई में नेहा की यादें ही दिखती थीं—
"पढ़ते-पढ़ते तेरा ख्याल आ जाता है,
किताबों से ज्यादा तेरा चेहरा याद आता है!"
बोर्ड एग्ज़ाम के बाद दोनों अलग-अलग स्कूलों में चले गए, लेकिन कोचिंग वाला प्यार हमेशा यादों में रहा। जब भी वो पुरानी नोटबुक खोलते, बीच में रखी पेंसिल से नेहा की लिखावट और राहुल की शायरी दिखती—
"कुछ मोहब्बतें किताबों जैसी होती हैं,
हर पन्ने पर इश्क़ की खुशबू छोड़ जाती हैं!"
भाग 2:-
"कोचिंग क्लास का पहला प्यार – आगे की कहानी"
बोर्ड एग्जाम खत्म हो गए, रिजल्ट भी आ गया। नेहा हमेशा की तरह टॉपर बनी और राहुल भी अच्छे नंबरों से पास हो गया। मगर अब दोनों अलग-अलग स्कूलों में थे। कोचिंग के वो दिन, ब्लैकबोर्ड पर लिखी नेहा की हैंडराइटिंग, राहुल की शरारतें—सब कुछ अब सिर्फ यादें बन चुके थे।
"फासले बढ़ गए तो क्या,
यादों में अब भी वही रंग बाकी है!"
राहुल ने बार-बार मोबाइल उठाया, सोचा नेहा को मैसेज करे, लेकिन फिर खुद को रोक लिया। उसे लगा कि नेहा को शायद उसकी कमी महसूस न होती हो। उधर, नेहा के पास भी राहुल का नंबर था, लेकिन उसने भी कभी पहल नहीं की।
दो साल बाद...
कॉलेज की दुनिया बिल्कुल अलग थी। राहुल अब थोड़ा समझदार हो गया था, पढ़ाई में पहले से ज्यादा मेहनत करने लगा था। लेकिन नेहा की यादें कभी-कभी अब भी आ जातीं, खासकर जब वो पुरानी नोटबुक खोलता।
एक दिन इंस्टाग्राम स्क्रॉल करते हुए अचानक उसकी नज़र एक पोस्ट पर पड़ी—
"Feeling nostalgic! Missing those old coaching days… #MathsClass #BestMemories"
ये पोस्ट नेहा की थी! राहुल ने झट से लाइक किया, लेकिन कमेंट करने की हिम्मत नहीं हुई। मगर इस बार किस्मत को उनकी कहानी में नया मोड़ लिखना था।
कुछ ही मिनटों में नेहा का मैसेज आया—
"ओये राहुल! तू यहाँ क्या कर रहा है?"
राहुल का दिल तेज़ी से धड़कने लगा।
"बस ज़िन्दगी गुज़र रही है, और तू?"
"Same! याद है, तू मैथ्स के सवालों से कितना डरता था?" नेहा ने हंसने वाला इमोजी भेजा।
"हाँ, और याद है तूने कैसे मुझे पढ़ाया था? वैसे, मैं अब भी वही हूँ, बस मैथ्स थोड़ा और अच्छा हो गया है!"
"अच्छा? तो फिर इक्वेशन हल करने में मेरी याद तो नहीं आती?"
राहुल मुस्कुराया। नेहा अब भी पहले जैसी थी—चुलबुली, हाजिरजवाब।
धीरे-धीरे फिर से चैट्स बढ़ने लगे। पहले हफ्ते में सिर्फ हाल-चाल, फिर पुराने दिनों की बातें, और फिर हर रोज़ की गुड़ मॉर्निंग से लेकर गुड नाइट तक।
कॉलेज फेस्ट और पहली मुलाकात
नेहा और राहुल दोनों अब अलग-अलग शहरों में थे, लेकिन एक दिन अचानक नेहा का मैसेज आया—
"मेरे कॉलेज का फेस्ट है, तू आ सकता है?"
राहुल को यकीन नहीं हुआ। उसने बिना सोचे हाँ कर दिया।
फेस्ट के दिन राहुल ने ब्लू शर्ट पहनी—वही रंग जो नेहा को पसंद था। जब वो कॉलेज पहुंचा, तो दूर से नेहा को देखा। दो सालों में वो और भी खूबसूरत लगने लगी थी।
"वही चेहरा, वही मुस्कान,
पर अब थोड़ा और हसीन सा एहसास!"
नेहा ने देखा, तो मुस्कुरा दी।
"मैथ्स अच्छा हो गया, पर कॉन्फिडेंस अब भी वैसा ही है?" उसने छेड़ा।
"कॉन्फिडेंस तो तुझसे मिलकर और बढ़ गया!" राहुल ने जवाब दिया।
उस दिन दोनों ने बहुत बातें कीं—पुरानी यादें, नए सपने, करियर, फैमिली सबकुछ। शाम को जब सूरज डूब रहा था, राहुल ने हिम्मत करके कहा—
"नेहा, क्या हम फिर से वैसे दोस्त बन सकते हैं, जैसे कोचिंग में थे?"
नेहा मुस्कुराई, फिर बोली—
"पगले, हम कभी दोस्त थे ही नहीं!"
राहुल चौंका, "मतलब?"
नेहा हल्के से मुस्कुराई, फिर धीरे से कहा—
"जो चीज़ कभी खत्म ही नहीं हुई, उसे दोबारा शुरू करने की ज़रूरत ही नहीं होती!"
राहुल अब भी उसे देख रहा था। इस बार किताबों के पन्नों में नहीं, बल्कि उसकी आँखों में पूरा जवाब लिखा था।
"कभी जो सोचा ही नहीं था,
आज वही हकीकत बन गया!"
क्या ये प्यार था?
शायद हाँ, शायद नहीं। मगर इतना तय था कि वो कोचिंग वाला मासूम सा रिश्ता अब कॉलेज की यादगार बन चुका था। कहानी अभी पूरी नहीं हुई थी... शायद आगे कोई और चैप्टर बाकी था!
