कैसे थामा होगा तुमने
उसके हाथों को
तुम्हें तो नयी चीज़ सम्भालने में
बहुत वक़्त लगता है
कैसे पहचानोगी
उस शहर की गालियों को
तुम्हें तो इस शहर में मेरा घर ही
सिर्फ़ क़रीब लगता है
मैं तुझको जाते देखता
या रोता रहता
आँख को यह कहना कि सबर कर
थोड़ा अजीब लगता है
तूने अपनी वफ़ा का
वास्ता देकर बाँध दिया था
तुझे बेवफ़ा कहने में
थोड़ा अजीब लगता है
तू साथ थी तो
दुनिया का ख़ज़ाना मेरे क़दमों में था
अब दुनिया ही कहती है कि
तू थोड़ा ग़रीब लगता है
सोचा था कभी
तेरे साथ एक जहाँ बसाऊँगा
इस शहर को छोड़ना
अब नसीब लगता है