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रिश्ते की क़ीमत समझे

बार सब्ज़ी बनाते वक़्त मैंने ग़लती से उसमें दो बार नमक डाल दिया।ऐसा मैंने जानबूझकर नही किया,अनजाने में हुआ या फिर कह लीजिए मेरा ध्यान सब्ज़ी की तरफ़ नही,कहीं और था।
अब मेरे पास दो रास्ते थे पहला यह की मैं उस सब्ज़ी को फेंक दूँ और दूसरा ये की उसी मात्रा में और बिना नमक की सब्ज़ी बना कर उसमें मिला दूँ।या फिर कच्चे आटे की गोलियाँ उसमें मिलाकर नमक कम करने की कोशिश करूँ।
लेकिन ये फ़ैसला मैं तभी ले सकता था जब मुझे उस सब्ज़ी की क़ीमत का पता हो।अगर वो सब्ज़ी मेरे लिए मूल्यवान होगी तब मैं उस पर मेहनत करता अगर उसकी क़ीमत मेरे मेहनत से कम होती तो नही करता।
ठीक ऐसा ही रिश्तों के साथ होता है।सब्ज़ी की तरह कभी-कभी हम रिश्तों में अनजाने से या आवेश में आकर कड़वाहट भरते जाते हैं और एक ऐसे वक़्त पर आ जाते हैं जहाँ उस रिश्ते की क़ीमत के हिसाब से सोचना पड़ता है की तोड़कर आगे बढ़ना है या फिर कुछ भी करके या मिलाकर इसकी कड़वाहट कम करके इसे फिर पुरानी परिस्थिति में लाना है।बस रिश्तों के लिए फ़ैसला लेते वक़्त ये ज़रूर ध्यान रखना चाहिए कि ग़लती जाने में या अनजाने में हमारी तरफ़ से हुई है।

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