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बदनाम लड़की

बदनाम लड़की

पीपल के पेड़ के नीचे जून महीने की शाम में भी ठंडी हवा बह रही थी।गंगातट, जहां से गंगा काफी दूर थी, फिर भी वहां का नजारा और वातावरण काफी मनोरम था।गोलाकार सीढ़ियों पर बैठे कुछ दोस्तों के संवाद तेज चल रही हवाओं के साथ बहकर गंगा के एक घाट से दूसरे घाट तक पहुँच रहे थे।वार्तालाप अच्छी हो या बुरी हर बार ऊपर से सुन रहा पीपल अपने पत्तेनुमा हाथों से जोर-जोर से तालियां बजाने लगता था।अस्तचलगामी सूर्य तो जैसे गंगा के एकदम किनारे से इन सारे दृश्यों की फ़ोटो ले रहा था। तीन दोस्त गंगा की ओर मुँह किये सीढ़ियों पर बैठे थे,जबकि शेखर दो सीढ़ी नीचे दोस्तों की ओर मुँह किये गंगा को अपनी पीठ दिखा रहा था।शेखर ने अभी-अभी अपना बी-टेक पूरा किया था और नाम के आगे इंजीनियर जोड़ने के बाद हाथ में एक अच्छी सी नौकरी लिए अवकाश मनाने घर आया हुआ था।दिल्ली में रहकर ही उसने दसवीं कक्षा के बाद पूरी पढ़ाई की थी लेकिन शहरी हवा उसे लगी नहीं थी।ना तो वो ज्यादा हिंदी में बात करता था और अंग्रेजी का प्रयोग तो बिलकुल ही नहीं ।जो उससे जैसे बात करते उससे उसी तरह बात किया करता। मतलब मगही भूलने का स्वांग सात साल बाहर रहने के बाद भी वो नहीं करता था।शेखर जितना बुद्धिसम्पन्न था उसकी देह की बनावट भी उतनी ही अच्छी थी।चौड़ी छाती और चौड़ी कलाइयों के साथ एक आदर्श लंबाई का स्वामित्व भी उसके पास था।विचार में इतनी नम्रता थी कि कोई कह ही नहीं सकता था कि ये लड़का अभी से ही आठ लाख रुपया सालाना कमाने लगेगा।आज भी जब वो घर आता था तो सारे बड़े-बुजुर्गों को पैर छूकर प्रणाम करता और अपने बचपन के दोस्तों के साथ ही समय बिताता।उसके तीन ही करीबी दोस्त थे।नमन,अमर और निलेश।तीनों अब अपने पैरों पर खड़े थे। इस समूह में रोजगार पाने में सबसे ज्यादा देर राजेश को ही हुई थी।नमन ने अपने पापा के रोजगार में हाथ बटाना शुरू कर दिया था और अपनी युवा सोच और तकनीक की सहायता से उसने काफी बड़ी दूकान तो कर ही ली,साथ-साथ अब अपनी दूकान की दूसरी शाखा वो बेगूसराय में बहुत जल्द ही खोलने वाला था।अमर को बचपन से ही ठेकेदारी का शौक था और अब वो ठेकेदारी में अच्छी जड़ें जमा चुका था।तो वहीं नीलेश जो कि बचपन से ही पढ़ाई में थोड़ा कमजोर था और गरीबी उसके परिवार की एक अभिन्न अंग बनी हुई थी,जो कि जोंक की तरह चिपकी थी और दूर होना नहीं चाहती थी।इसी कारण पढाई में कमजोर होने के बावजूद वो पढ़ाई छोड़कर कुछ और कर भी नहीं सकता था।ना तो वो ठेकेदारी कर सकता था और ना ही उसके पास इतनी पूंजी थी कि वो कोई रोजगार ही करता।दिमाग भी उसका मंद था इस कारण वो इंजीनियरिंग भी नहीं कर सका।अंततः किसी तरह वो राज्य सरकार की एक बहाली में पहले अस्थाई फिर स्थाई तौर पर शिक्षक हो गया और किसी तरह गरीबी से थोड़ा-बहुत नाता तोड़ने में वो सफल हो पाया। आज लगभग पूरे डेढ़ साल बाद चारों दोस्त इकट्ठा हुए थे।काफी तरह की बातें चल रही थीं।सबसे ज्यादा तो सारे दोस्त मिलकर राजेश को चिढ़ा रहे थे,कि "अब तो बाबू तुम आठ लाख रूपए सालाना कमाओगे.....।सारे लोग इंजीनियर साहब बोलेंगे सो अलग।"अमर ने हंसी करते हुए कहा। "अरे जितना मैं साल भर में कमाऊँगा उतने से कहीं ज्यादा तो तुम एक ठेके में कमा लोगे ठेकेदार साहब।" राजेश ने चेहरे पर हलकी हँसी लाते हुए मजाकिया लहजे में कहा।कुछ देर और इसी तरह बातें चलती रही फिर एकाएक नीलेश ने पूछा,"अच्छा राजेश कॉलेज में तुम्हारी जो गर्लफ्रेंड थी वो तो अब छूट जायेगी यार, या वो भी तुम्हारी ही कंपनी में नौकरी पा गयी?ऐसे भी उसको तुम्हारी कंपनी बहुत पसंद थी।" बहुत देरतक वही कमाई और काम-धंधे की गप में जैसे एक बोरियत आ गयी थी।सभी मजाक कर के लगभग सुस्त पड़ गए थे कि तभी मास्टर साहब ने तो जैसे सभी पर गुलाब-जल छिड़क कर ताज़गी से भर दिया।और एक नए विषय के प्रश्नो के साथ सभी राजेश पर टूट पड़े।इस विषय में तो राजेश बिलकुल अकेला हो गया था।ऐसा लग रहा था कि कबड्डी के दो दलों में एक दल में बस एक ही खिलाड़ी खेल रहा है और दूसरे दल से सभी खिलाड़ी एक के बाद एक ताबड़तोड़ प्रहार किये जा रहे हैं।लेकिन राजेश घबराया नहीं और वो जानता था कि सभी मजाक के मूड में ही हैं,इसलिए उसने कहा- "देखो यार ,सबसे पहले तो मैं ये क्लियर कर देना चाहता हूँ कि सपना मेरी गर्लफ्रेंड नहीं थी।हमदोनों बहुत अच्छे दोस्त थे और अभी भी हैं।ये बात अलग है अब वो जॉब करने पुणे चली गयी है।" "हाँ-हाँ,रहने दो,रहने दो, ये फ़िल्मी डायलॉग.....।गर्लफ्रेंड नहीं ,फ्रेंड है...।सब पता है हमें....।" अमर ने अपने मुँह की बनावट बदलते हुए तीखे स्वर में कहा। "अब तुमलोगों को जो लगे यार,जो कहना चाहो कह लो।