भाग 3:-
"कोचिंग क्लास का पहला प्यार – नया अध्याय"
कॉलेज फेस्ट के बाद राहुल और नेहा की बातें और बढ़ने लगीं। अब हर रोज़ फोन कॉल्स, देर रात तक चैटिंग, और कभी-कभी वीडियो कॉल भी होने लगे। दोनों अपनी-अपनी लाइफ में बिज़ी थे, लेकिन एक-दूसरे के बिना दिन अधूरा लगता था।
"लफ़्ज़ों में कह नहीं सकते,
पर जो है, वो सिर्फ़ दोस्ती तो नहीं!"
एक दिन नेहा ने राहुल से कहा—
"पता है, मुझे तुझसे हमेशा बात करने का मन करता है, पर डर भी लगता है।"
"डर? किस बात का?" राहुल चौंक गया।
"पता नहीं, शायद इस रिश्ते की कोई गारंटी नहीं है। तू अलग शहर में, मैं अलग। कल को लाइफ आगे बढ़ जाएगी, तू भूल जाएगा!"
राहुल ने गहरी सांस ली, फिर कहा—
"नेहा, कुछ रिश्ते गारंटी के लिए नहीं होते, बस जीने के लिए होते हैं!"
उस दिन पहली बार नेहा चुप हो गई थी।
"दिल की बात"
दिन बीतते गए, सेमेस्टर बदलते गए, लेकिन राहुल की फीलिंग्स वही रहीं। वो चाहता था कि एक दिन अपने दिल की बात नेहा से कह दे।
एक रात दोनों फोन पर बातें कर रहे थे—
"राहुल, अगर कोई तुझे प्रपोज़ करे तो तेरा जवाब क्या होगा?"
राहुल मुस्कुराया, "अगर वो कोई और हुई, तो शायद मना कर दूँ!"
"क्यों? पागल है क्या?"
"क्योंकि मेरा दिल पहले ही किसी के पास गिरवी रखा हुआ है!"
नेहा हंस दी, "अच्छा! और वो लड़की कौन है?"
राहुल कुछ देर चुप रहा, फिर धीरे से बोला—
"तेरी आवाज़ का एहसास ही काफी है ये बताने के लिए!"
नेहा एकदम शांत हो गई। कुछ सेकंड तक कोई कुछ नहीं बोला। फिर नेहा ने हल्की आवाज़ में कहा—
"तो तूने अब तक कहा क्यों नहीं?"
राहुल का दिल तेज़ी से धड़कने लगा। उसने हिम्मत जुटाकर कहा—
"क्योंकि मुझे तेरा डर समझ में आता है। मैं भी यही सोचता हूँ कि अगर तुझे हाँ कह दिया, तो दोस्ती खराब हो जाएगी। अगर मना कर दिया, तो रिश्ते में वो बात नहीं रहेगी।"
"और अगर मैं कहूँ कि मैं भी यही सोचती थी?"
राहुल को यकीन नहीं हुआ।
"मतलब?"
"मतलब, पागल, मैं भी तुझे पसंद करती हूँ!"
राहुल को लगा, जैसे आसमान पर उड़ने लगा हो। सालों से जो फीलिंग्स उसने अपने दिल में दबाकर रखी थीं, आज नेहा ने खुद बयां कर दीं।
"लव स्टोरी जो अधूरी नहीं थी"
अब उनका रिश्ता पहले से भी ज्यादा गहरा हो गया था। अब कॉल्स में पढ़ाई के साथ-साथ भविष्य के सपने भी जुड़ गए थे। राहुल अब और मेहनत करने लगा, ताकि उसके पास एक अच्छा करियर हो और वो नेहा के लिए कुछ बड़ा कर सके।
एक दिन राहुल ने नेहा से पूछा—
"हमेशा साथ रहने का कोई वादा करोगी?"
नेहा हंसी, "अभी नहीं, पहले तुझे तेरे सपने पूरे करने दो। फिर तेरी माँ से मिलूंगी, तेरी पसंद का मंगलसूत्र पहनूँगी!"
राहुल ने मज़ाक में कहा—
"फिर मैं भी शादी में माइक उठाकर गाऊँगा—
'तेरी आँखों का ये जो नशा है...'"
दोनों हंस पड़े।
"आखिरी पन्ना?"
अब कहानी वही नहीं थी जो कोचिंग क्लास में शुरू हुई थी। अब ये स्कूल क्रश से बढ़कर सच्चा प्यार बन चुका था।
"कुछ इश्क़ अधूरे रह जाते हैं,
पर जो मुकम्मल होते हैं,
वो कहानियाँ नहीं, क़िस्मत बन जाते हैं!"
क्या ये कहानी आगे भी चलेगी?
शायद हाँ।
शायद एक दिन राहुल सच में स्टेज पर खड़ा होकर वो गाना गाएगा, और नेहा शादी की मांडप में उसके सामने खड़ी होगी।
शायद, कोचिंग वाला प्यार ज़िन्दगी भर का प्यार बन जाएगा!
भाग 4:-
"कोचिंग क्लास का पहला प्यार – ज़िन्दगी का नया मोड़"
राहुल और नेहा की मोहब्बत अब किसी स्कूल के कोने में लिखे गए नामों तक सीमित नहीं थी। अब ये उन सपनों का हिस्सा बन चुकी थी, जिनमें करियर, फैमिली और एक साथ बिताई जाने वाली पूरी ज़िन्दगी शामिल थी।
कॉलेज ख़त्म होने के बाद दोनों ने अपने-अपने करियर पर फोकस किया। राहुल ने इंजीनियरिंग की पढ़ाई पूरी कर ली और एक अच्छी कंपनी में जॉब लग गई। नेहा ने अपने सपने को पूरा करते हुए एमबीए किया और एक मल्टीनेशनल कंपनी में मैनेजर बन गई। दोनों अलग-अलग शहरों में थे, लेकिन उनके दिलों की दूरी कभी नहीं बढ़ी।
"मीलों की दूरी भी दिलों की नज़दीकी को कम नहीं कर सकती,
जहाँ चाहत सच्ची हो, वहाँ हर राह आसान हो जाती है!"
"पहली मुलाकात के बाद... अगली मुलाकात!"
नेहा अब दिल्ली में थी, और राहुल मुंबई में। काम के चलते दोनों की मुलाकातें कम हो गईं, लेकिन हर रात फोन पर लंबी बातें और कभी-कभी वीडियो कॉल ने रिश्ते को ज़िंदा रखा।
एक दिन राहुल ने अचानक नेहा को कॉल किया—
"अगले हफ़्ते फ्री है?"
