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टाइम पास

वह किसी फिल्म की हीरोईन नहीं थी। लेकिन, उसे देखकर सुप्रसिद्ध हिरोईन कंगना राणावत का भ्रम होता था। उसने वेश -भूषा से लेकर हाव-भाव सबकुछ कंगना से उधार लिया हुआ था। उसने टाईट काले रंग की लेगिंस के ऊपर पूरे बाजू की रस्ट कलर की शर्ट पहन राखी थी। जिस पर चटख लाल रंग के बड़े - बड़े फूल थे। शर्ट की बाजू आधी फोल्ड की हुई थी। कंधों पर कटे हुए घुंघराले बाल फैले हुए थे। चेहरे पर सलीके से किया गया मेकअप था। जैसे ही वह ट्रेन में दाखिल हुई एकाएक सबके आकर्षण का केंद्र हो गई। नाम नहीं मालुम होने की सूरत में कुछ पुरुष आपस में फुसफुसाते हुए उसे कंगना कहकर छिछोरी बातों में व्यस्त हो गए।डबलडेकर ट्रेन थी वह - जो दिल्‍ली से लखनऊ और लखनऊ से दिल्‍ली के बीच दिनभर में अप और डाउन दोनों फेरे लगा लेती थी। दो मंजिलों पर सीटों की व्यवस्था होने के कारण लोगों को रिजर्वेशन आसानी से मिल जाता था और अन्य ट्रेनों की तुलना में उसकी टिकट दर भी कम थी। पूरी ए.सी. ट्रेन और टिकट के कम पैसे लगने हों तो जाहिर है ट्रेन में बैठी भीड़ की मानसिकता भी ठंढी - गर्म मिक्स ही होगी। तो ,कंगना ने सीढ़ियों से ट्रेन की ऊपरी मंजिल पर चढ़ते ही साथ के लगेज बैग को पूरी नजाकत से उठाकर सीट के ऊपर बने कम्पाउंड में रखना चाहा। लेकिन , बैग ने कंगना की नजाकत का साथ देने से इंकार कर दिया। बैग की इस हिमाकत से कंगना ने परेशान हो पूरी बोगी पर सरसरी निगाह डाली। और ,उसकी नजर जाकर रुक गई एक पंजाबी नवयुवक पर। नवयुवक को देखकर साफ़ - साफ़ पता चलता था कि उसने हाल - फिलहाल में ही किशोरावस्था की दहलीज लांघकर युवावस्था में प्रवेश किया है। गोरे सुन्दर चेहरे पर दाढी - मूंछ की शक्ल में कोमल काले बाल उसके व्यक्तित्व की खूबसूरती को बढ़ा रहे थे। कंगना ने उस सुदर्शन युवक के चेहरे पर नजरें गड़ाकर मीठी आवाज में कहा - “ कैन यू हेल्प मी ” युवक धन्य हो गया और फुर्ती से उठकर उसने कंगना के हाथ से बैग ले जगह पर जमा दिए। हाँ , बैग लेने और जमाने के बीच उसने सयास कंगना के शरीर से खुद को सटाने का सफल प्रयास भी किया जिसे कंगना ने सहजता से लिया। लेकिन पूरी बोगी में बैठे लोगों की निगाह में वह चुभ गया। कुछ सहयात्रियों ने तो आपस में फुसफुसाकर यह भी कह डाला कि ,” काश ! उन्हें लगेज जमाने का मौक़ा मिलता।” जान बूझकर जोर से की गईं फुसफुसाहटें कंगना के कानों में भी पहुँच गईं। जिसके जवाब में कंगना के चेहरे पर विजयी मुस्कान फ़ैल गई। उसके चेहरे पर उसे अपने सौन्दर्य और वेशभूषा के प्रति अभिमान झलक उठा। साथ ही उसके हाव - भाव की लापरवाही कह रही थी - ऐसा पहली बार नहीं हुआ है। अक्सर वह आकर्षण का केंद्र बनी रहती है।' अपनी सीट पर बैठते ही कंगना को भूख लग गई। उसने अपने बड़े से हैण्ड बैग से एक सेब निकाला और आँखों में शरारत भर उस पंजाबी नवयुवक की ओर बढाते हुए कहा - “ खाओगे ? अरे हाँ नाम क्या है तुम्हारा।” “नो थैंक्स! मेरा नाम जसवंत है लेकिन मुझे सभी जस्सी कहते हैं।” जस्सी ने लम्बी मुस्कान के साथ कहा। उसकी आँखों के रास्ते कंगना से बात कर लेने की ख़ुशी बाहर निकल रही थी। जस्सी के मना करते ही कंगना ने बड़ा सा मुंह खोलकर अपने दांत सेब में गड़ा दिए और ख़ास स्टाईल के साथ उसे काटकर चबाने लगी। आस पास के सहयात्रियों के दिल से सिसकारी निकल ओठों पर दम तोड़ गई। दिल्‍ली से खुली ट्रेन अपनी रफ़्तार में भागी जा रही थी। ट्रेन की गति के साथ कंगना का मन भी कुछ अलग जगह पर अटका हुआ था। अचानक उसने जसवंत की ओर मुखातिब हो कहा - “ जस्सी अगर तुम्हें कोई प्रॉब्लम ना हो तो यहाँ पड़ी खाली सीट पर आ जाओ। बहुत बोरियत हो रही है।” जस्सी इसी आमंत्रण का वेट ही कर रहा था।  तुरत उठकर कंगना के बाजू में विराजमान हो गया। फिर तो , कंगना उसके साथ बातों में डूब गई।  