प्यार वह अवस्था जहाँ सारे विचार, सारी इच्छाए सिमट कर एक बिंदु पर केंद्रित हो जाये। अपने पराये का भेद मिट जाए, सिर्फ और सिर्फ खो जाने की चाहत रह जाए। जब प्रेम अपने शुद्धतम रूप में प्रकट होता है-अकारण, बेशर्त-तब मंदिर बन जाता है। जब प्रेम सफल होता है, तो जीवन सार बन जाता है।