मैं क्या बोलूँ...?" राजेश ने उन्हें और समझाना दीवार पर सर पटकने जैसा समझा और उनके सामने हथियार डालते हुए अपना सर हिलाते हुए ये जवाब दिया। "अच्छा वो सब छोड़।अब तो सपना दूर चली गयी।ये बता तुम दोनों के बीच कुछ हुआ था या यूँ ही.....।" इस बार नमन ने अपने तरकश से ये रसीला बाण निकाला था जिसके रस में राजेश को छोड़कर ग्रुप के बाकी सारे सदस्य सराबोर हो गए।बस राजेश को ये विषबाण की भाँति चुभ गया और उसने गंभीर होते हुए उनसे पूछा, "तुमलोगों को लड़का लड़की के बीच में इन सारी चीजों के अलावा और कुछ नहीं दिखता है क्या....?" इस पर नीलेश ने ठहाके मारते हुए कहा, "लड़का-लड़की के बीच इसके अलावा होता ही क्या है.....?" और फिर सभी ठहाका मारकर हँस पड़े।राजेश अब क्रोधित हो रहा था।लेकिन उसने अपना गुस्सा जाहिर करना जायज नहीं समझा और बात काटते हुए पूछा, "ये बताओ गंगा जी का पानी अब सीढ़ियों तक आ पाता है कि नहीं?मैं देख रहा हूँ सीढ़ियों पर काफी मिट्टी भर गयी है।" "अरे....!गंगा जी का पानी तो बरसात में आएगा।तुमने तो यमुना किनारे रहकर ही खूब गंगा-स्नान किया होगा न...?" नमन ने व्यंगात्मक अंदाज में कहा और अपनी हथेली आगे बढ़ा दी जिसपर अमर और नीलेश ने ताली मारी और फिर जोरों का अट्टहास....। राजेश के सब्र का बाँध अब टूट गया और उसने बोल दिया, "देखो वैसे तो मैंने कुछ नहीं किया है लेकिन अगर कोई ऐसा करता भी है तो ना तो उसमें कोई बड़ी बात है और ना ही कुछ गलत है। "अब आया ना ऊँट पहाड़ के नीचे।" नीलेश ने कहा और अपनी बात को जारी रखते हुए बोला "गलत नहीं है तो तुम छुपा क्यों रहे हो?और अगर सच में कुछ गलत नहीं है तो नीतू के घरवाले घर छोड़कर क्यों चले गए...?" "देख यार मैं झूठ नहीं बोल रहा,बाकी तुमलोगों को जो समझना है समझो।" राजेश की स्थिति उस आदमी के मानिंद हो गयी थी,जोकि किसी ना किये अपराध के कारण पुलिस की गिरफ्त में हो और पुलिस ज्यादा भागदौड़ से बचने के लिए उसी को मार-मार कर अपराध की स्वीकृति ले रही हो। राजेश ने पहली दफा नीतू का नाम सुना था।वो इससे पहले किसी नीतू से परिचित नहीं था।अपनी आपसी वार्तालाप में नीतू का नाम सुनकर वो थोड़ा आश्चर्य में पड़ गया और वो ये जानने के लिए व्यग्र हो उठा कि आखिर ये नीतू है कौन,और उसके परिवार वालों ने घर क्यों छोड़ दिया?वो समझ गया था कि अगर किसी अच्छे प्रयोजन; जैसे नौकरी लगने या पढ़ाई के लिए नीतू के घरवालों को घर छोड़ना पड़ता तो नीलेश के कहने का तरीका दूसरा होता।उसे समझते देर नहीं लगी कि ये मामला कोई प्रेम-सम्बन्ध का हो सकता है। अपने बारे में सफाई देने और नीतू के बारे में पूछने के बाद उसके दिमाग में नीतू से सम्बद्ध अनेकानेक प्रश्नो का आगमन होने लगा । जिसका उत्तर जानने के लिए उसकी उत्कण्ठा काफी बढ़ गयी । एक बार पूछने के पश्चात जब तीनो दोस्त बापू के तीनों बंदरों की तरह मौन साधे बैठे रहे तो उसने फिर पूछा , "कोई बताएगा मुझे कि ये नीतू है कौन और उसके घरवालों को घर क्यों छोड़ना पड़ गया?" राजेश की हालत उस प्यासे की तरह हो गयी जिसे पता हो कि कुछ दूर बाद पानी है लेकिन वो वहां तक का रास्ता नहीं जानता हो ।और रास्ता ढूँढ़ने में उसकी प्यास और बढ़ती ही जा रही हो।तो राजेश की प्यास बुझाने का जिम्मा उठाया नीलेश ने।अब चूँकि प्यास जगाई उसने थी,तो प्यास बुझाना भी उसी का कर्त्तव्य बनता था। "यार अभी छह महीने पहले की ही बात है ,जब उसका परिवार बरहपुर छोड़कर चला गया।पहले नीतू को छोड़ो।क्या तुम्हें विजय याद है....? वही विजय जो टेंथ में अपने साथ पढता था।बरहपुर से ही तो आता था वो।" नीलेश के प्रश्न ने जैसे राजेश के दिमाग के अतीत का किवाड़ खोल दिया था।और राजेश वहां दाखिल हो उस परिचित का परिचय जुटाने में लग गया।उसे ज्यादा मशक्कत नहीं करनी पड़ी और कुछ ही सेकंड में विजय की तस्वीर राजेश के मस्तिष्क पर छप गयी थी। "अरे हाँ....!याद आया ,तुम उसी विजय की बात कर रहे हो ना ,जो लंबे-लंबे बाल रखता था।गोरा सा लड़का,जो रेंजर साइकिल से पढ़ने के लिए मोकामा आता था।" "हाँ-हाँ, सही पकड़े हैं।" अमर ने 'भाबी जी घर पर हैं......' धारावाहिक की किरदार 'अंगूरी भाभी' के तरीके से कहा ।लेकिन राजेश की द्विविधा ये जानकर कैसे समाप्त हो जाती कि विजय कौन है।उसके दिमागी प्रश्नो की संख्या में उत्तरोत्तर वृद्धि होने लगी।वह यह सोचने लगा कि कहीं विजय कोई शातिर अपराधी तो नहीं बन गया,और उसके ज्यादा तंग करने के कारण नीतू और उसके घरवाले घर छोड़कर चले गए हों।फिर उसके मन में ही एक जवाब गूँज उठा।नहीं-नहीं, पढ़ने में तो ठीक-ठाक था।विजय क्रिमिनल क्यों बनेगा?आखिर उसने अपनी तसल्ली के लिए फिर से प्रश्न किया, "कोई बताएगा.......!अगर नीतू ने घर छोड़ दिया तो उसमें विजय का क्या रोल है...?और ये नीतू है कौन यार......?" "बता रहे हैं,बता रहे हैं।तुम तो बहुत ही व्याकुल हो गए यार......।