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मेरी दीवाली और तुम

बढ़िया है तुम मुझसे दूर चली गयी।अब मैं साफ़ साफ़ तुम्हें देख सकता हूँ।मुझे इश्क़ है आसमान में रोशनी फैलाते पटाखो के उजाले में चमकते तुम्हारे चेहरे से।ये मैंने पहले कभी नही देखा था।
मेरी आँखे खुलती थी तो देख पाती थी हल्के भूरे रंग के रोए जो तुम्हारे कान के पास हैं वो छोटे छोटे तुम्हारे गालों के गड्ढे जो ज़मीन थे मेरे इश्क़ के।वो जो छोटा तिल था तुम्हारे चेहरे पर वो मेरे लिए चाँद की विशालता से कम नही था।मेरी पूरी ज़िंदगी उस तिल रूपी चाँद की परिक्रमा करने में ही शायद गुज़र जाती।
वो तुम्हारे गुलाबी होंठ।हाय! वो जब मुस्कान के साथ फूटते थे तो ऐसा लगता था एक साथ कितने अनार बम रंग बिरंगे रोशनी के साथ फूट पड़े हैं।
और तुम्हारी आँखे।वो तो ऐसे जैसे मानो सफ़ेद संगमरमर के फ़र्श पर गोल चरखियाँ घूम रही हैं कभी इस कोने कभी उस कोने और चरखियों के बीच में कोई आ जाता है तो वो अपना रूख मोड़ लेती हैं वैसे ही जब तुम्हारी आँखो में जैसे मेरी आँखे आकर मिल जाती थी वो शरमा कर रूख बदल लेती थी।तुम्हारी नाक का ग़ुस्सा तौबा तौबा उसके आगे तो ये सारे तेज़ पटाखे बेकार हैं।

ये सब मैं इतने क़रीब से देख रहा था कि कभी मैं इनके बीच तुमको देख ही नही पाया था।जैसे कोई चीज़ कैमेरे में ज़्यादा ज़ूम हो जाती हैं तो पूरी नही देखी जा पाती है वैसे ही तुम मेरे इतने क़रीब आ गयी थी की मैं रोज़ तुम्हारे साथ दिवाली मनाता था लेकिन अब दूर हो तो मैं अब पूरा तुम्हें देख पा रहा हूँ।
लेकिन अब रोज़ दिवाली नही अब सिर्फ़ आज दिवाली मना रहा हूँ वो भी तुमको दूर से चमकते हुए देखकर।©भारती

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