"क्यों?" नेहा ने पूछा।
"बस, एक ज़रूरी काम है!"
नेहा मुस्कुराई, "झूठ मत बोल, मुझे पता है तुझे मुझसे मिलने का बहाना चाहिए!"
राहुल हंस पड़ा, "सही पकड़ा!"
"दिल्ली में एक खास दिन"
राहुल ने दिल्ली जाने की टिकट ली और नेहा से मिलने के लिए कॉनॉट प्लेस के एक खूबसूरत कैफे में बुलाया।
जब नेहा वहाँ पहुँची, तो देखा कि राहुल पहले से मौजूद था—ब्लू शर्ट में, वही जो नेहा को सबसे ज्यादा पसंद थी।
"इतनी जल्दी आ गया?" नेहा ने पूछा।
"तेरी स्माइल मिस कर रहा था, इसलिए!"
नेहा शरमा गई।
थोड़ी देर बातें हुईं, फिर राहुल ने अपनी जेब से एक छोटा सा डिब्बा निकाला और नेहा की तरफ बढ़ाया।
नेहा हैरान थी, "ये क्या है?"
राहुल घुटनों के बल बैठ गया, आस-पास के लोग भी देखने लगे।
"नेहा, तू मेरे स्कूल के दिन से लेकर कॉलेज और अब मेरी ज़िन्दगी का सबसे खूबसूरत हिस्सा है। मैं तुझे किसी इक्वेशन में नहीं बाँध सकता, पर तुझसे एक वादा ज़रूर कर सकता हूँ—कि मैं हमेशा तेरा राहुल बनकर रहूँगा।"
फिर उसने डिब्बा खोला—उसमें एक खूबसूरत रिंग थी।
"क्या तू मुझसे शादी करेगी?"
नेहा की आँखों में आंसू आ गए, वो मुस्कुरा दी और धीरे से कहा—
"हाँ, पागल! मैं भी तुझसे उतना ही प्यार करती हूँ!"
कैफे तालियों से गूंज उठा, और राहुल ने खुशी से नेहा को गले लगा लिया।
"शादी और एक नई ज़िन्दगी"
कुछ महीनों बाद दोनों की शादी तय हो गई। नेहा की माँ और राहुल के पापा पुराने विचारों के थे, लेकिन जब उन्होंने दोनों की सच्ची मोहब्बत देखी, तो खुशी-खुशी मान गए।
शादी में राहुल ने सच में माइक उठाया और नेहा के लिए गाना गाया—
"तेरी आँखों का ये जो नशा है..."
नेहा स्टेज पर खड़ी हंस रही थी, और राहुल अपनी दुनिया की सबसे खूबसूरत लड़की को देख रहा था।
"कोचिंग वाला प्यार, ज़िन्दगी भर का प्यार बन गया!"
अब राहुल और नेहा एक साथ थे, हमेशा के लिए।
"कुछ मोहब्बतें बस कॉलेज क्रश बनकर रह जाती हैं,
पर जब दो दिल सच्चे हों, तो वो कोचिंग वाला प्यार भी
ज़िन्दगी भर का साथ बन जाता है!"
भाग 5:-
"कोचिंग क्लास का पहला प्यार – जब प्यार में आई दूरियाँ"
शादी के बाद कुछ महीने तक सब कुछ सपने जैसा था। सुबह की चाय साथ पीना, ऑफिस जाने से पहले हल्की छेड़छाड़, रात को एक-दूसरे का दिन पूछना—हर पल खूबसूरत था।
लेकिन धीरे-धीरे ज़िन्दगी की भागदौड़ बढ़ने लगी। राहुल की कंपनी में प्रोजेक्ट्स का दबाव था, और नेहा की जॉब में लगातार मीटिंग्स और ट्रैवलिंग। अब न सुबह की चाय साथ में होती, न रात को बैठकर दिल की बातें।
"प्यार के बीच बढ़ती दूरियाँ"
एक दिन रात को 11 बजे राहुल ऑफिस से लौटा। वह थका हुआ था। अंदर आया तो देखा कि नेहा सो चुकी थी। उसने चुपचाप खाना खाया और सो गया।
सुबह नेहा उठी और देखा कि राहुल अब भी गहरी नींद में था। उसने उसे उठाना ठीक नहीं समझा और चुपचाप ऑफिस के लिए निकल गई।
अब ऐसा हर रोज़ होने लगा। कभी राहुल देर से आता, कभी नेहा की मीटिंग्स लंबी चलतीं।
"जो बातें कभी देर रात तक चलती थीं,
अब 'कल बात करेंगे' पर रुक जाती थीं।"
"पहला झगड़ा"
एक दिन रविवार को, जब राहुल को आखिरकार छुट्टी मिली, उसने सोचा कि पूरा दिन नेहा के साथ बिताएगा। लेकिन तभी नेहा ने बताया कि उसे ऑफिस की एक अर्जेंट मीटिंग के लिए जाना होगा।
राहुल का मूड खराब हो गया।
"नेहा, कम से कम संडे तो साथ बिता सकते हैं!"
"राहुल, समझा करो, ये ज़रूरी है!"
"तेरे लिए ऑफिस ज्यादा ज़रूरी हो गया है क्या?"
"तो क्या करूँ? नौकरी छोड़ दूँ?"
"मैंने ऐसा कब कहा?" राहुल चिढ़ गया।
"तो फिर क्यों हर बात पे ताने मारते हो?"
पहली बार दोनों में इतना झगड़ा हुआ। नेहा बिना कुछ कहे चली गई, और राहुल गुस्से में घर के दरवाज़े को ज़ोर से बंद कर दिया।
"जब प्यार में सवाल उठने लगे..."
अब झगड़े बढ़ने लगे। पहले जहाँ छोटी-छोटी बातें हंसी में टल जाती थीं, अब वहीं बहस बन जाती थीं।
"तूने कॉल क्यों नहीं उठाया?"
"मैं बिजी थी, राहुल!"
"हमेशा बिजी ही रहती है!"
"रात को बात क्यों नहीं की?"
"थक गई थी, राहुल!"
"अच्छा? और ऑफिस के लिए कभी थकती नहीं?"
"क्या प्यार कम हो रहा था?"