बिना देखे ही इतना इंटरेस्ट जाग गया नीतू में,देख लेते तब तो तुम भी बाकी लोगों की तरह पागल ही हो जाते।" नमन ने एक कुटिल मुस्कान के साथ उत्तर दिया जिसके बाद राजेश के चेहरे को देखकर ये साफ़ पता चल रहा था कि नमन की बातें उसे समझ नहीं आयीं हैं।और चेहरे के उसी भाव के साथ उसने पूछा, "क्या कह रहे हो तुमलोग मेरी कुछ समझ नहीं आ रहा यार....!" "अरे यार, विजय और नीतू का एक वीडियो पूरे मोकामा और आस-पास के गाँव में वायरल हो गया ।जिसके बाद नीतू के परिवार को अपनी इज्जत बचाने के लिए घर छोड़ देना पड़ा।"अमर ने उत्त्तर दिया। "और विजय,विजय ने भी घर छोड़ दिया क्या...?" "विजय घर क्यों छोड़ेगा,उसने ही तो वीडियो वाट्स-अप्प पे डाला था।वो क्यों घर छोड़ने लगा भाई.....!" "क्यों वीडियो में तो वो भी दिखा होगा न...?" "हाँ दिखा तो था।लेकिन अब यार लड़कों को इससे क्या फर्क पड़ता है।वो तो और गौरवान्वित होकर घूमता है।जैसे उसने कोई बड़ा काम कर दिया हो।" अमर और राजेश के बीच संवाद जारी था।अमर के इस उत्तर पर राजेश ने फिर से प्रश्न किया, "अच्छा एक ही वीडियो के कारण लड़की की इज्जत चली गयी और उसको घर छोड़ देना पड़ा और उसी वीडियो को फैलाकर कोई अपने आप को हीरो समझने लाग गया और उसकी इज्जत में बढ़ोत्तरी हो गयी.....!" "यार, तुम समझते नहीं हो।जिसने भी वीडियो देखा उसमे से ज्यादातर लोग नीतू को देखकर कहने लगे,बहुत मस्त वीडियो था कभी हमें भी चांस दो ना वीडियो बनाने का।" "छी यार....!लेकिन लोगों ने वीडियो देखा ही क्यों?चलो अगर गलती से देख भी लिया और उन्हें ये पता चला कि ये अपने ही घर-मोहल्ले की लड़की है तब तो वीडियो को इग्नोर कर देना चाहिए था।लोग और जाकर उसे तंग कर रहे हैं,चिढ़ा रहे हैं,ये कैसी बात हो गयी यार.....।" "ये बता,तूने बी-टेक किया है या किसी बाबा के आश्रम में रहकर आया है?पता है,विजय ने वीडियो के साथ ये कैप्शन भी लिखकर भेजा था कि 'बरहपुर की लड़की का वीडियो'।अब बता इतना पढ़ते ही कौन नहीं देखना चाहेगा?सारे लोगों ने दनादन डाउनलोड किया और उसी कैप्शन के साथ आगे फॉरवर्ड करते चले गए।" "अरे यार, जब उसने लिख दिया था कि ये बरहपुर की लड़की का वीडियो है ,तब तो लोगों को और डाउनलोड नहीं करना चाहिए था" "अच्छा...!बल्कि लोगों की जिज्ञासा और बढ़ जाती है।सभी ने ऐसा ही किया और सब ने डाउनलोड किया।" "नहीं यार जब हमें पता हो कि ये हमारे ही गाँव की लड़की का वीडियो है ,तो हमें देखना ही नहीं चाहिए था।अगर हम वीडियो नहीं देखते तो लड़की ने जो लड़कपन में या फिर प्यार में किया वो बात बस उस तक ही सिमित रह जाती, सार्वजनिक नहीं हो पाती।देखो,मेरे हिसाब से तो लड़की ने कोई गलत काम नहीं किया है , गलती की है तो विजय ने ।और अगर गाँव छोड़ना चाहिए था तो विजय को छोड़ना चाहिए था,नीतू को नहीं।मैं तो नीतू को कभी गलत नहीं मानता।देखो,इच्छाएं सभी की होती हैं, और अगर बिना दूसरे को कोई नुक्सान पहुंचाए हम अपनी इच्छा पूरी कर लेते हैं तो मैं उसको गलत नहीं मानता।शहर में तो,शहर छोड़ो गाँव में भी लड़के-लडकियां शादी से पहले सेक्स कर लेते हैं।जिसके बारे में पता चल गया तो वो नीतू जैसी संस्कार-विहीन और चरित्रहीन हो जाती है ,और सारे कारनामे करने के बावजूद अगर उसके बारे में कोई कुछ नहीं जान पाया तो सद्चरित्र और संस्कारवानों में उसका नाम अग्रगण्य हो जाता है।और उसके माँ-बाप अपनी छाती चौड़ी किये घूमते रहते हैं।और अपनी संतान का उदाहरण समाज में खुद पेश करने लगते हैं।" जिस तरह आम पक जाने के उपरान्त अपनी सुगंध से सभी को मोहित और आकर्षित कर लेता है,ठीक उसी प्रकार राजेश की ये ज्ञान से लबालब बातें सभी को आकर्षित करने लगी थीं।उसका हरेक शब्द मूढ़ समाझ की कोरी मानसिकता पर कुठाराघात कर रहा था।उसकी बातों से वहां बैठे तीनो दोस्त सहमत हुए।थोड़ी दूर पर बैठे राजेश के ही मोहल्ले के एक बुजुर्ग जिनकी अवस्था साठ साल रही होगी,राजेश के नजदीक आकर कहने लगे, "इतनी कम उम्र में इतनी समझदारी वाली बातें कर रहे हो ,कहाँ घर है तुम्हारा बाबू..?मैंने तुम्हें कभी नहीं देखा है...!" उनका घर राजेश के घर से 500 मीटर दूर था और दोनों एक दूसरे के लिये अपरिचित थे।राजेश ने नम्रता पूर्वक उन्हें अपना परिचय देते हुए कहा, "जी मैं कर्मवीर सिंह का लड़का हूँ और मैं बाहर में ही रहकर पढता था।इसीलिए आप मुझे नहीं पहचानते होंगे।" "अच्छा तुम कर्मवीर के बेटे हो!वही तो मैं कहूँ कि इन तीनों को तो पहचान रहा हूँ लेकिन तुम अपरिचित जान पड़ते हो।खैर,बहुत अच्छी सोच है तुम्हारी,अगर सारे युवा तुम्हारी तरह सोचने लग गए तो सचमुच आज नीतू को घर नहीं छोड़ना पड़ता।" इतना कहकर उन्होंने राजेश के सर पर हाथ रखकर आशीर्वाद दिया।