पचास साठ के दशकों में स्कूल की किताबों में एक अनिवार्य पाठ हुआ करता था जिसमें किसी महापुरुष की जीवनी का सारांश होता था। बच्चे उनकी जीवनी पढ़ कर अच्छे संस्कार ग्रहण करते थे। इन पाठों में अधिकांश रूप से स्वामी विवेकानंद, लोक नायक तिलक, राजा राम मोहन राय, डाक्टर भीमराव अम्बेडकर, लाला लाजपत राय, भगत सिंह, राज गुरू, महात्मा गाँधी आदि की जीवन कथाएं होती थीं। घर के बुज़ुर्ग लोग भी दुनियादारी की बातों को त्याग कर समाज कल्याण के कार्य करते थे। जिससे बच्चों के मन में समाज कल्याण, मानवीय मूल्यों और उच्च चरित्र का विकास होता था।
आजकल तो आपराधिक रिकार्ड वाले राजनेता ही बच्चों के आदर्श बन गए हैं। माता पिता भी आपराधिक राजनेताओं को वोट देते हैं और उन्हीं के गुण गाते हैं। माँ-बाप को देख कर बच्चों के चरित्र का भी हनन हो रहा है। एक प्रकार से यह बच्चों के ब्रेन वाश का कार्य है। आजकल बच्चों को यह सिखाने वाला कोई नहीं कि साधारण और सरल जीवन ही उनके लिए उचित मार्ग है। इस मार्ग पर कठिनाइयाँ हो सकती हैं पर इसी राह पर चलने से बच्चों और समाज का भविष्य सुरक्षित रह सकता है। माता पिता को ही अपने बच्चों का आदर्श बनना होगा।
अमित हमेशा अपने पिता सनोज को कोसता रहता था। बचपन से वह देखता आया था कि उसके पिता के साथ काम करनेवाले महेश अंकल बड़े ठाठ-बाठ से रहते थे। उनके घर में नए ज़माने की सारी सुख सुविधाएँ थीं। घर में एयरकंडीशनर, फ्रिज, माइक्रोवेव, टेलीविजन, और एक चमचमाती कार थी। उनके बच्चों के पास स्मार्ट फोन थे। लेकिन अमित के पिता सनोज के घर पर एक पुराना टी.वी और छत का पंखा था। वह ऑफिस भी अपने पुराने स्कूटर पर जाते थे। अमित के पिता और महेश अंकल की तन्खवाह भी बराबर थी फिर भी अमित हर चीज़ के लिए तरसता था जबकि महेश के बच्चों के पास हर रोज़ कोई न कोई नई वस्तु आ जाती थी।
अमित अपने पिता सनोज को बिल्कुल निकम्मा और गैर ज़िम्मेदार व्यक्ति समझता था। बड़ा होकर अमित नौकरी की तलाश करने लगा। उसके पड़ोसी महेश अंकल का बेटा भी नौकरी की तलाश कर रहा था। दोनों युवकों ने एक कम्पनी में सेल्समेन के लिए आवेदन किया। साक्षात्कार के समय जब अमित से उसके पिता का परिचय पूछा गया तो साक्षात्कार कर्ता व्यक्ति ने न केवल उसके पिता का सम्मान पूर्वक नाम लिया बल्कि अमित का चयन केवल इस लिए हो गया कि वह श्री सनोज का पुत्र है। लोग समझते हैं जैसा पिता है वैसा ही पुत्र भी होगा। यदि पिता चरित्रवान है तो बेटा भी चरित्रवान होगा। साक्षात्कार कर्ता उसके पिता को जानता था और उनका बहुत सम्मान करता था। बेटे का चयन उसके गुणों से नहीं बल्कि उसके पिता के व्यक्क्तिव और अच्छे चरित्र के कारण हुआ था।
जिस पिता को अमित आर्थिक कमी के कारण कोसता रहता था उसे यह ज्ञात ही नहीं था कि दूसरे लोग उसके पिता का सम्मान उनके उच्च चरित्र, इमानदारी, और कर्तव्यनिष्ठा के गुणों के कारण करते थे जिनका मूल्य पैसों से नहीं आंका जा सकता।
धनवान होने से सम्मान नहीं मिलता परन्तु
चरित्रवान व्यक्ति का सब सम्मान करते हैं।