अभी बाहर बारिश हो रही है, हाथ की बोर्ड पर टक टक कर रहे है और नज़रें खिड़की पर जमा है। इधर मन है कि सोच रहा है एक फर्लांग भर कर सीधा सड़क पर पहुँच जाएँ और बारिश में दो चार ठुमके लगा लें,ये बारिश भी कितनी ज़ालिम होती है, हमेशा तब आती है जब आप बहुत बिज़ी हों या बहुत बड़े!
मगर सब काम छोड़कर भीगे ही नहीं तो फिर बारिश कैसी ? बारिश का अपना ही नियम है.. "या तो भीग जाओ या भाग जाओ!"
वैसे हर बारिश की अपनी एक अलग कहानी है, बचपन में स्कूल से लौटते वक़्त बारिश आ जाये तो किसी पेड़ के नीचे गीले होकर दांत बजाते हुए सहमे खड़े रहते थे, तो पास में ही पड़ी गीली मिट्टी की महक मौसम को और लज़ीज बना देती थी।
घर में जहाँ-तहाँ कमरे में कटोरे रखे मिलते, जी हाँ बारिश में हर हिन्दुस्तानी की तरह अपनी भी छत टपकती थी.. फिर वो घर ही क्या जहाँ कभी छत से पानी न टपका हो!
हम तो झट खिसक लेते पुरानी निकर और बनियान पहनकर, कागज़ की कश्तियों में कौन मेहनत करे इसलिए चप्पल ही पानी में बहा देते! एकाध दफ़ा तो चप्पल की किस्मत भी टाइटैनिक जैसी निकली। घर जाके अपने एक चौथाई दांत दिखा के बच गए थे,वरना हाल तो अपना भी टाइटैनिक सा ही होना था!
बारिश और बिजली का जाना तो राजमे और चावल के साथ जैसा है, जैसे ही बिजली जाती,मोहल्ले के हर घर से चिल्लाने की आवाज़ आती.. बिना ब्लूटूथ के सब एक दुसरे से कनेक्टेड से लगते।
इतने सालो में कितनी ही बारिशें आयीं और गईं पर पकौड़ों का दौर रुका नहीं, रोजगार इसी को कहते हैं..हौज ख़ास के गरमा गरम जोधपुरी मिर्ची बड़ों के लिए तो कत्ले आम हो जाता है,
चाय पे चाय चलती है.. खिड़की के नीचे हार्न बजता है और आवाज़ आती है "अबे बारिश हो रही है और तू घर में बैठा है.."
छतो पर चढ़कर सब तेरी वाली मेरी वाली करते हैं.. बस शेल्टर के नीचे खड़े लोग खुद को ख़ुशनसीब समझते हैं,
रिक्शे वाले अपनी बीड़ी सुलगा कर रिक्शे में बैठ जाते हैं,
कॉलेज से लौटती लड़कियाँ, दुपट्टा समेटे सड़क पर जमा पानी से छलांगे मार मार कर आगे बढती हैं,
कार के वाइपर्स की कामचोरी करने से लोग हाथ बाहर निकालकर रुमाल से कांच साफ़ करते हैं।
बिना हेलमेट वाले लोग धड़ल्ले से बाइक चला रहे हैं,पुलिस वाले भी केबिन में हैं...आज तो बारिश हो रही है ना.. सबको छूट है..!
यूँही-
रिक्शा बाहर उल्टा पड़ा है, घर में तवे का भी यही हाल है। अनी सोच रही है बारिश रुक जाये तो चूल्हा जलाने की कवायद करे। अंश बालकनी में आ चुका है.. ख़ुश हो रहा है.. ट्यूशन से छुट्टी..! हे भगवान ये बारिश ऐसे ही होती रहे!
कहा ना मैंने.. हर बारिश की अपनी अलग कहानी है..
एक कहानी ये भी की हरिवंश और अमित सरीखे लोग बस इसलिए फेसबुक स्क्रॉल कर रहे हैं की IPL मैच में भी बारिश पड़ गयी है..हाय भगवान रुक जाए बारिश..
पर क्या फ़ायदा बारिश तो कह चुकी अपनी दास्ताँ..
मन कहता है की,
खिड़कियों से झाँकना बेकार है,
बारिशों में भीग जाना सीख।
अहमद फ़राज़ साहेब फरमाते हैं:
"इन बारिशों से दोस्ती अच्छी नहीं फ़राज़
कच्चा तेरा मकान है कुछ तो ख्याल कर "
एक ऐसा भी
जब भी बारिश होती है बाँहें फैलाकर तुझे महसूस कर लेते हैं ...
