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डायरी प्रविष्टि – "अधूरा प्यार"

 

📅 तारीख: 18 फरवरी 2024

🕒 समय: रात्रि 11:45 बजे


प्रिय डायरी,


आज बहुत दिनों बाद उसकी याद आई। नहीं, शायद उसकी याद तो हर रोज़ आती है, बस मैं खुद को यह मानने नहीं देता।


आज अचानक फोन की गैलरी में पुरानी तस्वीरें देखते हुए उसकी एक तस्वीर सामने आ गई। मैं कुछ देर तक बस उसे देखता रहा। उसकी वही मुस्कान, जो एक वक्त मेरी सबसे पसंदीदा चीज़ थी। वो मुस्कान, जो अब सिर्फ तस्वीरों में बची है।


पता नहीं, वो अब कहाँ होगी? कैसी होगी? क्या कभी उसे भी मेरी याद आती होगी? या फिर मैं उसकी ज़िंदगी का एक भूला-बिसरा नाम बन चुका हूँ?


"अधूरा प्यार भी अजीब होता है।"


वो दिल के किसी कोने में हमेशा जिंदा रहता है, लेकिन ज़िंदगी में जगह नहीं बना पाता।


हम दोनों कभी साथ नहीं थे, लेकिन फिर भी हम एक-दूसरे के बिना अधूरे थे। शायद इसीलिए, जब वो दूर चली गई, तो ऐसा लगा जैसे मेरे अंदर से कुछ चला गया हो।


आज भी उसकी कही कुछ बातें याद हैं—

"हम हमेशा साथ रहेंगे, चाहे कुछ भी हो जाए!"


पर देखो, वक़्त ने कैसा खेल खेला? हम आज दो अजनबियों की तरह हैं।


मैंने उससे कभी यह नहीं पूछा कि वो क्यों चली गई। शायद इसलिए कि मैं जवाब से डरता था। या शायद इसलिए कि मैं जानता था कि कुछ सवालों के जवाब नहीं होते।


पर क्या प्यार भी कभी अधूरा रह सकता है? अगर अधूरा रह गया, तो क्या वो सच में प्यार था?


मुझे नहीं पता।


*"कुछ रिश्ते मुकम्मल नहीं होते, लेकिन उनकी अधूरी कहानी ज़िंदगी भर हमारे साथ चलती है।"


आज बहुत समय बाद मैं उससे जुड़ी यादों को खुद में महसूस कर रहा हूँ। उसके कहे हुए शब्द अब भी मेरे ज़हन में गूंजते हैं।


काश, मैं एक बार उसे फिर से देख सकता। सिर्फ यह कहने के लिए कि हाँ, मैं अब भी तुम्हें याद करता हूँ। लेकिन यह बात कभी कह नहीं पाऊँगा।


शायद यही अधूरे प्यार की सबसे बड़ी सच्चाई है—

"हम इसे कभी भूल नहीं पाते, लेकिन इसे जी भी नहीं पाते।"


आज इस डायरी में यह लिखकर मैं उसे आखिरी बार अलविदा कहना चाहता हूँ।


पर क्या सच में अलविदा कहा जा सकता है?


शायद नहीं... शायद कभी नहीं।


- [कुंदन]





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