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संप्रदायवाद और धर्मनिरपेक्षता पर नेहरू की विचारधारा पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।

संप्रदायवाद और धर्मनिरपेक्षता पर नेहरू की विचारधारा पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।


परिचयः

जवाहरलाल नेहरू आधुनिक भारत के सर्वाधिक प्रभावशालीव्यक्तियों में से एक थे। उन्होंने भारत की सामाजिक, आर्थिक तथा राजनीतिक चिंतन प्रक्रिया एवं कार्यक्रमों को गहराई तक प्रभावित किया। नेहरू का जीवन 'पुनर्जागरण' से प्रभावित था। वे अपने स्वभाव, अध्ययन एवं अभिधारणाओं के कारण रूढ़िवाद, कट्टरवाद और संप्रदायवाद के विरोधी थे। संप्रदायवाद के संबंध में उनके विचार अभिनव एवं शिक्षाप्रद थे। वे भारत के प्रथम नेता थे जिन्होंने संप्रदायवाद के सामाजिक, आर्थिक एवं राजनीतिक आयामों, प्रकृति, लक्षणों एवं कारणों को गहराई से समझा।

मुख्य भागः

नेहरू की विचारधारा संप्रदायवाद पर

1. नेहरू अपने राजनीतिक जीवन के शुरूआती वर्षों से हीं संप्रदायवाद के विरोधी थे। नेहरू की राजनीतिक यात्राओं तथा विभिन्न युवा सम्मेलनों में उनके द्वारा दिए गए भाषणों में सांप्रदायिकता को मुख्य निशाना बनाया गया। जैसे "नेहरू द्वारा भारत लीग" में किसी भी संप्रदायवादी या संप्रदायिक संगठन से जुड़े व्यक्ति को सदस्यता प्रदान करने का निषेध किया गया था। नेहरू ने धर्म को मात्र एक सांस्कृतिक प्रेरणा तथा विरासत के रूप में स्वीकार किया।

2. नेहरू संगठित धर्म के विरोधी थे। उन्होंने सदैव धर्म के राजनीतिकरण को घृणास्पद बताया। उनके अनुसार, कोई भी संगठित धर्म निर्विवाद रूप से एक निहित स्वार्थ बन जाता है। स्वतंत्र भारत में संप्रदायवाद के खात्मे के लिए प्रतिबद्ध नेहरू ने आयंगर के माध्यम से एक संकल्प पारित कराया। नेहरू सांप्रदायिकता को किसी भी बाह्य आक्रमण से अधिक खतरनाक मानते थे।

नेहरू की विचारधारा धर्मनिरपेक्षता पर

1. नेहरू के अनुसार, धर्मनिरपेक्ष राज्य का अर्थ है कि, "राज्य सभी धर्मों की सुरक्षा करें" किंतु दूसरों की कीमत पर किसी धर्म का पक्षपोषण न करें, और न हीं किसी धर्म को राज्यधर्म के रूप में स्वीकार करें।

2. नेहरू के दृष्टिकोण में लोकतंत्र, समाजवाद और धर्म निरपेक्षता आपस में घनिष्ठता से जुड़े हैं तथा संयुक्त रूप से ये एक ऐसे भारत का निर्माण करने में सक्षम है जो मानव की महता तथा उसके व्यक्तित्व के संपूर्ण विकास को प्रोत्साहित करें, जिसमें दलितो एवं गरीबों के जीवन स्तर में भी स्तरीय सुधार आए।

3. धर्मनिरपेक्षता के प्रति नेहरू की प्रतिबद्धता संपूर्ण, व्यापक एवं शर्त रहित थी। जैसे उन्होंने भाखड़ा नांगल जैसे बांधों को आधुनिक मंदिर, मकबरा या विश्वविद्यालय की संज्ञा दी। उनके प्रयासों से हीं कालांतर में 42वें संविधान संशोधन 1976 में संविधान की प्रस्तावना में सेक्युलर शब्द जोड़ा गया।

निष्कर्षः

उपरोक्त तथ्यों के विश्लेषण के आधार पर निष्कर्षतः यह कहा जा सकता है कि नेहरू ने महात्मा गांधी की तरह धर्म की नैतिक अनिवार्यता को व्यावहारिक आवश्यकता के रूप में स्वीकार करते थे। उन्होने धर्मनिरपेक्षता को एक आदर्श के रूप में सामने रखा तथा समाज में उसके प्रचार-प्रसार के लिए गंभीरता से कार्य किया। 


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