याद आते है पुराने दिन अब भी
मिलने आती हैं यादें अक्सर
कैसे कहूँ तुम्हें कि
वो अक्सर लाती है तुम्हें मेरे पास
वो बात बात में तुम्हारा चिढ़ाना मुझे
और
औरों से मेरी खातिर लड़ जाना
वो मेरा तुम्हें भाई जान पुकारने पे
चिढ़ जाना और मेरा फिर भी
तुम्हें यहीं कह के आवाज लगाना
आज भी जब पहनती हूं गाउन मैं
और उतरती हूं अपने घर की सीढ़ियां
जाने कहाँ से आ जाते हो तुम
ठीक मेरे पीछे
की पहले आप उतरिए फिर हम उतरेंगे
और मेरे पूछने पर
वही चिढ़ा देना मुझे
कि
हम बाद में उतरेंगे तो
सीढ़ियां साफ मिलेंगी
आज भी कोई हक से समझाता है जब
जाने क्यूँ उसके चेहरे में नजर आता है
तुम्हारा ही मुस्कराता हुआ अक्स
याद आती हैं मुझे आज भी
वो तुम्हारा मुझसे बात करने से भी कतराना
और बातें करने के बहाने ढूंढ के लाना
याद आते हैं कि
कैसे मेरे अज़ीब से डरावने सपनों का भी
तुम कितना फनी मतलब निकालते थे
हाँ ये भी है कि उसमे अपने मतलब कि
बातें ही निकालते थे
याद है ना तुम्हें भी
कि कैसे तुम्हारा घर
सपनों में घूम के आये थे
और
कैसे तुम्हें यकीन भी हो गया था
मुझे तो याद आते हैं....
अक्सर वो पुराने दिन
जब हम
एक दूसरे के वकील हुआ करते थे
आज भी अक्सर यादे तुम्हें मेरे पास लाती हैं
कभी हँसाती तो कभी आंखें नम कर जाती है.....