राजेश भी थोड़ा गौरवान्वित महसूस करने लगा......। पूर्णरूपेण गोल सूर्य जोकि बिलकुल लाल दिखने लगा था,गंगा में डुबकी लगा गया और रात गंगातट से दौड़ती बाहर सब जगह फैलने लगी।चारों दोस्तों ने अब और ज्यादा देर गंगातट पर बैठना मुनासिब नहीं समझा और सर्वसम्मति से घर की ओर प्रस्थान कर गए।रास्ते में साथ चल रहे उसके तीन दोस्तों के अलावा कई प्रश्न अभी भी राजेश के दिमाग में चल रहे थे और उसी क्रम में एक प्रश्न दिमागी कश्मकश से निकल फिसलकर जुबान पर आया। "यार ये बताओ,विजय तो अपने साथ पढता था। नीतू भी अपने साथ ही पढ़ती थी क्या?मैंने तो कभी उसे नहीं देखा था...!" बहुत देर से शांत नीलेश ने पूर्ण जानकारी देते हुए बताया, "नहीं नीतू ग्रेजुएशन के दूसरे वर्ष में थी और विजय भी उसके साथ कॉलेज में पढता था। विजय इंटर पास करने के बाद पैसे कमाने के लिए बाहर चला गया लेकिन दो साल में ही उधर से लौटकर आ गया और फिर से पढ़ाई के साथ-साथ प्रतियोगी परीक्षाओं के लिए तैयारी भी करने लगा।चूँकि दोनों बरहपुर के ही थे इसलिए साथ-साथ कॉलेज आते थे।इसी क्रम में दोनों की दोस्ती हुई और............। अब लगभग सारा दृश्य राजेश के सामने था।कुछ देर में ही सभी का घर आ गया और एक दूसरे को 'शुभ-रात्रि' और कल मिलेंगे बोलकर वो अपने-अपने घर चले गए। राजेश का मनः-मंथन अभी जारी था। वो सोचे जा रहा था कि बस अपने मनोविनोद के लिए लोग किसी की भी जिंदगी बर्बाद कर देते हैं।उसे अमर की बात याद आ रही थी जो उसने रास्ते में कही थी कि यार तुम सच कहते हो बाकी सारे लोग ही अगर वो वीडियो नहीं देखते तो इसका ये दुष्परिणाम न होता।मैं भी वो वीडियो देखने को व्याकुल था,लेकिन अब मैं तुमसे वादा करता हूँ कि मैं कोई भी पोर्न वीडियो नहीं देखूंगा। "नहीं अमर मेरे कहने का ये मतलब नहीं है कि हम कोई भी पोर्न वीडियो देखें ही नहीं।देखो,मैंने पहले भी कहा था कि अपनी कुछ इच्छाओं की पूर्ति अगर बिना किसी और को नुक़सान पहुंचाए कर सकते हैं तो हमें अपनी इच्छापूर्ति कर लेनी चाहिए।कुछ लोगों का वीडियो बनाना प्रोफेशन होता है।और एकांत में हम अपनी इच्छापूर्ति के लिए उनका वीडियो देखते हैं तो मेरे हिसाब से हम कुछ बुरा नहीं कर रहे।तुम समझ रहे हो ना....!" उसके इस जवाब और सुझाव पर पूरा समूह जोर से हँसा था और अभी उस बात को याद कर राजेश के चेहरे पर भी मुस्कान आ गयी।लेकिन अगले ही पल वो ख़ुशी चिंता में परिणत हो गयी और वो सोचने लगा कि नीतू के घरवाले अपना घर छोड़कर कहाँ गए होंगे और किस तरह रह रहे होंगे।उस रात राजेश ढंग से खाना भी नहीं खा पाया और न ही नींद को अपनी बिस्तर पर बुलाने में उसे कामयाबी मिली।रात भर बेचैन मन के साथ जागने के बाद वो बेसब्री से सुबह की प्रतीक्षा कर रहा था। अगला दिन रविवार था और नीलेश की छुट्टी थी।अमर भी अभी ज्यादा व्यस्त नहीं था ।हाँ,नमन जरूर अपनी दुकानदारी बढ़ाने में यत्नशील हो गया था। आज छुट्टी के दिन और भी ज्यादा लोग खरीददारी करने आएंगे इसलिए वो दूकान पर ही था ।बाकी तीनों दोस्त नीलेश के घर के पास इकट्ठा हुए।उसके घर के पास ही एक पुराना स्कूल था,जिसकी इमारत आधी गिर चुकी थी।और उसकी परती जमीन बच्चों के खेलने के काम आती थी।बाकी बची जगह पर बैठकर लोग ताश खेला करते थे।इन तीनों दोस्तों में किसी को ताश खेलना नहीं आता था लेकिन तीनो वहीं बैठकर बातें कर रहे थे। कुछ देर तक बातों का सिलसिला चलने के बाद राजेश ने पूछ दिया, "नीलेश ये बता,तू तो पढ़ाने के लिये बरहपुर ही जाता है।नीतू के घरवाले कहाँ गए कुछ पता है तुझे....?" "नहीं यार किसी को कुछ पता नहीं वो लोग कहाँ गए।" "ऐसा कैसे हो सकता है कि किसी को कुछ पता न हो।उनके खेत तो होंगे न ....!नीतू के पिताजी करते क्या थे अपने जीविकोपार्जन के लिए?" "थे तो वो किसान ही यार और उनके घर का पूरा खर्च खेती से ही चलता था।उनके पास तो बहुत जमीन थी।" "तो क्या उन्होंने वो सब बेच दिया..?" "अब ये तो मुझे नहीं पता राजेश ,लेकिन जितनी जल्दी वो घर छोड़कर गए हैं ,मुझे नहीं लगता वो खेत बेच के गए होंगे।" "हाँ तो उनके जमीन की देखरेख अभी कौन करता है?उनका खेत कौन बोता है,कोई ना कोई तो होगा....?" "हाँ, हो सकता है ।लेकिन तुम इतनी ज्यादा पूछताछ क्यों कर रहे हो?" "नीलेश मुझे पता करना है कि आखिर वो लोग हैं कहाँ....?" "अच्छा,पता करके क्या करोगे...?" "मैं उन्हें उनके गाँव लेकर आऊँगा।" "वाह रे हीरो...!ये कोई मूवी नहीं चल रही है।और हाँ,वो लोग खुद गाँव छोड़कर गए हैं ,उन्हें भगाया किसी ने नहीं....।" "जो भी हो ,जब वो बर्दास्त से ज्यादा तंग हुए होंगे तभी उन्होंने घर छोड़ा होगा।चलो,मुझे पता करना है कि वो लोग कहाँ गए।" "पगला गये हो क्या.....,और कोई काम नहीं है क्या?" "तुमलोगों को चलना है तो चलो,नहीं तो मैं अकेले ही जाऊँगा।" नीलेश और राजेश के बीच चल रही वार्तालाप को अमर सुनता रहा।