एक रात, दोनों के बीच फिर से झगड़ा हुआ।
"राहुल, हम अब पहले जैसे नहीं रहे!"
"तो क्या करना चाहिए? दूर हो जाएं?" राहुल ने गुस्से में कहा।
"शायद यही सही होगा!"
ये सुनते ही दोनों एकदम चुप हो गए। क्या वो सच में अलग होना चाहते थे? या ये सिर्फ एक गुस्से में कहे गए शब्द थे?
"क्या कोचिंग वाला प्यार खत्म हो रहा था?"
राहुल ने नेहा को देखा। उसकी आँखों में आंसू थे, लेकिन वो उन्हें छिपाने की कोशिश कर रही थी।
उसी वक्त राहुल को एहसास हुआ—समस्या प्यार की कमी नहीं थी, बल्कि समय की कमी थी।
"नेहा, मैं तुझसे दूर नहीं रह सकता!"
नेहा ने राहुल की ओर देखा।
"मैं भी नहीं, राहुल!"
"तो फिर क्यों लड़ रहे हैं?"
"शायद इसलिए क्योंकि हम दोनों एक-दूसरे को मिस करते हैं!"
राहुल ने नेहा का हाथ पकड़ा, "तो चल, फिर से वही कोचिंग वाले राहुल-नेहा बनते हैं!"
नेहा मुस्कुरा दी।
"प्यार को फिर से जिंदा करना"
अब उन्होंने तय किया कि काम कितना भी ज़रूरी हो, लेकिन प्यार और रिश्ते को भी समय देंगे।
- अब वे हर रात डिनर साथ करने लगे, भले ही देर हो जाए।
- हर रविवार मोबाइल और लैपटॉप दूर रखकर सिर्फ एक-दूसरे के साथ टाइम बिताने लगे।
- कभी-कभी पुराने कोचिंग वाले दिनों की बातें करते, तो फिर से मुस्कुराने लगते।
- और सबसे ज़रूरी, वे एक-दूसरे को समय न दे पाने के लिए दोषी ठहराना बंद कर चुके थे।
"रिश्ते में दूरी आना आम बात है,
लेकिन उन्हें सहेजना प्यार की सबसे बड़ी पहचान है!"
अब राहुल और नेहा का प्यार फिर से पहले जैसा हो गया था।
कोचिंग वाला प्यार सिर्फ एक कहानी नहीं था—अब वो ज़िन्दगी की सच्चाई बन चुका था!
भाग 6:-
"कोचिंग क्लास का पहला प्यार – जब परिवार पूरा हुआ"
राहुल और नेहा की ज़िन्दगी अब पटरी पर आ चुकी थी। वे दोनों पहले से ज़्यादा समझदार हो गए थे, अपने रिश्ते को बेहतर बनाने के लिए अब एक-दूसरे को पूरा समय देने लगे थे। हफ़्ते में एक बार डिनर डेट, रोज़ रात को बिना ऑफिस की बात किए हल्की-फुल्की बातें और कभी-कभी पुरानी कोचिंग वाली यादों को ताज़ा करना—इन सबने उनकी शादीशुदा ज़िन्दगी को और खूबसूरत बना दिया।
"एक खुशखबरी!"
एक दिन नेहा डॉक्टर के पास से घर आई और राहुल के सामने एक रिपोर्ट रख दी।
"ये क्या है?" राहुल ने चौंककर पूछा।
नेहा मुस्कुराई, "अब तुझे 'पापा' कहकर बुलाने वाला कोई आने वाला है!"
राहुल कुछ सेकंड तक कुछ समझ नहीं पाया, फिर जैसे ही बात उसके दिमाग में आई, उसने नेहा को खुशी से गले लगा लिया।
"सच??"
"हाँ, पागल!"
राहुल की आँखों में आंसू थे—खुशी के। उसने नेहा के माथे को चूमा और बोला—
"अब ज़िन्दगी और खूबसूरत होने वाली है!"
"जब खुशियाँ दोहरी हो गईं!"
नेहा की प्रेग्नेंसी के दौरान राहुल उसका पूरा ख्याल रखता था। ऑफिस से आते ही उसका फेवरेट फ्रूट लाना, रात को ज्यादा थकने न देना, और सबसे ज़रूरी—हर सोनोग्राफी अपॉइंटमेंट पर साथ जाना।
और फिर, वो दिन आया जब डॉक्टर ने उन्हें बताया—
"बधाई हो! आपके जुड़वाँ बच्चे हैं—एक बेटा और एक बेटी!"
राहुल और नेहा की खुशी का ठिकाना नहीं रहा।
"राहुल, देख, ऊपरवाले ने हमारी फैमिली पूरी कर दी!"
"हाँ, नेहा! अब हमारी ज़िन्दगी में दो नए मेहमान आ गए हैं!"
"नए रिश्तों की शुरुआत"
कुछ महीनों बाद, नेहा ने एक प्यारे से बेटे और एक खूबसूरत बेटी को जन्म दिया। राहुल ने खुशी से दोनों को गोद में उठाया और उनके छोटे-छोटे हाथों को चूमा।
"हम इन्हें क्या नाम देंगे?" नेहा ने पूछा।
राहुल मुस्कुराया, "हमारी लव स्टोरी कोचिंग से शुरू हुई थी, तो क्यों न इनका नाम कुछ खास रखे?"
"मतलब?"
"बेटे का नाम 'रिहान' और बेटी का नाम 'नेहानी'!"
नेहा हंस पड़ी, "यानी हमारे नामों का मिला-जुला रूप!"
"बिल्कुल! क्योंकि ये सिर्फ बच्चे नहीं हैं, ये हमारे प्यार की सबसे खूबसूरत पहचान हैं!"
नेहा ने खुशी से अपने जुड़वा बच्चों को देखा और राहुल के कंधे पर सिर रख दिया।
"अब कोचिंग वाला प्यार एक परफेक्ट फैमिली बन गया था!"
अब राहुल और नेहा की ज़िन्दगी सिर्फ उनके बारे में नहीं थी, बल्कि उनके छोटे-छोटे रिहान और नेहानी के चारों तरफ घूमने लगी।
रातों को जागना, बच्चों के साथ खेलना, उनकी मासूम मुस्कान को देखना—हर लम्हा उनके प्यार को और गहरा कर रहा था।
"अंत नहीं, बल्कि एक नई शुरुआत!"
