देखो,
माफ़ी माँगना मुझे नहीं आता इसलिए पहले ही बता देता हूँ कि अगर मुझसे माफ़ी सुनने आई हो तो अभी के अभी उसी रास्ते वापस लौट जाओ जिस रास्ते आई हो। लेकिन हाँ, अगर मेरे तरह तुम भी हमारी प्यार की यादों से पीछा नहीं छुड़ा पा रही तो आओ, स्वागत है। स्वागत है तुम्हारी खुले दिल से, हमारी यादों की दुनिया में।
मैं थोड़ा पागल-सा हूँ और तुम ठहरी मुझसे भी बड़े पगली।
भला मुझसे बड़े पागल नहीं होती तो मुझसे प्यार ही क्यों करती तुम? हज़ारों लोगों की भीड़ में तुम्हें सिर्फ़ मैं ही मिला अपना आशिक़ बनाने को? कितना बुरा टेस्ट है तुम्हारी लोगों में, ये बात तो मैं उसी दिन समझ गया था जिस दिन तुमने मुझे अपना 'प्यार' घोषित की था।
भला मुझसे बड़े पागल नहीं होती तो मुझसे प्यार ही क्यों करती तुम? हज़ारों लोगों की भीड़ में तुम्हें सिर्फ़ मैं ही मिला अपना आशिक़ बनाने को? कितना बुरा टेस्ट है तुम्हारी लोगों में, ये बात तो मैं उसी दिन समझ गया था जिस दिन तुमने मुझे अपना 'प्यार' घोषित की था।
और यूँ ही तो नहीं बने थे ना हम प्यार! कोई तो बात रहा ही होगा। एक स्तर के पागल जब मिलते हैं तो पागलपन बढ़ कर दोगुना नहीं होता, चौगुना हो जाता है। बस एक प्यार ही है, जिसमें गणित के सारे नियमों को फ़ेल कर देने की क्षमता है। प्यार ही एक ऐसा रिश्ता है जिसमें एक और एक मिलकर दो नहीं, एक और एक मिलकर ग्यारह हो जाते हैं। तभी तो जब भी हम दोनों कोई काम साथ में करने का बीड़ा उठाते हैं तो हमारे दुश्मनों के दिल ऐसे हिलते हैं मानो श्रीलंका की अंडर 19 क्रिकेट टीम को कोहली की कप्तानी वाली इंडियन क्रिकेट टीम का सामना करने भेज दिया गया हो।
और जाने कैसा रिश्ता रहा हमारा? जिसने तुम्हें चोट पहुँचाई, वो मुझे कभी नहीं भाया और जिसने मुझे दर्द दिया, वो तुम्हें कभी फूटी आँख भी ना सुहाया। फिर भी देखो, आज हम दोनों ही अलग हैं। आज हम दोनों ही एक दूसरे से जुदा हैं, मानो किसी नदी के दो अलग-अलग किनारों जैसे। दोष किसका है, इस बात का फ़ैसला ना मैं कर सकता हूँ ना तुम। वक़्त बुरा चल रहा है या हालात ख़राब हैं जो आज हम दोनों अजनबी बने हुए हैं। ग़लतफ़हमी हुई सो हुई, झगड़ा हुआ सो हुआ, मगर मुझे तो अब भी ये समझ नहीं आता कि हमारे बीच इतनी दूरी कब आ गई कि आज की तारीख़ में हमारा एक-दूसरे से बात करना भी मुश्किल हुआ है?
आख़िर ऐसी भी क्या नाराज़गी कि ना मैं तुम्हारा चेहरा देखूँ और ना तुम्हें मेरा तकलीफ़ से फ़र्क़ पड़े? और सच बताना, क्या प्यार टूटने का जितना दुख मुझे है, उतना ही तुम्हें भी नहीं?
मेरे इतना सब कह देने पर, इतनी बातें याद दिलाने पर अब भी अगर मुझसे सच ना कह सको तो कोई बात नहीं। मैं समझ सकता हूँ। होता होगा कहीं-कहीं ऐसा भी शायद कि चार साल की प्यार पर दो दिन की ग़लतफ़हमी हावी हो जाता होगा।
होता होगा कहीं-कहीं ऐसा भी कि एक इंसान को उसकी सौ अच्छाइयाँ छोड़, उसकी एक ग़लती की सज़ा मिलती होगी। होता होगा कहीं-कहीं ऐसा भी कि प्यार सिर्फ़ लफ़्ज़ों में और किताबों में मुक़म्मल हो पाती होगी और असलियत में सिर्फ़ नाम की मोहब्बते रह जाती होंगी।
मगर सच पूछो तो मैं तो आज भी तुम्हें उसी पगली इंसान के रूप में याद रखता हूँ जिसने मुझे हर कदम पर सम्भाला, हर वक़्त मेरा साथ दिया, मुझे समझा, मुझे सँवारा। और सच पूछो तो मैं भूल गया हर वो बात तुम्हारी जिससे मुझे दुख पहुँचा। भूल गया अकेलेपन का हर वो एहसास, जो तुम्हारे रहते हुए भी मुझे अंदर से खोखला करता चला गया।
और आजकल तो मुझे सिर्फ़ एक बात याद रहता है। जानती हो क्या?
यही कि सिर्फ़ एक महीना और फिर ना जाने मैं कहाँ और तुम कहाँ! सच मानो, तुम्हारी शादी होने के बाद मैं तुमको यूँ भी, बिलकुल परेशान नहीं करूँगा।
काश! मैं तुमसे वापस आने को कह पाता। काश! मैं तुमको समझा पाता कि तुम मेरे लिए क्या हो। मगर सच बताऊँ, बहुत अजीब लगता है कि चार साल की प्यार के बाद भी मैं तुमको आकर इस बात की सफ़ाई दूँ कि अगर मैंने तुमको दुख पहुँचाया भी तो वो जानबूझ कर नहीं पहुँचाया। बहुत बेतुका लगता है तुम्हें याद दिलाना कि मैं वो इंसान नहीं हूँ जिसे तुमको दुख पहुँचा कर सुकून मिले। बहुत अजीब लगता है तुम्हें बार-बार अपने प्यार की याद दिलाना। बहुत बुरा लगता है, सच पूछो तो।
और इसीलिये नहीं भेजूँगा ये ख़त तुमको कभी। नहीं कहूँगा तुमको कभी कि लौट आओ तुम। नहीं कहूँगा तुमसे कि मुझे माफ़ कर दो। हाँ, इतना ज़रूर कहूँगा कि तुम मेरे प्यार हो और तुम्हें मुझसे माफ़ी माँगने की ज़रूरत कभी ना पड़े, इस बात का मैं हमेशा ख़्याल रखता आया हूँ और आगे भी रखूँगा। अगर कभी मेरे लिए अपना दिल साफ़ कर पाई तो आकर मुझे गले से लगा लेना और मैं तुम्हारी जज़्बात समझ जाऊँगा।
और आख़िरी, मगर सबसे ज़रूरी बात! तुम चाहो तो भूल भी जाओ मगर मैं हमारी प्यार का ये पाक़-सा एहसास कभी नहीं भूलूँगा।