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प्रेम पत्र Love Letter

शैलेन्द्र भारती
डियर जान,
मैं जब किसी नदी के किनारे खड़ा होता हूँ तब यही सोचता हूँ की जो कश्तियाँ इस पार से उस पार जाती हैं कभी नदी के साथ उसकी धारा में क्यूँ नही बहती? जो लोग उस नाव में बैठें होते हैं वो क्यूँ सिर्फ़ उस पार ही जाना चाहते हैं? कुछ दूर वो नदी के साथ बहते।कहीं किसी किनारे आराम करते और फिर चप्पू मार देते।बह कर देखते हवा के साथ पानी के साथ।
जब हम एक लम्बी दूरी तय करने निकलते हैं तब वो सोच ही थकान भरी होती है।रास्ते में कई ऐसे पल आते हैं जो शून्य में हमें लेते जाते हैं।हम बीते कल में चले जाते हैं और ग़लतियों को याद करने लगते हैं।दरअसल यही वजह होती है जिस वजह से हम लम्बा नही छोटा रास्ता चुनते हैं सफ़र के लिए। क्यूँकि हम की गयी ग़लतियों को दुबारा याद नही करना चाहते हैं।
पता नही मैं तुम्हें क्या समझाना चाहता हूँ या फिर शायद ख़ुद को ही ये सब समझा रहा हूँ।अक्सर देखता हूँ किसी मॉल में,किसी कॉलेज के सामने,किसी रेस्तराँ में या फिर किसी कोचिंग के पास एक लड़का एक लड़की को ‘आई लव यू’ कहता है और वो लड़की जवाब में ‘हाँ’ कह देती है।मैं ख़ुद से तब पूछता हूँ की आई लव यू बोल देने से क्या प्यार तुरंत हो जाता है? वो लड़की तुरंत प्यार को मान लेती है या फिर वो पहले से उस लड़के से प्यार कर रही होती है और उसके इज़हार का इंतज़ार कर रही होती है।ये दोनो एक लम्बा रास्ता लेकर पहुँचे हैं या शॉर्ट कट से उस पार पहुँच गए? मुझे शुरू से ही लगता था की प्यार को कोई शब्दों में कैसे कह सकता है?या फिर ऐसा होता होगा की जब सारे शब्द इज़हार के लिए ख़त्म हो जाते होंगे तब आई लव यू बोल दिया जाता होगा।
आई लव यू कितना बचकाना शब्द लगता है या ये हो सकता है मैं नदी के इस पार खड़ा हूँ और उस पार के लोग कुछ और सोचते होंगे।
आई मिस यू,आई वॉंट टू हग यू या फिर किस कर लेना या तुमको गले लगाकर कान में आई लव यू कहना या फिर तुम्हारा हाथ अपने हाथो में लेकर सारी रात चाँद तारों को देखना।इन सारी चीज़ों से,बातों से बहुत ऊपर उठ चुका है प्यार हमारा।मैं तुम में और तुम मुझ में इतने अंदर तक हो जहाँ बातों का कोई वजूद नही बचता है।
तुम उस पार खड़ी हो और मैं इस पार ।तुम्हें मेरे होने का एहसास तब होगा जब तुम एक लम्बे रास्ते पर हवा और धारा के साथ बहना चाहोगी और तुम्हारी कश्ती को तुम्हारे रिश्ते उस वक़्त भी बाँधे रखे होंगे जो पहले भी बाँधे हुए थे।
अगर तब भी तुम सब छोड़कर अपनी कश्ती निकाल लम्बे मुश्किल रास्ते पर धारा,हवा और अपने दिल के साथ बहती हुई आ जाओगी तब मेरे घर आ जाना।मैं तब भी अकेला ही मिलूँगा वहाँ तुम्हारा इंतज़ार करता।
ख़ैर ये बातें ठीक वैसे हीं हैं जैसे चाँद पर एक दिन इंसानो का घर होना।
तुम्हारा,
शैलेन्द्र भारती

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