तेरे साथ बारिश में भीगने का ख़्वाब भी अधूरा सा है....!!!
मगर सब काम छोड़कर भीगे ही नहीं तो फिर बारिश कैसी ? बारिश का अपना ही नियम है.. "या तो भीग जाओ या भाग जाओ!"
वैसे हर बारिश की अपनी एक अलग कहानी है, बचपन में स्कूल से लौटते वक़्त बारिश आ जाये तो किसी पेड़ के नीचे गीले होकर दांत बजाते हुए सहमे खड़े रहते थे, तो पास में ही पड़ी गीली मिट्टी की महक मौसम को और लज़ीज बना देती थी।
घर में जहाँ-तहाँ कमरे में कटोरे रखे मिलते, जी हाँ बारिश में हर हिन्दुस्तानी की तरह अपनी भी छत टपकती थी.. फिर वो घर ही क्या जहाँ कभी छत से पानी न टपका हो!
हम तो झट खिसक लेते पुरानी निकर और बनियान पहनकर, कागज़ की कश्तियों में कौन मेहनत करे इसलिए चप्पल ही पानी में बहा देते! एकाध दफ़ा तो चप्पल की किस्मत भी टाइटैनिक जैसी निकली। घर जाके अपने एक चौथाई दांत दिखा के बच गए थे,वरना हाल तो अपना भी टाइटैनिक सा ही होना था!
बारिश और बिजली का जाना तो राजमे और चावल के साथ जैसा है, जैसे ही बिजली जाती,मोहल्ले के हर घर से चिल्लाने की आवाज़ आती.. बिना ब्लूटूथ के सब एक दुसरे से कनेक्टेड से लगते।
इतने सालो में कितनी ही बारिशें आयीं और गईं पर पकौड़ों का दौर रुका नहीं, रोजगार इसी को कहते हैं..हौज ख़ास के गरमा गरम जोधपुरी मिर्ची बड़ों के लिए तो कत्ले आम हो जाता है,
चाय पे चाय चलती है.. खिड़की के नीचे हार्न बजता है और आवाज़ आती है "अबे बारिश हो रही है और तू घर में बैठा है.."
छतो पर चढ़कर सब तेरी वाली मेरी वाली करते हैं.. बस शेल्टर के नीचे खड़े लोग खुद को ख़ुशनसीब समझते हैं,
रिक्शे वाले अपनी बीड़ी सुलगा कर रिक्शे में बैठ जाते हैं,
कॉलेज से लौटती लड़कियाँ, दुपट्टा समेटे सड़क पर जमा पानी से छलांगे मार मार कर आगे बढती हैं,
कार के वाइपर्स की कामचोरी करने से लोग हाथ बाहर निकालकर रुमाल से कांच साफ़ करते हैं।
बिना हेलमेट वाले लोग धड़ल्ले से बाइक चला रहे हैं,पुलिस वाले भी केबिन में हैं...आज तो बारिश हो रही है ना.. सबको छूट है..!
यूँही-
रिक्शा बाहर उल्टा पड़ा है, घर में तवे का भी यही हाल है। अनी सोच रही है बारिश रुक जाये तो चूल्हा जलाने की कवायद करे। अंश बालकनी में आ चुका है.. ख़ुश हो रहा है.. ट्यूशन से छुट्टी..! हे भगवान ये बारिश ऐसे ही होती रहे!
कहा ना मैंने.. हर बारिश की अपनी अलग कहानी है..
एक कहानी ये भी की हरिवंश और अमित सरीखे लोग बस इसलिए फेसबुक स्क्रॉल कर रहे हैं की IPL मैच में भी बारिश पड़ गयी है..हाय भगवान रुक जाए बारिश..
पर क्या फ़ायदा बारिश तो कह चुकी अपनी दास्ताँ..
मन कहता है की,
खिड़कियों से झाँकना बेकार है,
बारिशों में भीग जाना सीख।
अहमद फ़राज़ साहेब फरमाते हैं:
"इन बारिशों से दोस्ती अच्छी नहीं फ़राज़
कच्चा तेरा मकान है कुछ तो ख्याल कर "
एक ऐसा भी
जब भी बारिश होती है बाँहें फैलाकर तुझे महसूस कर लेते हैं ...
तेरे साथ बारिश में भीगने का ख़्वाब भी अधूरा सा है....!!!