ये जैसे जैसे वैलेंटाइन वीक आ रहा था हालत ख़राब हो रही थी।एक तो सारे प्यार वाले दिन फ़रवरी में ही कूट कूट कर भर दिया गया है पता नही क्या सोच कर किस बेवक़ूफ़ ने ये बना दिया सिर्फ़ फ़रवरी में जो करना है कर लो और अगर प्यार नही ऐक्सेप्ट हुआ तो अगले साल के फ़रवरी तक फिर इंतज़ार करो ।
महावाहियात नियम।एक तो मार्च में होने वाले इग्ज़ाम की टेन्शन थी ऊपर से ये प्यार का महीना।
जुलाई से जबसे क्लास शुरू हुआ था और हमारी आँखों आँखों वाली बात बढ़ती गयी तबसे इसी महीने का इंतज़ार कर रहा था।
एकदम कन्फ़र्म भी नही था की तुम मेरा प्यार ऐक्सेप्ट कर लोगी या नही या सिर्फ़ इसको दोस्ती तक ही समेट दोगी।एक तो चलो प्यार वार का महीना बना ही रहे थे बनाने वाले तो ये रोज डे को पहले क़्यू बना दिए।समझ में नही आ रहा था की पहले अगर रोज़ डे का विश कर दिया तो कहीं आगे का चान्स ना ख़त्म हो जाए।इसको सबसे लास्ट में रखना चाहिए था की अगर बात ना बने वेलेंटाइन तक तो पीला गुलाब दे कर फ़्रेंड्शिप का आप्शन बचा रहे।
तुम भी सोचती थी ये इधर इतना मुस्कुरा क़्यू रहा है।जब इंसान सबसे ज़्यादा डरा होता है तो वो मुस्कुरा कर दुनिया को दिखाता है कि वो डरा नही है।विश्वास ना हो तो कभी कसीनो में जाना वहाँ जो जुआरी हार रहा होगा वही सबसे ज़्यादा मुस्कुरा कर वेटर को टिप दे रहा होगा।अब गुलाब पीला हो या लाल,है तो वो गुलाब ही और बाज़ार में तो सारे इस महीने एक ही भाव में मिलते हैं बस डिपेंड देने वाले पर होता है की पीला दोस्ती या लाल प्यार के लिए।चान्स तो बाक़ियों की तरह मैंने भी पीले वाले पर ही लिया था ये सोच कर अगर ले लोगी तो आगे लाल दे दूँगा।गुलाब ना देकर मैं ये क़तई नही जताना चाहता कि मैं आशिक़ों लाइन में हूँ ही नही।क्यूँकि एक आशिक़ ही हैं जो कभी हार नही मानते।
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