"जो कोचिंग में शुरू हुआ,
वो अब घर की दीवारों में गूँजने लगा,
पहले दो दिल मिले थे,
अब चार धड़कनों की धुन बन गया!"
राहुल और नेहा की कहानी अब सिर्फ एक लव स्टोरी नहीं थी—ये अब एक खूबसूरत परिवार की कहानी बन चुकी थी।
भाग 7:-
"कोचिंग क्लास का पहला प्यार – जब रिश्ते में तूफान आया"
राहुल और नेहा की ज़िन्दगी अब पूरी हो चुकी थी—एक प्यारा बेटा रिहान और एक नन्ही परी नेहानी उनकी दुनिया बन चुके थे। लेकिन जैसे-जैसे बच्चे बड़े हो रहे थे, ज़िम्मेदारियाँ भी बढ़ रही थीं।
राहुल दिनभर ऑफिस में बिज़ी रहने लगा, और नेहा बच्चों की परवरिश में इतना डूब गई कि उसे खुद के लिए भी वक्त नहीं मिलता था। धीरे-धीरे दोनों के बीच पहले जैसा रोमांस कम होने लगा।
"परवरिश को लेकर तकरार"
एक शाम, जब राहुल ऑफिस से लौटा, तो घर में एक बहस चल रही थी।
"रिहान फिर से क्लास में फेल हो गया, और तुझे कोई फर्क ही नहीं पड़ता!" नेहा गुस्से में बोली।
"मैं क्या करूँ, नेहा? मैं दिनभर ऑफिस में मेहनत करता हूँ, ताकि इनका भविष्य अच्छा हो!" राहुल ने चिढ़कर जवाब दिया।
"लेकिन पैसा कमाने से ही बच्चों की परवरिश नहीं होती, उन्हें टाइम देना भी ज़रूरी है!"
"तो तू क्या चाहती है, मैं नौकरी छोड़ दूँ?"
"कम से कम थोड़ा वक़्त तो निकाल सकता है!"
राहुल झुंझलाकर बाहर चला गया।
अब ये झगड़े हर रोज़ होने लगे। कभी रिहान के स्कूल को लेकर, कभी नेहानी की परवरिश को लेकर। जो रिश्ता कभी प्यार से भरा था, अब उसमें कड़वाहट घुलने लगी थी।
"जब तीसरा इंसान आ गया"
नेहा के ऑफिस में आदित्य नाम का एक सहकर्मी था। वह बहुत समझदार और सुलझा हुआ इंसान था। धीरे-धीरे नेहा की उससे दोस्ती होने लगी।
एक दिन राहुल घर देर से आया। नेहा फोन पर हंस-हंसकर किसी से बात कर रही थी।
"किससे बात कर रही हो?" राहुल ने पूछा।
"आदित्य से, ऑफिस का दोस्त है!"
राहुल को अजीब लगा, लेकिन उसने कुछ नहीं कहा।
धीरे-धीरे नेहा आदित्य से अपनी ज़िन्दगी की बातें करने लगी। राहुल से जो बातें अब वो नहीं कर पाती थी, वो आदित्य से कर लेती थी। आदित्य उसकी हर बात ध्यान से सुनता, उसे समझता और सलाह देता।
राहुल को अब ये दोस्ती खटकने लगी थी।
"शक और दूरियाँ"
एक दिन राहुल ने देखा कि नेहा और आदित्य किसी कैफे में बैठे बातें कर रहे थे। अंदर ही अंदर उसका गुस्सा फूट पड़ा।
रात को जब नेहा घर आई, तो राहुल फट पड़ा—
"क्या चल रहा है तुम्हारा और आदित्य का?"
नेहा चौंक गई, "क्या मतलब?"
"मतलब ये कि तुम्हें अब अपने पति से ज़्यादा अपने दोस्त से बात करने में दिलचस्पी है!"
"राहुल, प्लीज! आदित्य सिर्फ एक दोस्त है!"
"तो फिर रोज़ उसी से क्यों बातें करती हो? मेरे से तो अब कोई भी बात नहीं करती!"
"क्योंकि जब मैं तुझसे कुछ कहती हूँ, तो तुझे सिर्फ बहस करनी होती है! आदित्य कम से कम मेरी बातें समझता तो है!"
"तो जाओ, उसी के पास रहो!" राहुल गुस्से में चिल्लाया।
ये सुनकर नेहा का दिल टूट गया।
"रिश्ते की आखिरी कगार"
अब दोनों में बात करना भी कम हो गया था। राहुल को लगने लगा कि नेहा उससे दूर जा रही है, और नेहा को लगने लगा कि राहुल अब उसे समझता ही नहीं।
एक दिन नेहा ने राहुल से कहा—
"राहुल, क्या हमारे रिश्ते में अब कुछ बचा भी है?"
राहुल कुछ नहीं बोला।
"अगर हम एक-दूसरे से इतने ही परेशान हैं, तो अलग हो जाते हैं!"
ये सुनकर राहुल का गुस्सा खत्म हो गया और आँखों में आंसू आ गए।
"नेहा, मैं अलग नहीं होना चाहता… मैं तुझे खोना नहीं चाहता!"
नेहा भी रो पड़ी, "मैं भी नहीं, राहुल!"
"प्यार को दोबारा ज़िंदा करना"
राहुल ने नेहा का हाथ पकड़ा और कहा—
"मैं जानता हूँ कि मैंने तुझे वक्त नहीं दिया, और तुझे अकेला महसूस करवाया। लेकिन नेहा, सच कहूँ तो मैं भी तुझे बहुत मिस करता हूँ!"
"राहुल, मुझे आदित्य से कोई मतलब नहीं था… मैं बस तुझसे वो बातें करना चाहती थी जो पहले करती थी!"
राहुल ने उसके आंसू पोंछे, "तो चल, फिर से पहले जैसे बनते हैं!"
अब उन्होंने तय किया कि—
- हफ़्ते में एक दिन सिर्फ फैमिली टाइम होगा।
- बच्चे की पढ़ाई दोनों की ज़िम्मेदारी होगी।
- सबसे ज़रूरी, वे एक-दूसरे से हर बात शेयर करेंगे, ताकि कोई तीसरा उनके बीच न आए।
धीरे-धीरे चीज़ें फिर से ठीक होने लगीं। अब कोचिंग वाला प्यार दोबारा ज़िन्दा हो गया था!