उसे ऐसा लग रहा था जैसे वो किसी रोचक धारावाहिक में सास और बहू के बीच चल रही प्रश्नोत्तरी का आनंद ले रहा हो। राजेश ने अब जिद बाँध ली थी कि वो जाएगा,इसका मतलब था कि वो वहाँ जाकर ही दम लेगा।इस बात से अमर भलि प्रकार परिचित था।नीलेश के बार-बार मन करने पर भी राजेश नहीं माना और अंततः नीलेश भी परास्त होकर अमर और राजेश के साथ चलने को तैयार हो गया। तीनों नीतू के घर पहुंचे और उनके पड़ोसियों से ये पूछा कि उनका खेत कौन सा है और उसका अनुरक्षण किसके जिम्मे है? पड़ोसियों ने कहा कि खेत कहाँ है ये तो वे जानते हैं लेकिन अभी किसकी देख-रेख में है, इसकी जानकारी उन्हें नहीं है।एक और पड़ोसी के घर पूछने पर उसने बताया कि मैं पक्का तो नहीं कह सकता,लेकिन सरोज यादव पहले भी उनकी खेती में मदद करता था और घर के भी कुछ काम कर दिया करता था।हो सकता है उनके खेतों की जिम्मेदारी अभी उसी ने ले रखी हो।उस पडोसी का अंदाजा सही निकला।तीनो ने गाड़ी घुमाई और सरोज के घर पहुँच गए।राजेश इतना बेचैन था कि उसके घर के बाहर निकलते ही वो तुरंत पूछ बैठा, "आप ही हैं सरोज जी....?" "ह..हह...हाँ,कहिये मुझसे क्या काम है..?" "वो दरअसल हमें पता करना है कि मुखिया जी कहाँ रहते हैं?" "मुझे क्या मालूम मुखिया जी कहाँ रहते हैं...!" सरोज यादव ने थोड़ी रुखाई से उत्तर दिया।लेकिन उसका चेहरा एक पारदर्शी पर्दे की तरह हो गया था,जिसमे साफ़ दिख रहा था कि पर्दे के उस पार उसने झूठ छुपा रखा है। "मुझे पता है कि आप जानते हैं कि मुखिया जी कहाँ हैं।देखिये,मैं उनका रिश्तेदार हूँ,कृपया आप मुझे बता दीजिये कि वो हैं कहाँ...." "मुझे कुछ नहीं पता उनके बारे में।" एक और झूठ बोलने के बाद सरोज अपने घर जाने लगा था।राजेश भी सचमुच कुशाग्र बुद्धि का था।इस बात का अंदाजा उसे पहले से ही था कि मुखिया जी के खेत की जो भी देख-रेख कर रहा होगा वो उनके बारे में नहीं बताएगा।इसलिए वो अपने प्लान 'बी' पर अमल करने लगा।राजेश जब जा रहा था तो उसने अपनी पीठ पर एक बैग लटका रखा था जिसके अंदर क्या है इसके बारे में उसके किसी दोस्त को कुछ पता नहीं था।उसने सरोज को एक किनारे बुलाकर कहा, "देखिये, मेरे पास आपको मुफ़्त में देने के लिए एक ऐसी चीज है,जो अभी आपको बहुत पैसे खर्च करने के बावजूद भी नहीं मिलेगी।और मैं आपको ये आश्वासन देता हूँ कि मैं उन्हें ये बिलकुल नहीं बताऊंगा कि आपने मुझे उनके बारे में बताया है।सरोज रिश्वत की लालच में पड़ गया।उसका मुखमंडल ही अलग दिखने लगा ।उसने पूछा, "ऐसी कौन सी चीज है आपके पास...?" ""दारु...." शराब का नाम सुनते ही सरोज के चेहरे की चमक और बढ़ गयी।उसे ऐसा लगने लगा जैसे सचमुच कोई अनमोल खजाना उसके हाथ लगने वाला है।बिहार में शराबबंदी के बाद शराब की अहमियत कोहिनूर से कम नहीं रह गयी थी।राजेश के मामा भी बहुत बड़े शराबी थे और उन्होंने ही राजेश को शराब लाने के लिए कहा था। लेकिन राजेश अब उस शराब का इस्तेमाल रिश्वत के रूप में कर चुका था।सरोज की ख़ुशी का तो कोई ठिकाना ही नहीं रहा ।वो मन-ही-मन सोच रहा था कि काश ऐसे 500-1000 मुखिया जी का पता उसके पास हो तो उसके पास अभी कितनी शराब आ जाती। सरोज ने जो बताया उसके अनुसार मुखिया जी दिल्ली में ही रहते थे ।राजेश ने तो अब अपना विचार और भी पक्का कर लिया कि वो उनके परिवार से अतिशीघ्र मिलेगा।वैसे तो राजेश एक महीने की छुट्टी पर था और एक महीने बाद वो अपनी पेशेवर जिंदगी की दहलीज में पहला कदम रखने वाला था।लेकिन अब उसने विचार बदल दिया था ,उसने एक हफ्ते पहले ही दिल्ली वापस जाना ज्यादा उचित समझा। बरहपुर से लौटने के बाद वो सीधा रेलवे-स्टेशन गया और पुराना टिकट रद्द करवाकर नया टिकट एक हफ्ते पहले का ले लिया।माँ को भी इस बात की सूचना दे दी कि वो एक हफ्ते पहले ही दिल्ली वापस लौट जायेगा। मंद-मंद दिन बीते और छुट्टियां समाप्त हुईं और राजेश के दिल्ली जाने का समय आसन्न आ गया।जाने के दिन उसके तीनो दोस्त उसे छोड़ने के लिए रेलवे स्टेशन पहुंच चुके थे।राजेश का बैग माँ के प्यार से भरकर काफी भारी हो चुका था।चूँकि राजेश अब नौकरी करने जा रहा था तो माँ ने उसे समझाकर भेजा था कि नौकरी-वौकरी के चक्कर में वो खाने की उपेक्षा कभी ना करे।समय से खान-पान और सेहत से सम्बद्ध जितनी भी हिदायतें एक माँ अपने बेटे को दे सकती थी,उन्होंने वो सब राजेश को समझा दिया।स्टेशन पर यात्रियों की भीड़ जमा हो चुकी थी जिसमें एक गुच्छा राजेश और उसके दोस्तों का भी था। राजेश के सभी दोस्त जानते थे कि ये थोड़ा ज्यादा ही भावुक है इसलिए वो उसे समझा रहे थे,देख भाई,नीतू के बारे में पता चल जाए तो ठीक, नहीं तो ज्यादा समय बर्बाद ना करना।अपनी जिंदगी पे ध्यान देना यहां कोई किसी का नहीं होता।सारे दोस्त अपनी-अपनी राय दे रहे थे और राजेश अपने विचार-सागर में गोते लगा रहा था।