प्यार क्या हैं?......
जिसे अक्सर लोग प्यार समझते है वो वास्तव में प्यार नहीं होता। उस प्यार के पीछे भी एक उम्मीद, एक आस या यूं कहो तो एक स्वार्थ छुपा
हुआ होता हैं। जहाँ ये सब हो वो प्यार कैसे हो हो सकता हैं। प्यार तो एक खुशियों की हसीन अनुभूति है। जहाँ प्रेम के अलावा कुछ नहीं होता। जहाँ हम सबसे ज्यादा खुश होते हैं, चाहे वो कुछ पल के लिए हो, वो प्यार है।
माँ-बाप का प्यार:
अक्सर प्यार का सबसे हसीन उदाहरण माँ-बाप के प्यार को दिया जाता है। लेकिन वास्तव में माँ-बाप का प्यार तो खिलौनों के समान होता है। जब-तक हम छोटे है तब-तक। बाद में तो वो उम्मीद में बदल जाता है। वो हम से एक चाहत रखने लग जाते हैं कि मेरा बेटा/बेटी ऐसा करेगा/करेगी। समाज मे हमारा एक नाम होगा। अच्छा पैसा होगा।
इसके लिए वो अपनी पसंद की पढ़ाई चुनते है। अपनी पसंद का स्कूल
चुनते है। वो चाहते हैं कि समाज में हमारी इज्जत हो। दूसरों से अपने आपको अच्छा दिखा सकें। इसके लिए हमें शारीरिक और मानसिक दोनों तरह की परेशानी उठानी पड़ती है। जबकि प्यार में तो आनन्द होता है।
वास्तविक माँ-बाप का प्यार:
प्यार वो है जब हम उनकी गोद में या उनके पास सो रहे हो और वो हमें सला रहें हों या फिर अपना हाथ ऊपर रख के हमारे पास सो रहे हो।चारों ओर शांति हो, सब कुछ शांत हो। ना आप कुछ बोल रहें हो और ना ही वो। उस पल जो आनन्द मिलता है वो कुछ और ही होता है। जब वो अपनी हाथों की ओक से आपको पानी पिला रहें हो। अपने हाथों से खाना खिला रहे हो। उसका आनन्द ही कुछ और है। माँ-बाप का वास्तविक प्यार तो ये हैं जहाँ कोई आशा, उम्मीद, इच्छा नहीं होती ।
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जल्द ही इसका दूसरा भाग भी प्रकाशित करूँगा जो एक लड़के लड़की के प्यार के बारे में होगा।
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इस रचना से अगर किसी को ठेस पहुचती है तो उनसे माफी चाहूंगा। ये
किसी को ठेस पहुचने के लिए नहीं बल्कि जो मेरे को लगता है वो लिखा है।