"कहानी का नया सबक"
"रिश्तों में कभी तूफान आए तो छोड़ने का नहीं,
उन्हें सहेजने का रास्ता निकालना चाहिए!"
अब राहुल और नेहा की ज़िन्दगी फिर से प्यार से भर चुकी थी, और उनके बच्चे रिहान और नेहानी फिर से खुश थे।
कोचिंग वाला प्यार टूटने की कगार पर आकर भी बच गया, क्योंकि सच्चा प्यार कभी हारता नहीं!"
भाग 8:-
"कोचिंग क्लास का पहला प्यार – जब नेहा फिर से अपने सपनों की ओर बढ़ी"
समय बीतता गया, और अब रिहान और नेहानी पूरे पांच साल के हो चुके थे। उनके स्कूल जाने का समय आ गया था, और घर में उनकी शरारतों से हर कोना गूंजता रहता था।
राहुल और नेहा अब पहले से ज्यादा समझदार हो चुके थे। रिश्ते में आए उतार-चढ़ाव के बाद, उन्होंने एक-दूसरे को और ज़्यादा अहमियत देना सीख लिया था।
"नेहा का सपना फिर से जागा"
एक दिन नेहा बच्चों को स्कूल छोड़कर घर आई तो उसकी नज़र एक पुराने फ्रेम में लगी उसकी डिग्री पर गई।
"MBA – Top Scorer"
वो कुछ देर तक उसे देखती रही। अचानक राहुल पीछे से आया और मुस्कुराकर बोला—
"अब इस डिग्री को सिर्फ देखने के लिए रखोगी या इसका कुछ इस्तेमाल भी करोगी?"
नेहा ने चौंककर उसकी ओर देखा, "मतलब?"
"मतलब, अब रिहान और नेहानी स्कूल जाने लगे हैं, तो क्यों न तू फिर से जॉब जॉइन कर ले?"
नेहा थोड़ी सोच में पड़ गई, "पर घर, बच्चे, तुम्हारा खाना-पानी, सब कैसे मैनेज होगा?"
राहुल ने हंसकर कहा, "अरे पागल, अब हम दोनों मिलकर सब संभालेंगे!"
नेहा की आँखों में चमक आ गई। राहुल अब सिर्फ एक पति नहीं, बल्कि उसका सबसे बड़ा सपोर्ट बन चुका था।
"पहला इंटरव्यू"
नेहा ने सालों बाद अपने पुराने बॉस को कॉल किया और कुछ ही दिनों में उसे एक अच्छी कंपनी में इंटरव्यू मिल गया।
राहुल नेहा को पूरा सपोर्ट कर रहा था—
- उसने बच्चों को स्कूल से लाने-छोड़ने की ज़िम्मेदारी ले ली।
- रात में नेहा को इंटरव्यू की तैयारी में मदद करने लगा।
- और सबसे खास, उसने नेहा का कॉन्फिडेंस बढ़ाने के लिए उसे रोज़ मोटिवेट करना शुरू कर दिया।
"तूने पहले भी कमाल किया था, और अब भी करेगी!"
नेहा मुस्कुरा दी।
"जब सपना पूरा हुआ"
नेहा का इंटरव्यू शानदार रहा, और कुछ ही दिनों में उसे "सिनियर मैनेजर" के पद पर नौकरी मिल गई।
राहुल और बच्चे उसकी पहली सैलरी पर बहुत खुश थे।
"अब पार्टी तो बनती है, मम्मा!" रिहान चिल्लाया।
"हाँ मम्मा, पिज्जा खाना है!" नेहानी ने भी जोड़ दिया।
राहुल ने मुस्कुराकर कहा, "और पापा को चॉकलेट केक चाहिए!"
नेहा हंस पड़ी, "ठीक है, आज तुम सबकी मम्मा पार्टी देगी!"
उस रात, पहली बार नेहा को एहसास हुआ कि एक औरत सिर्फ माँ या पत्नी ही नहीं, बल्कि अपने सपनों की उड़ान भरने वाली एक मुकम्मल इंसान भी होती है।
"राहुल और नेहा – अब एक सशक्त कपल"
अब उनका रिश्ता और मजबूत हो गया था।
- राहुल ने नेहा का साथ दिया।
- नेहा ने अपने सपनों को फिर से जिंदा किया।
- बच्चों ने अपने मम्मी-पापा को खुश देखा।
अब "कोचिंग वाला प्यार" सिर्फ एक रोमांटिक कहानी नहीं थी—यह "सच्चे प्यार और सपोर्ट की मिसाल" बन चुका था।
"कहानी का नया सबक"
"सच्चा प्यार वही होता है, जो एक-दूसरे की उड़ान में साथ दे,
जो सिर्फ कहे नहीं, बल्कि हर मुश्किल में खड़ा रहे!"
भाग 9:-
"कोचिंग क्लास का पहला प्यार – जब रिश्ते तलाक़ तक पहुँच गए"
नेहा की जॉब को दो साल हो चुके थे। अब वह अपने करियर में बहुत आगे बढ़ चुकी थी। राहुल भी अपनी नौकरी में व्यस्त रहता था, और बच्चे अब सात साल के हो चुके थे।
पहले की तरह रोमांस अब कम हो गया था, और ज़िम्मेदारियाँ बढ़ गई थीं। राहुल अक्सर ऑफिस से थककर आता, और नेहा अपने काम में इतनी बिज़ी रहती कि उनके बीच बातचीत भी कम हो गई थी।
"आदित्य की वापसी"
इसी दौरान नेहा की ऑफिस में आदित्य से फिर से मुलाकात हुई। वही आदित्य, जो पहले भी नेहा का दोस्त था।
अब वे दोनों एक ही प्रोजेक्ट पर काम कर रहे थे। आदित्य हर बात पर उसकी तारीफ करता, उसे समझता और उसके करियर को लेकर उसकी मेहनत की सराहना करता।
धीरे-धीरे नेहा को लगने लगा कि आदित्य उसे ज़्यादा समझता है, जबकि राहुल अब पहले जैसा नहीं रहा।
अब नेहा और आदित्य ऑफिस के बाद भी बातें करने लगे, साथ में मीटिंग्स और बिज़नेस ट्रिप पर जाने लगे।
"राहुल को शक हुआ"
राहुल ने नोटिस किया कि नेहा अब ज़्यादा फोन पर रहने लगी थी।
एक दिन उसने देखा कि नेहा देर रात किसी से मैसेज कर रही थी।
"किससे बात कर रही हो?" राहुल ने पूछा।
नेहा ने झिझकते हुए कहा, "आदित्य से, एक ऑफिस प्रोजेक्ट के बारे में!"