इतने में सीटी देती हुई ट्रेन आई,सारे दोस्तों ने राजेश को उसकी नियत सीट पर बिठाकर अलविदा कहा। ट्रेन सीटी देती हुई अपनी गति से पश्चिम दिशा में गतिमान हो गयी।ट्रेन के बाहर वृक्ष-श्रृंखलाएँ पीछे छूटने लगीं।वो किसी दोषी व्यक्ति के समान भागती नजर आ रही थीं।उन्हें देख राजेश को लगा जैसे ये वृक्ष नहीं ,वो अपराधी है,जिससे ये पूछे जाने पर कि नीतू का क्या कसूर था जो उसे गाँव छोड़ना पड़ा,अपनी नजर चुराते हुए छिप जा रहे थे।अपने सहयात्रियों से मानसिक तौर पर अनुपस्थित राजेश ट्रेन के बाहर देखता रहा और उसका दिमाग तरह-तरह के भावों का क्रीड़ा-स्थल बना रहा।सूर्य का श्वेत प्रकाश मलिन हो गया और कब भागते पेड़ों को पीछे कर रजनी ने ट्रेन के बाहर और अंदर अपना अस्तित्व कायम कर लिया ये राजेश को पता भी नहीं चला।सहयात्रियों द्वारा सोने के लिए सीट व्यवस्थित करने के अनुरोध पर उसे ये आभास हुआ कि रात हो गयी है।उसने भी तब माँ का दिया खाना खाया और फिर विचारों के सागर में उठती-डूबती लहरों पर कब सो गया कुछ पता नहीं चला......। सुबह जब उसकी आँख खुली तो ट्रेन ग़ाज़ियाबाद स्टेशन पर खड़ी थी।"मतलब दो घंटे और", उसने मन-ही-मन कहा।ट्रेन अपने समय से कुछ घंटे लेट नयी दिल्ली रेल्वे स्टेशन पहुंची और राजेश मेट्रो का सहारा लेते हुए अपने गंतव्य जी टी बी नगर पहुँच गया।सरोज द्वारा दिए पते के मुताबिक़ उसके परिवार वाले उत्तम नगर में रहते थे।उसने सोचा क्यों ना आज ही जाकर नीतू और उसके माँ-बाप से मिल लिया जाए।उसने अपना सामान अपने एक रूम के फ्लैट में रखा,थोड़ी साफ़-सफाई की,स्नान करने के बाद खाना खया और फिर शाम होने की प्रतीक्षा करने लगा। शाम हुई,दिल्ली की सड़कों पर वाहनों का आवागमन काफी बढ़ गया।लोगों से ज्यादा सड़कों पर अब गाड़ियां दिख रही थीं।राजेश के फ्लैट से मेट्रो स्टेशन का रास्ता पैदल 10 मिनट का था।कारों की लंबी कतारें,जिसके पीछे लाल-लाल प्रकश जुगनू की मानिंद जल और बुझ रहे थे,को पार कर राजेश मेट्रो स्टेशन पहुँच गया।वहां मेट्रो पकड़ वो शाम के साढ़े छह बजे जब वह नीतू के घर पहुंचा तो सभी लोग घर पर ही थे।राजेश ने दरवाज खुलवाया तो नीतू की माँ ने दरवाजा खोला।पूछने पर राजेश ने उत्तर दिया , "जी मैं यही दिल्ली में नौकरी करता हूँ और मेरा घर भी मोकामा ही है।'मोकामा' नाम सुनते ही नीतू की माँ के चेहरे पर अवसाद पड़ गया। उन्हें ऐसा लगा जैसे कोई अनिच्छित और अनुपयोगी वास्तु जोकि उनके लिए बेहद ही हानिकारक हो उनके सामने आ गयी है।वो इसे ग्रहण करना नहीं चाहती थीं। इसलिए उन्होंने समय व्यर्थ न करते हुए राजेश को जवाब दिया, "मैं तो आपको नहीं जानती.....!आप क्यों आये हैं यहाँ?" "लेकिन मैं आप लोगों को जानता हूँ और आपसे कुछ बातें करना चाहता हूँ..." इतना सुनकर नीतू की माँ को ऐसा लगने लगा जैसे उनकी नाव ने नदी के जिस किनारे को पूरी तरह छोड़ दिया था,राजेश किसी तूफ़ान की तरह आकर उनकी नाव को उसी तीर पर पहुँचा देगाइस तूफ़ान से बचने के लिए प्रतीकात्मक ढंग से उन्होंने कहा, " जल्दी बताइये काम क्या है,आज रात हमलोगों को बाहर जाना है " राजेश भी नीतू की माँ का मन भाँप गया था उसने तेज़ी से कहा , "क्या आपलोग यहाँ खुश हैं,क्या आपको अपने घर अपने गाँव जाने का मन नहीं करता?क्या आप पुस्तैनी घर पर ताला लगाकर यहाँ किराए के घर को ज्यादा आरामदेह महसूस कर रही हैं?" राजेश जानता था कि वो इस विषय में ज्यादा बातें नहीं करेंगी इसलिये उसने नीतू की माँ के सामने लंबी प्रश्न-श्रृंखला खड़ी कर दी।लेकिन नीतू की माँ भी दृढ थीं और दृढ़ से ज्यादा वो इस समाज से आतंकित थीं।उनके ह्रदय को राजेश के प्रश्नों ने भेद दिया था।जिसकी पीड़ा से निकले आँसू वो अंदर ही पी गयीं और चट्टान की तरह कठोर होकर राजेश के प्रश्नाघात को सह गयीं। और जवाब में एक गूँज "हाँ"के रूप में सुनाई पड़ी। "मैं माफ़ी चाहती हूँ कि आपको कुछ खाने के लिए नहीं पूछ पायी क्योंकि हमें बाहर जाने के लिए विलम्ब हो रहा है। और उम्मीद करती हूँ अगर आप दुबारा मिलें तो आपके पास बात करने के लिए कोई अन्य विषय होगा। राजेश मायूस होकर वापस लौट आया।जितनी उत्तेजना, जितना रोमांच राजेश को नीतू के घर जाने में था, उतनी ही उदासीनता,उतना ही भारीपन उसका मन वापस लौटते समय महसूस कर रहा था। लेकिन उसने भी सोच रखा था कि वो हार नहीं मानेगा और इस बार उसने प्रण किया कि वो खुद नीतू से बात करेगा।जहां नीतू ट्यूशन पढ़ने जाती थी,उसी कक्षा में राजेश ने भी नामांकन लिया। उसने जब नीतू को देखा तो वो कल्पनातीत सुन्दर दिख रही थी।उसके बारे में उसके दोस्तों ने जितना बताया था उससे कहीं ज्यादा सुंदरता,कहीं ज्यादा लावण्य उसके चेहरे पर था। राजेश मुग्ध हुआ सा उसे ताकता रह गया। उसकी बोली में जो लालित्य था उसके कारण राजेश नीतू की कोकिलकंठ का आसक्त हो गया। जितनी सुन्दर नीतू बाहर से थी उतनी ही सरलता और मधुरता उसके व्यवहार में थी।