दिनांक - [20/02/2025]
स्थान - आगरा से प्रयागराज (कुंभ मेला)
समय - [सुबह/दोपहर/रात्रि]
प्रिय कुंभ, तुम सिर्फ़ एक मेला नहीं, बल्कि आस्था और आध्यात्म का महासंगम हो!
आगरा की भव्यता और ताजमहल के प्रेम की कहानी के बाद अब मेरी यात्रा एक अलग ही दुनिया की ओर थी—प्रयागराज का कुंभ मेला। यह सिर्फ़ एक धार्मिक आयोजन नहीं, बल्कि दुनिया का सबसे बड़ा आध्यात्मिक और सांस्कृतिक पर्व है, जहाँ श्रद्धा, भक्ति और सनातन परंपराओं का अद्भुत संगम देखने को मिलता है।
प्रयागराज की ओर यात्रा – भक्तों की भीड़ और आध्यात्मिक ऊर्जा
जैसे ही ट्रेन प्रयागराज की ओर बढ़ी, डिब्बे में चारों तरफ कुंभ जाने वाले श्रद्धालु ही दिखे। कोई रामायण पढ़ रहा था, तो कोई गंगा महिमा के भजन गा रहा था। हर कोई बस एक ही लक्ष्य के साथ था—पवित्र संगम में स्नान और पुण्य लाभ। सफर के दौरान कई श्रद्धालुओं से बातचीत हुई, जिन्होंने अपने-अपने गांवों से हज़ारों किलोमीटर की यात्रा तय कर इस पावन भूमि पर पहुँचने का प्रण लिया था।
पहली झलक – कुंभ की अनोखी दुनिया
प्रयागराज स्टेशन पर उतरते ही भीड़ का समंदर नजर आया। चारों ओर सिर पर गठरी रखे पैदल चलते श्रद्धालु, हाथों में झंडे और कीर्तन मंडलियाँ—ऐसा लग रहा था जैसे यह सिर्फ़ एक मेला नहीं, बल्कि आस्था का सागर हो।
जैसे ही मेला क्षेत्र में प्रवेश किया, चारों ओर आध्यात्मिकता का माहौल दिखा—नागा साधु भस्म लगाए अपनी धूनी रमाए हुए थे, संन्यासी और तपस्वी गंगा तट पर ध्यान में लीन थे, और दूर-दूर से आए श्रद्धालु भजन-कीर्तन में मग्न थे।
संगम स्नान – आत्मा को शुद्ध करने वाला अनुभव
सुबह जल्दी मैं त्रिवेणी संगम पहुँचा, जहाँ गंगा, यमुना और अदृश्य सरस्वती का संगम होता है। स्नान करने के लिए जैसे ही पानी में उतरा, एक अजीब-सी आध्यात्मिक अनुभूति हुई—मन शांत हो गया, आत्मा हल्की हो गई, और ऐसा महसूस हुआ कि मैं किसी दिव्य ऊर्जा से भर रहा हूँ।
लोगों की आस्था को देखकर मन श्रद्धा से भर गया। कोई गंगा माँ की जयकार कर रहा था, तो कोई ध्यान लगा रहा था। संतों और तपस्वियों को देखकर यह अहसास हुआ कि भारत की संस्कृति और परंपराएँ कितनी गहरी और मजबूत हैं।
अखाड़ों और साधुओं की दुनिया
कुंभ सिर्फ़ स्नान का पर्व नहीं, बल्कि यह संतों, महात्माओं और विभिन्न अखाड़ों की भव्यता को भी दिखाता है। नागा साधु, वैष्णव संन्यासी, और अलग-अलग पंथों के संतों के शिविरों में प्रवचन और आध्यात्मिक चर्चा हो रही थी। मैंने कुछ संतों से चर्चा की, जिन्होंने जीवन और आत्मा की यात्रा पर गूढ़ बातें बताईं।
रंगीन बाजार और भक्ति का माहौल
मेले में घूमते हुए विभिन्न साधुओं, कथावाचकों और भजन मंडलियों का संगम देखा। जगह-जगह कथा-प्रवचन चल रहे थे, जहाँ जीवन, धर्म और अध्यात्म पर चर्चा हो रही थी। साधु-संतों की संगत में बैठकर कुछ देर भजन सुने और उनके अनुभवों को आत्मसात किया।
साथ ही, कुंभ का बाजार भी देखने लायक था—धार्मिक पुस्तकें, गंगा जल, रुद्राक्ष की मालाएँ और तरह-तरह की पूजा सामग्री यहाँ मिल रही थी।
गंगा आरती – सबसे पावन क्षण
शाम को संगम तट पर गंगा आरती में शामिल हुआ। जलते हुए दीपों की कतार, मंत्रों का उच्चारण और घंटों की ध्वनि से पूरा वातावरण दिव्यता से भर गया। उस पल ऐसा लगा जैसे स्वयं देवता इस आरती को देखने के लिए उतर आए हों।
यात्रा से मिली सीख
कुंभ मेला सिर्फ़ एक धार्मिक आयोजन नहीं, बल्कि यह आत्मा की शुद्धि, आस्था की परीक्षा और भारतीय संस्कृति का सबसे सुंदर रूप है। यहाँ आकर यह महसूस हुआ कि संन्यास और भक्ति केवल कुछ लोगों के लिए नहीं, बल्कि हर इंसान के जीवन में आवश्यक हैं।
प्रिय कुंभ, तुम्हारी यह दिव्यता और भव्यता जीवनभर याद रहेगी। अगली बार फिर आऊँगा, जब यह महासंगम फिर से भक्तों को अपनी पवित्रता से नवाजेगा।
"हर-हर गंगे! जय कुंभ!"