राहुल चिढ़ गया, "इतनी रात को कौन सा ऑफिस प्रोजेक्ट होता है?"
"राहुल, प्लीज! तुम बेवजह शक कर रहे हो!"
"बेवजह? या सच में कुछ है?"
अब झगड़े रोज़ होने लगे।
"रिश्ते में आई खटास"
अब राहुल और नेहा के बीच पहले जैसा प्यार नहीं रहा।
- राहुल को लगने लगा कि नेहा उससे दूर जा रही है।
- नेहा को लगने लगा कि राहुल उसे समझता नहीं।
- दोनों बच्चों के सामने भी बहस करने लगे।
रिहान और नेहानी सब देख रहे थे, लेकिन कुछ कह नहीं पा रहे थे।
"जब तलाक़ की बात आई"
एक दिन झगड़ा इतना बढ़ गया कि नेहा ने कह दिया—
"राहुल, अब ये सब बर्दाश्त नहीं होता! हमें अलग हो जाना चाहिए!"
राहुल को एक झटका लगा।
"क्या ये मज़ाक है?"
"नहीं राहुल, अब हमारे बीच कुछ बचा ही नहीं!"
राहुल गुस्से में बाहर चला गया।
अब नेहा और राहुल ने तलाक़ की प्रक्रिया शुरू कर दी थी।
"बच्चों ने संभाला रिश्ता"
रिहान और नेहानी इस झगड़े से बहुत परेशान हो चुके थे। उन्होंने फैसला किया कि वे अपने मम्मी-पापा को अलग नहीं होने देंगे।
रिहान ने एक दिन नेहा से कहा—
"मम्मा, अगर आप पापा से अलग हो जाओगी, तो मैं और नेहानी क्या करेंगे?"
"बेटा, तुम दोनों हमारे साथ ही रहोगे!"
नेहानी ने रोते हुए कहा, "लेकिन हम दोनों को एक साथ चाहिए! हमें मम्मा-पापा दोनों चाहिए!"
नेहा और राहुल पहली बार सोच में पड़ गए।
"जब सच सामने आया"
एक रात राहुल ने नेहा से कहा—
"क्या तुझे सच में लगता है कि आदित्य तुझे मुझसे बेहतर समझता है?"
नेहा चुप रही।
"और क्या तूने कभी सोचा कि मैं क्यों बदल गया हूँ? क्योंकि मैं अपने काम में बिज़ी था, ताकि तेरा और बच्चों का भविष्य अच्छा बना सकूँ!"
नेहा की आँखें नम हो गईं।
राहुल ने आगे कहा, "प्यार में सिर्फ समझना ही नहीं, बल्कि निभाना भी ज़रूरी होता है!"
नेहा को एहसास हुआ कि उसने आदित्य के आकर्षण में आकर अपने असली रिश्ते को कमज़ोर कर दिया था।
"रिश्ते को दूसरा मौका"
नेहा ने आदित्य से दूरी बना ली और राहुल से कहा—
"मैं गलत थी, राहुल! मुझे अपने रिश्ते को बचाना चाहिए था, न कि किसी तीसरे से सहारा लेना चाहिए था!"
राहुल ने मुस्कुराते हुए उसका हाथ थाम लिया।
"चलो, अब इस गलती को पीछे छोड़कर फिर से एक नई शुरुआत करते हैं!"
बच्चे खुशी से दौड़कर मम्मी-पापा के गले लग गए।
"कहानी का सबक"
"रिश्ते में शक और दूरियाँ आ सकती हैं,
पर अगर प्यार सच्चा हो,
तो एक-दूसरे को समझने और माफ़ करने का हौसला भी होना चाहिए!"
अब राहुल और नेहा फिर से पहले जैसे बन गए थे, और रिहान और नेहानी की मुस्कान से घर फिर से खुशहाल हो गया था!
भाग 10:-
"कोचिंग क्लास का पहला प्यार – जब बच्चों ने सिखाया बड़ा सबक"
राहुल और नेहा ने अपने रिश्ते को एक और मौका दिया था। चीज़ें धीरे-धीरे ठीक होने लगी थीं, लेकिन आदित्य की नीयत कुछ और ही थी।
नेहा ने जब उससे दूरी बनानी चाही, तो आदित्य को यह बर्दाश्त नहीं हुआ। अब वह उसका ब्लैकमेल करने लगा।
"आदित्य का असली चेहरा"
एक दिन नेहा के फोन पर एक अजनबी नंबर से मैसेज आया—
"अगर तुमने मुझसे रिश्ता तोड़ा, तो मैं राहुल को तुम्हारे और मेरे सारे चैट और फोटोज़ भेज दूँगा।"
नेहा चौंक गई।
"मैंने तुझ पर भरोसा किया था, आदित्य! तू ऐसा क्यों कर रहा है?"
आदित्य ने हंसकर जवाब दिया—
"अगर तू मेरी नहीं हो सकती, तो किसी की नहीं होगी!"
अब नेहा घबरा गई।
"नेहा ने सच छुपाया, लेकिन..."
नेहा ने राहुल को कुछ नहीं बताया। वह डर गई थी कि कहीं यह सब जानकर राहुल फिर से नाराज़ न हो जाए।
लेकिन बच्चों को माँ की परेशानी दिखने लगी थी।
एक दिन रिहान ने नेहा को रोते हुए देख लिया।
"मम्मा, आप रो क्यों रही हो?"
"कुछ नहीं बेटा, बस ऐसे ही!"
रिहान समझ गया कि कुछ तो गलत है। उसने अपनी बहन नेहानी को भी बताया।
नेहानी बोली, "हमें पापा को बताना चाहिए!"