काफी जल्द नीतू और राजेश दोस्त हो गए लेकिन इस मैत्री में अभी तक एक रहस्य छिपा था। राजेश ने अभी तक नीतू को नहीं बताया था कि वो मोकामा से है। चूँकि कोचिंग का समय सुबह छह बजे का था इसलिए राजेश की नौकरी पर भी इसका असर नहीं पड़ा।दोस्ती में प्रगाढ़ता बढ़ने पर राजेश को लगा कि अब उचित समय आ गया है रहस्योदघाटन का,और लक्ष्य की तरफ अगले कदम को आगे बढ़ाने का। उसने अगले ही रविवार नीतू के सामने लंच साथ करने का प्रस्ताव रखा जिसे नीतू ने बेहिचक स्वीकार कर लिया।उस दिन जब दोनों खाने की सूची में से स्वरुचि के अनुसार खाने का आदेश दे चुके थे।अब भोजन आने तक जो अवकाश रह गया उसमें राजेश ने शुरुआत करते हुए कहा नीतू मैंने तुम्हें नहीं बताया कि मैं मोकामा से हूँ और ये भी नहीं बताया कि मैं तुम्हारे बारे में जानता हूँ।इतना सुनकर नीतू के चेहरे का भाव ऐसा हो गया जैसे वृश्चिक-दंश हो गया हो।नीतू काठ की प्रतिमा सी राजेश की ओर देखती रही उसे समझ नहीं आ रहा था कि वो बोले तो क्या बोले ...! वो वहाँ से उठकर जा भी नहीं सकती थी। नीतू अपने आपको बहुत ही ठगा हुआ महसूस कर रही थी। रेस्टोरेंट में मंद ध्वनि में बज रहे गाने और बाकी कुर्सियों पर बैठे अन्य लोगों की चहल-पहल के बावजूद ऐसा लग रहा था जैसे किसी ने इनकी टेबल पर शान्ति परोस दी हो।एक मिनट तक इस शान्ति का साथ देने के बाद राजेश ने मौन भंग करते हुए कहा, "देखो नीतू दिल्ली में रहना,पढ़ना बहुत ही अच्छी बात है।लेकिन इस तरह घर छोड़ देना क्या सुखदायक है?क्या तुम्हें कभी अपने घर जाने का मन नहीं करता?" "राजेश! सबसे पहले तुम्हें मुझे शुरुआत में ही बता देना चाहिए था कि तुम मोकामा से हो।तुमने भी मेरे साथ धोखा ही किया ।और हाँ दूसरी बात....,मेरी कोई सुख्याति नहीं फैली है वहाँ ।लोग मेरा महिमा-मण्डन करने के लिए नहीं बैठे हैं मेरे बारे में सभी को पता है कि मैं कैसी लड़की हूँ।मैं एक 'बदनाम लड़की' हूँ राजेश...।इसलिए अब मेरा वहाँ जाना संभव नहीं।" बहुत ही ज्यादा आत्मबल जुटाते हुए,बिजली की-सी तेज़ी से नीतू ने एक साँस में उत्तर दिया और उस कड़कते मेघ की बूंदे उसकी बड़ी-बड़ी आँखों से टपकने लगीं।राजेश नीतू के इस जवाब से मर्माहत सा हो गया।लेकिन नीतू की हिम्मत बढ़ाने के लिए उसने कहा, "लेकिन मेरे हिसाब से तुमने कुछ गलत नहीं किया।गलती की है तो विजय ने। वो तो वहाँ बड़े शान से घूम रहा है उसे तो मूढ़ समाज उपेक्षा का पात्र नहीं समझता।फिर तुम क्यों इस समाज के लिए परित्यक्त वास्तु बन गयी हो...?" नीतू के आंसुओं की रफ़्तार तेज़ थी।उसने अपने रुन्धते गले से कहा, "राजेश मैं सबकुछ भूलकर आगे बढ़ चुकी थी लेकिन तुम मुझे फिर से उसी कालगृह में पहुँचाना चाहते हो।विजय एक लड़का है और समाज में लड़के की इज्जत कभी धूमिल नहीं होती।मुझे राह चलते हरेक आदमी अपने साथ सोने का आमंत्रण दे जाता था।बताओ....! क्या ऐसी जगह पर मैं रह सकती थी?क्या वहाँ के आस-पास का कोई भी लड़का मेरे साथ आजीवन साहचर्य को स्वीकार करेगा...?नहीं राजेश! अब वहाँ मैं आगे जीवन बिताने की कल्पना तक नहीं कर सकती।मैं यहाँ खुश हूँ और आगे भी यहीं ख़ुशी से जीवन व्यतीत करुँगी।" गंभीरता का बादल पूरी तरह से उन दोनों के ऊपर आच्छादित हो गया था और शान्ति-वर्षा में एक बार फिर नीतू और राजेश स्नात हो रहे थे कि तभी राजेश ने नीतू से कहा, "चलो मान लिया कि तुम किसी ऐसी लड़के से शादी करोगी जिसे तुम्हारा अतीत पता ना हो,लेकिन अगर शादी के बाद वो तुम्हारे भूत से अवगत हो गया तो तुम्हारी और उसकी क्या दशा होगी?क्या तब भी वो ताउम्र तुम्हारा साथ निभाएगा?" "जो भी होना होगा बाद में होगा ना ...!लेकिन पहले ही अपना अतीत बताने पर मुझसे कौन शादी करेगा बताओ....!बोलो राजेश क्या करेगा कोई मुझसे शादी...?" "हाँ नीतू ,चलो मैं ही तुमसे शादी करूँगा और मैं ही तुम्हें उस समाज में वापस ले जाऊँगा।मुझे कोई आपत्ति नहीं होगी तुमसे शादी करने में क्योंकि मुझे पता है कि तुमने कोई भी गलती नहीं की है।" "तुम पागल हो राजेश यूँ ही बोलने भर से शादी नहीं जो जाती।तुम पहले अपने माँ-बाप से बात करके देखना,फिर बात करना मुझसे।" बातों से दोनों का पेट भर चुका था और मन भी।खाने को यथावत छोड़कर राजेश ने बिल अदा किया और दोनों अपने-अपने निवास को प्रस्थान कर गए। पूरे रास्ते भर नीतू और राजेश के दिमाग में वाही वार्तालाप चल रही थी।अपने कमरे पर पहुँचते ही राजेश ने अपनी माँ को फोन लगाया, "माँ मुझे शादी करनी है।" वैसे हर बार राजेश अपनी माँ को पहले प्रणाम करता था।इस बार सीधे-सीधे शादी का प्रस्ताव राजेश की माँ को आश्चर्यचकित कर गया।अपने बेटे के कंठस्वर से राजेश की माँ को यह आभास हो गया कि राजेश मजाक नहीं कर रहा है।