प्र.1: अहिंसा एवं अपरिग्रह के संबंध में गांधीजी के विचारपर संक्षिप्त में टिप्पणी लिखें।
परिचयः
महात्मा गांधी नव्य वेदांती विचारधारा के प्रमुख विचारक थे। उनका मानना था कि ईश्वर का वास कण-कण में है। अतः प्रत्येक मनुष्य में ईश्वर का वास है। मानव सेवा ही ईश्वर सेवा है। महात्मा गांधी पर सर्वाधिक प्रभाव उपनिषद, दर्शन तथा गीता का है। जॉन रस्किन की पूस्तक "अनटू दिस लास्ट" का प्रभाव उनके हिंद स्वराज में देखा जा सकता है। गाँधीजी ने पश्चिमी धर्मों तथा दर्शन से भी बहुत कुछ सीखा। ईसा मसीह से उन्होंने "करूणा" का विचार लिया।
मुख्य भागः
गाँधी जी के विचार अहिंसा के संबंध में
1. अहिंसा सिर्फ आदर्श नहीं बल्कि मानव जाति का प्राकृतिक नियम है।
2. अहिंसा के पूर्ण पालन के लिए ईश्वर में अटूट विश्वास जरूरी है।
3. अहिंसा अव्यावहारिक नहीं है बल्कि यह एकमात्र व्यावहारिक मार्ग है।
4. किसी प्राणी के नैतिक, आध्यात्मिक या भौतिक विकास के लिए उसे कष्ट पहुंचाना अहिंसा का उल्लंघन नहीं है।
5. अगर कोई प्राणी असहनीय दर्द झेल रहा हो और उसकी मुक्ति का कोई और रास्ता न हो तो उसके जीवन को समाप्त कर देना उचित है।
गाँधी जी के विचार अपरिग्रह के संबंध में
1. इसका साधारण अर्थ है- एकत्रित न करना किंतु गांधीजी ने इसका व्यापक अर्थ लिया। जैसे निरंतर श्रम करते हुए हीं समाज से कुछ लेना। बिना श्रम किये किसी चीज पर हक न जताना।
2. जीवन के अनिवार्यताओं के अलावा जो कुछ भी है उसका प्रयोग समाज हित में करना। यही ट्रस्टीशिप या न्यासिता का सिद्धांत भी है।
3. पूंजीपति से धन छीनने के बजाय हृदय परिवर्तन आवश्यक है।
4. भौतिकवादी होने के कारण मार्क्स हृदय परिवर्तन को संभव नहीं मानते।
निष्कर्षः
उपरोक्त तथ्यों के विश्लेषण के आधार पर निष्कर्षतः यह कहा जा सकता है कि गांधी की अहिंसा जैनों की तुलना में लचीली व व्यावहारिक है। यहीं अपरिग्रह के संबंध में मार्क्स तथा गांधीजी के विचार में अंतर था। जैसे जहां मार्क्स भौतिकवादी होने के कारण, समानता स्थापित करने हेतु एकमात्र तरीका अमीरों की संपत्ति छीनना बताया। जबकि गांधीजी ने ट्रस्टीशिप या न्यासिता का सिद्धांत बताएँ।