"जब बच्चों ने पिता को बताया"
रिहान और नेहानी ने राहुल से कहा—
"पापा, मम्मा को कोई परेशान कर रहा है!"
राहुल चौंक गया।
"कौन बेटा?"
"हमें नहीं पता, लेकिन मम्मा रो रही थीं!"
राहुल ने जब नेहा से पूछा, तो उसने पहले कुछ नहीं बताया। लेकिन जब राहुल ने जोर दिया, तो उसने आदित्य की सारी बातें बता दीं।
राहुल को गुस्सा आ गया—
"अब मैं देखता हूँ उसे!"
"जब राहुल ने आदित्य को सबक सिखाया"
राहुल ने आदित्य को फोन किया—
"अगर मेरी बीवी को दोबारा परेशान किया, तो तेरा हाल बुरा होगा!"
आदित्य हंसने लगा, "तेरे पास कोई सबूत है?"
अब राहुल नेहा के साथ पुलिस के पास गया और आदित्य के सारे मैसेज और कॉल रिकॉर्डिंग जमा कर दी।
अब आदित्य डर गया। पुलिस ने उसे पकड़ लिया और धमकी देने के लिए कानूनी कार्यवाही शुरू कर दी।
"बच्चों ने दिया सबसे बड़ा सबक"
नेहा ने अपने बच्चों को गले लगा लिया और कहा—
"अगर तुम दोनों न होते, तो मैं यह गलती कभी सुधार नहीं पाती!"
रिहान मुस्कुराया, "मम्मा, पापा ने सिखाया कि सच्चाई से कभी डरना नहीं चाहिए!"
अब राहुल और नेहा ने ठान लिया कि वे कभी अपने रिश्ते में कोई छुपाव नहीं रखेंगे और हर परेशानी का सामना साथ में करेंगे।
"कहानी का सबक"
"रिश्ते में जब भी कोई तीसरा आए,
तो उसे रोकना ज़रूरी है,
वरना प्यार की जगह डर और गलतफहमी ले लेती है!"
अब राहुल, नेहा, रिहान और नेहानी की दुनिया फिर से खुशहाल हो गई थी। और सबसे बड़ी बात—बच्चों ने सिखाया कि सच और हिम्मत से हर मुश्किल से लड़ा जा सकता है!
"कोचिंग क्लास का पहला प्यार – जब बच्चों ने सिखाया बड़ा सबक"
राहुल और नेहा ने अपने रिश्ते को एक और मौका दिया था। चीज़ें धीरे-धीरे ठीक होने लगी थीं, लेकिन आदित्य की नीयत कुछ और ही थी।
नेहा ने जब उससे दूरी बनानी चाही, तो आदित्य को यह बर्दाश्त नहीं हुआ। अब वह उसका ब्लैकमेल करने लगा।
"आदित्य का असली चेहरा"
एक दिन नेहा के फोन पर एक अजनबी नंबर से मैसेज आया—
"अगर तुमने मुझसे रिश्ता तोड़ा, तो मैं राहुल को तुम्हारे और मेरे सारे चैट और फोटोज़ भेज दूँगा।"
नेहा चौंक गई।
"मैंने तुझ पर भरोसा किया था, आदित्य! तू ऐसा क्यों कर रहा है?"
आदित्य ने हंसकर जवाब दिया—
"अगर तू मेरी नहीं हो सकती, तो किसी की नहीं होगी!"
अब नेहा घबरा गई।
"नेहा ने सच छुपाया, लेकिन..."
नेहा ने राहुल को कुछ नहीं बताया। वह डर गई थी कि कहीं यह सब जानकर राहुल फिर से नाराज़ न हो जाए।
लेकिन बच्चों को माँ की परेशानी दिखने लगी थी।
एक दिन रिहान ने नेहा को रोते हुए देख लिया।
"मम्मा, आप रो क्यों रही हो?"
"कुछ नहीं बेटा, बस ऐसे ही!"
रिहान समझ गया कि कुछ तो गलत है। उसने अपनी बहन नेहानी को भी बताया।
नेहानी बोली, "हमें पापा को बताना चाहिए!"
"जब बच्चों ने पिता को बताया"
रिहान और नेहानी ने राहुल से कहा—
"पापा, मम्मा को कोई परेशान कर रहा है!"
राहुल चौंक गया।
"कौन बेटा?"
"हमें नहीं पता, लेकिन मम्मा रो रही थीं!"
राहुल ने जब नेहा से पूछा, तो उसने पहले कुछ नहीं बताया। लेकिन जब राहुल ने जोर दिया, तो उसने आदित्य की सारी बातें बता दीं।
राहुल को गुस्सा आ गया—
"अब मैं देखता हूँ उसे!"
"जब राहुल ने आदित्य को सबक सिखाया"
राहुल ने आदित्य को फोन किया—
"अगर मेरी बीवी को दोबारा परेशान किया, तो तेरा हाल बुरा होगा!"
आदित्य हंसने लगा, "तेरे पास कोई सबूत है?"
अब राहुल नेहा के साथ पुलिस के पास गया और आदित्य के सारे मैसेज और कॉल रिकॉर्डिंग जमा कर दी।
अब आदित्य डर गया। पुलिस ने उसे पकड़ लिया और धमकी देने के लिए कानूनी कार्यवाही शुरू कर दी।
"बच्चों ने दिया सबसे बड़ा सबक"
नेहा ने अपने बच्चों को गले लगा लिया और कहा—
"अगर तुम दोनों न होते, तो मैं यह गलती कभी सुधार नहीं पाती!"
रिहान मुस्कुराया, "मम्मा, पापा ने सिखाया कि सच्चाई से कभी डरना नहीं चाहिए!"
अब राहुल और नेहा ने ठान लिया कि वे कभी अपने रिश्ते में कोई छुपाव नहीं रखेंगे और हर परेशानी का सामना साथ में करेंगे।
"कहानी का सबक"
"रिश्ते में जब भी कोई तीसरा आए,
तो उसे रोकना ज़रूरी है,
वरना प्यार की जगह डर और गलतफहमी ले लेती है!"
अब राहुल, नेहा, रिहान और नेहानी की दुनिया फिर से खुशहाल हो गई थी। और सबसे बड़ी बात—बच्चों ने सिखाया कि सच और हिम्मत से हर मुश्किल से लड़ा जा सकता है!
भाग 11:-