राजेश की माँ ने थोड़ा हँसते हुए कहा, "हाँ बेटा, कर देंगे शादी लेकिन ऐसी भी क्या जल्दीबाजी है...?कोई लड़की भी तो मिल जाए पहले।" "लड़की मिल चुकी है माँ और मुझे उससे शादी करनी है।" इतना कहने के बाद नीतू के विषय में सारी बातें राजेश ने अपनी माँ के समक्ष श्रृंखलाबद्ध तरीके से पेश कर दी। "तो तुम चाहते हो कि जिसका एम एम एस सारे लोगों ने देख रखा है,उस चरित्रहीन से मैं तुम्हें शादी करने दूं और और तुम उसे घर लाओ।और फिर मैं पड़ोसियों की उलाहना सुनती रहूँ। "माँ बाकी लोग क्या कहेंगे इससे हमें क्या मतलब है,रहना उसे आपके घर में है और जिंदगी मेरे साथ बितानी है।" "वाह बेटा वाह,बहुत बड़ी-बड़ी बातें करने लगे हो।अपने बाप से बात कर लेना मुझे कोई मतलब नहीं है।" इतना कहकर माँ ने गुस्से में फोन रख दिया। रात में पिता के घर आने पर उन्हें आज की घटना से राजेश की माँ ने अवगत कराया।राजेश के पिता ने कहा बच्चा है.....,समझाने से समझ जाएगा।उन्होंने राजेश को अविलंब फोन लगाया, "हेल्लो राजेश।" "प्रणाम पापा...।" "हाँ बेटे तुम्हारे और और तुम्हारी माँ के बीच ऐसी क्या बात हुई जो माँ नाराज हो गयी?" "पापा मैं उसी लड़की से शादी करूँगा..।" पापा के प्रश्न का बड़े ही अजीब ढंग से राजेश ने उत्तर दिया।अब पापा भी समझ गए कि वो सीधे-सीधे इस विषय पर बात करेगा।इसलिए उन्होंने भी समझाना आरम्भ किया। "बेटे उस लड़की और उसके परिवार की समाज में कोई इज्जत नहीं रह गयी है।हम उनके परिवार में तुम्हारी शादी कैसे कर सकतेहैं?" "शादी करके ही तो उनकी खोई इज्जत लौटा पाउँगा पा..." "नहीं बेटे,शादी के बाद हमारी भी कोई इज्जत नहीं रह जायेगी।हम तुम्हारे लिए कोई और सुन्दर और ज्यादा पढ़ी-लिखी लड़की ढूंढ लेंगे।" "हाँ पापा,मैं इंजीनियर हूँ।बहुत पैसे कमा रहा हूँ,आप भी पैसे कमा रहे हैं।हमारे घर में तो कोई भी अपनी सुयोग्य सुपुत्री से साथ मुँहमाँगी रकम भी दे जाएगा।लेकिन क्या नीतू से कोई इंजीनियर उसकी सच्चाई जानने के बाद शादी करेगा?और पापा आप जो लड़की मेरे लिए ढूंढेंगे उससे भी तो कोई भी शादी कर लेगा।लेकिन नीतू की शादी अगर उसकी पुरानी बातों को छिपाकर कर भी दी गयी तो भी बाद में टूटने का ख़तरा बना रहेगा।क्या हम अपनी इस इकलौती जिंदगी में एक भी अच्छा काम किसी और की जिंदगी को संवारने के लिए नहीं कर सकते पापा....?" राजेश के पिता का ह्रदय आंदोलित हो गया,चेहरे पर प्रफुल्लता छा गयी और छाती की चौड़ाई बढ़कर दोगुनी हो गयी।अभी तक उन्हें लग रहा था उन्होंने बेटे को सिर्फ साक्षर बनाया है ।लेकिन आज उन्हें यह विश्वास हो गया था कि उनका बेटा सचमुच बड़ा ज्ञानी हो गया है।अब उसकी बातों से ही ज्ञान का आलोक फ़ैल रहा और उसने अपने से दोगुने उम्र के अपने बाप को भी अपथ और सद्मार्ग में अंतर समझा दिया था।राजेश के पिता ने कहा, "क्या तुमने नीतू और उसके माँ-बाप से बात कर ली है...?" "नहीं आज नीतू से मिल के आया हूँ और माँ को फोन किया कल उनसे भी बात कर लूँगा.....। अगली सुबह राजेश नीतू के साथ उसके घर गया और उसके माता-पिता से बात की।उनदोनों की महत्वाकांक्षा थी कि उनके लड़की का विवाह बरहपुर के आस-पास के ही किसी गाँव में हो।उनकी ये मुराद भी राजेश से शादी करने के बाद पूरी होती दिख रही थी।तो तय हुआ कि पढ़ाई पूरी करने बाद नीतू की शादी राजेश से की जायेगी और तब तक किसी को कुछ नहीं बताया जाएगा।इधर नौकरी लगने के बाद राजेश के घर पर रिश्ते इस तरह आने लगे जैसे किसी जंगल में नीचे शिकार की भनक लगते ही ऊपर गिद्ध मंडराने लगते हैं।लेकिन राजेश के पिता ने हरेक रिश्ते को सविनय यह कहते हुए लौटा दिया कि राजेश की शादी में अभी विलम्ब है। नीतू की पढ़ाई समाप्त हुई और शादी की तारीख तय की गयी।राजेश ने अपने दोस्तों को बताया तो अपेक्षित प्रतिक्रया देखने को मिली।सभी ने यही पूछा, "पगला गए हो क्या....?" "हाँ !पगला गए हैं हम और अब तुमलोग शादी की तैयारी में लग जाओ।" समाज में भी राजेश के पिता की घोर भर्त्सना हुई लेकिन इसके बावजूद अपने विवेकशील बेटे पर गौरवान्वित पिता अविचलित रहे........। नीतू और राजेश परिणय-सूत्र में बँध गए और राजेश दिल्ली में नीतू के साथ रहने लगा।हरेक छुट्टी में जब वो मोकामा आता तो नीतू के साथ बरहपुर जरूर जाता था। कुछ साल बीतने के बाद जब वह एक बार छुट्टी आया हुआ था तो समाज के लोग अब उसके बारे में भूल चुके थे।अब उनके लिये समय काटने का और सामूहिक-चर्चा का विषय अभी दो किशोर-किशोरी थे जोकि साथ में कॉलेज में पढ़ने आते-जाते थे।राजेश को भी उसके दोस्तों ने एकदिन उस जोड़ी के बारे में बताया।राजेश मन ही मन ये सोचते हुये हँस पड़ा कि अब समाज को दूसरी नीतू मिल चुकी हैं जो उनके समय के रिक्तकाल को भरने में मददगार होगी............।

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