आजकल के आधुनिक युग में हर इन्सान के पास सब कुछ है परन्तु संतोष और शांति नहीं है। जिस घर में माता पिता दोनों सर्विस करते हैं उस घर में प्राय मियाँ-बीवी में झगड़ा होता रहता है। हाल ही में इस बारे में की गई एक खोज से ज्ञात हुआ है कि बच्चों के व्यवहार में 90% प्रभाव, उनके अभिभावकों के व्यवहार का होता है। माता पिता जैसा व्यवहार करेंगे बच्चा भी वैसा ही व्यवहार करना सीख जाएगा। अगर मियाँ-बीवी का व्यवहार आपस में या समाज के अन्य लोगों के साथ ठीक नहीं है तो बच्चे का व्यवहार भी उनके नक्शे कदम पर होगा। माँ-बाप के ग़लत व्यवहार के कारण बच्चों में अनेक प्रकार की समस्याएँ पैदा हो सकती हैं। जब व्यक्ति का व्यवहार उचित नहीं होता तो वह प्राय: तनाव में रहता है। इसी प्रकार बच्चा जब अनुचित व्यवहार का सामना करता है तो उसके मस्तिष्क में अवांछित तनाव उत्पन्न हो जाता है। घर का झगड़ालू वातावरण बच्चों के मन में भय और शंका का कारण बन जाता है जिससे बच्चे अवसाद यानि डिप्रेशन के शिकार हो जाते हैं।
मियाँ-बीवी की तकरार तो हर घर की कहानी है। बच्चे मरें या जियें, पास हों या फेल हों उनकी बला से। बच्चों के सामने जब माँ-बाप आपस में लड़ते झगड़ते हैं तो वह यह भूल जाते हैं कि वह अपने बच्चों के भविष्य के साथ खिलवाड़ कर रहे हैं। बचपन के दिन होते हैं ख़ुशी के, आज़ादी के, हँसने और खेलने के। यदि घर का माहोल कलहकारी हो तो बच्चे अपना बचपन भूल जाते हैं। उनका भोलापन खो जाता है। वह एक प्रकार के आंतक के शिकार हो जाते हैं जहाँ कभी भी कुछ भी हो सकता है। इस तनाव के कारण उनका मानसिक विकास रुक जाता है। उनके मन में एक अनजाना डर घर कर लेता है। माता पिता की ग़लतियों के कारण बच्चों को रोने धोने के माहोल में रहना पड़ता है। उनका विश्वास और भरोसा समाप्त हो जाता है। ऐसे बच्चे कभी किसी पर विश्वास नहीं कर पाते।
एक सर्वेक्षण के अनुसार 80 प्रतिशत बच्चे अपने माता पिता के झगड़ों से क्रोधी, चिढ़चिढ़े, और तनावग्रस्त हो जाते हैं। माता पिता से उनका लगाव समाप्त हो जाता है। ऐसी स्थिति में बच्चे माता पिता का सम्मान नहीं करते, असुरक्षा की भावना से ग्रस्त हो जाते हैं, उन्हें अपने भविष्य की चिन्ता सताने लगती है, बच्चे हीन भावना का शिकार हो जाते हैं। जिस घर का माहोल कलह पूर्ण हो उस घर के बच्चों का शोषण करने वाले बहुत लोग तैयार रहते हैं। जानकार लोग ही बच्चों का शोषण करने लगते हैं।
घरेलू हिंसा देख कर बच्चों में हिंसक गुण अवतरित होने लगते हैं। बड़े होकर वह हिंसा करने लगते हैं। कभी कभी उनकी हिंसक वारदात उनकी मौत का कारण भी बन जाती है। कुछ बच्चे अपराधिक गतिविधियाँ करने लगते हैं। एक प्रकार से घर की हिंसा बच्चों को अपराधी बनने की प्रेरणा देती है। कच्ची उम्र में जो अनुभव बच्चों को मिलता है वह जीवन पर्यन्त रहता है। बचपन में हिंसक गतिविधियाँ देखने से बच्चे भी हिंसक प्रवृती के बन जाते हैं।