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महाकुंभ स्नान

 

कुंभ के घाट पर जब हुआ हादसा,  

लहरों में डूब गई उम्मीदों की कश्ती।  

कितने सपने टूटे, कितने दिल रुके,  

गंगा की गोद में सिमट गई वो रात भी।  


किनारे पर आँसू, पानी में सिसकियाँ,  

किस्मत का खेल देखो, कैसी ये विडंबना।  

जो लेने आए थे पुण्य, वो हो गए बेखबर,  

मौत की छाया में खो गई वो मंज़िल भी।  


फिर भी उठो, फिर से संभलो ऐ इंसान,  

जीवन की नैया को मत होने दो मयूसान।  

कुंभ का संगम है, आस्था का सागर,  

इस दर्द को भी बहा दो गंगा की धारा में।  


सबक लेकर चलो, सावधानी से बढ़ो,  

जीवन की हर लहर को समझकर गले लगाओ।  

कुंभ की याद दिलाए, जीने की राह दिखाए,  

गंगा की लहरों में बहती रहे ये आशा भी।

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