हाव - भाव ,बॉडी लैंग्वेज - सबकुछ जैसे वर्षों से एक - दूसरे को जानते हों। उन दोनों की ओर इशारा कर एक सहयात्री ने अपने बगल के यात्री से कहा-“ लो जी शुरू हो गई ट्रेन में लव स्टोरी।” “ कोई लव - वभ ना है जी। यह सब बस ऐसे ही है। आजकल की छोरी है; छोरे नूं मजा ले रही है। आजकल की सभी छोरियां ऐसी ही होती हैं।” - बगल वाले यात्री ने मूंह बनाते हुए कहा। पास की सीट पर बैठी एक लड़की ने उसकी ओर आँखें तरेरी और कडक आवाज में बोली - ” सबको एक सा ना कहें। तमीज सीखें आप बात करने की।” उस यात्री ने लड़की के कड़े तेवर देख बात को रफा - दफा करने में ही अपनी भलाई समझी और मित्रता बढाने के उद्देश्य से बोला - ” माफ़ करना जी ,ऐसे ही बोल गया। आपका नाम क्या है जी। ” “ झाँसी की रानी “ - लड़की का अंदाज पहले सा ही कड़क था। आसपास की महिला सहयात्रियों ने लड़की के इस उत्तर पर अपने - अपने अंदाज में सहमति जताई। कंगना इस चल रहे पूरे प्रकरण से नावाकिफ थी। फिर , भी उसने अंतिम बात -चीत सुन ली थी और लड़की के नाम बताने के अंदाज से खुश हो हाथ उठा जोर से बोली - “लाईक ” आसपास के यात्रियों के चेहरे पर मुस्कान तैर गई। ट्रेन अब तक अलीगंज पहुँच चुकी थी। कुछ नए यात्री भी ट्रेन पर सवार हो गए थे। अब तक जस्सी और कंगना के बीच की सभी दूरियां नजदीकियों में बदल गई थीं। ट्रेन के खुलते ही चेयर कार में दोनों के सीट के बीच का हत्था हट गया और अब दोनों के शरीर एक - दुसरे से रगड़ खा रहे थे। नए आये यात्रियों के लिए यह सामान्य था लेकिन पहले के सहयात्रियों में से एक ने सर ऊंचा कर बगल वाले के कान में फुसफुसाकर उन दोनों की ओर इशारा किया। बगल वाले ने भी उसी फुसफुसाहट में जवाब दिया - “ देखते चलो भाई। ट्रेन लेट हो चुकी है ,कम से कम हमारा टाइमपास तो हो रहा है। ”उस कम्पार्टमेंट में बैठे सभी यात्री समझ चुके थे कि ट्रेन आज आधी रात के बाद ही लखनऊ पहुंचाएगी। तो , सभी अपने - अपने हिसाब से कंगना और जस्सी का आनन्द लेने लगे। हर कोई समय - समय पर किसी न किसी बहाने उठ उनकी सीट के पास जाकर दो - तीन मिनट खडा होता और उनकी बातों के साथ चल रहे अंग - संचालन का मजा लेता। जस्सी और कंगना के हाथ बातों के क्रम में एक - दुसरे की सीमाओं का अतिक्रमण कर रहे थे। कभी किसी का हाथ वर्जित क्षेत्र को छू कर हट जाता तो दोनों के चेहरे सुख से दहक उठते। वे आसपास की परवाह किये बिना एक - दुसरे के आनंद में बह रहे थे। रात के ग्यारह बज गए थे  लेकिन उस कम्पार्टमेंट के किसी भी यात्री को नींद नहीं आ रही थी। जिन्हें झपकी आई भी उन्हों ने गुटवा खाकर या चाय - चिप्स खाकर खुद को जगाये रखा। सबकी आँखों में कान उग आये थे और कानों को आँखें हो गईं थीं। जो हो रहा था - कल्पना उससे अधिक की मन कर रहा था। दो का आनंद एक साथ पचपन - साठ लोगों में फ़ैल चुका था। कुछ युवा सहयात्रियों ने ट्रेन और अधिक लेट होने की भविष्यवाणी भी कर दी। पर ,उनकी यह भविष्यवाणी अन्य भविष्यवाणियों की तरह दम तोड़ गई। और , ट्रेन सवा बारह बजते -बजते लखनऊ स्टेशन पर आ खड़ी हुई। स्टेशन पर कंगना के पिता उसकी छोटी बहन के साथ उसे रिसीव करने आये थे। जस्सी ने कंगना का सामान ले उसे ट्रेन के दरवाजे तक बड़े भावुक अंदाज में छोड़ा और एक सच्चे प्रेमी की तरह आँखों में आँखें डाल रुंधी आवाज में “ बाय ,मिलते हैं ” कहा। कुली के सर पर सामान रखवाकर जब कंगना के पिता कुली के साथ आगे बढ़ गए तो कंगना की छोटी बहन ने आँखें झपकाते हुए पूछा - ” दीदी ,कौन था वह ? बड़े नाजो - अंदाज से तुमसे विदा लेते हुए सामान तुम्हे पकड़ा रहा था। पापा ने भीड़ अधिक होने के कारण देखा नहीं। वरना अब तक तुम्हें सारी रामायण सुना दिए होते।” बहन की बात सुन कंगना ने आसमान की ओर देख हल्के से ठहाका लगाया और बोली - “ कोई नहीं था। बस यूँ ही टाइमपास का मैटेरियल था।” “ लेकिन वह तो कह रहा था - मिलते हैं ” - छोटी बहन तसलली कर लेना चाहती थी। “मैं उस सडू से मिलने कभी नहीं जाऊँगी। टाइमपास सिर्फ टाइमपास होता है - समझी।”

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