"मैं 6th स्टैंडर में थी तो स्कूलिंग के लिए अपने बुआ के घर रहने चली गयी। पापा किसान थे और बुआ शहर में रहती थी तो अच्छा एजुकेशन मिले इसके लिए माँ-पापा ने वहां भेजा। कुछ दिन तक सब कुछ नॉर्मल रहा। फिर फूफा जी शाम को पढ़ाने के लिए रूम में आते थे। बुआ किचन में खाना बनाती रहती थी। शुरू-शुरू में लगा कि गलती से फूफा जी का हाथ सट जा रहा मुझमें। धीरे-धीरे करके उनका व्यवहार बदलता गया। वो ज़बरदस्ती मुझे छूने लगे थे।
फुआ को बताना चाहा मगर डर से नहीं बता पायी। एक बार छुट्टी में घर गयी थी तो माँ को बताया जैसे-तैसे हिम्मत करके। माँ मुझे ही समझाने लगी कि "कैसे भी करके पढ़ लूँ, फूफा जी पिता समान हैं वो ऐसे नहीं करते होंगे, हम ही गलत समझ रहे हैं" और मैं नहीं आना चाह रही थी फिर भी दसवीं तक मुझे वही रहना पड़ा। उस नर्क से गुज़रना पड़ा।
अब दी मैं हॉस्टल में हूँ मगर मुझे अपने आप से, माँ से सबसे नफरत है। एक लड़का है जो मुझे मुझे शायद प्यार करता है। मेरे क्लास का ही हैं बहुत केयर भी करता है लेकिन दी मुझे लगता है कि, वो भी सिर्फ मेरे साथ फिजिकल होना चाहता है। मैं क्या करूँ दी। please help me out."
पढ़ लिए? अब सोचिये हम कितने मज़बूर होते होंगे जब किसी अजनबी को अपने मन का सबसे गहरा ज़ख्म दिखाते होंगे। ..नहीं ?
जबकि होना तो ये चाहिए कि माँ-बाप को सबसे पहले ये पता चले और वो अपने बच्चों की मदद करें। लेकिन ज्यादातर केस में यही होता है जो ऊपर किसी ने बताया।
और ऐसा नहीं है की सिर्फ ये लड़की के साथ होता है। मेरा एक दोस्त है, 'लड़का' है जिसके साथ भी किसी ने यही सब कुछ किया था। आज वो साइकाट्रिक ट्रीटमेंट ले रहा है और इस ट्रीट्मेंट की वजह कोई और नहीं उसकी माँ है।
जब उसने अपने साथ हुए हादसे का ज़िक्र अपनी माँ से किया था, तो माँ ने बोला था कि,"रात को वो सोते हुए सपना देखा होगा, किसी ने ऐसा-वैसा कुछ उसके साथ नहीं किया है" और वो बात उसके जहन में किस क़द्र रच-बस गयी होगी, इसका अंदाज़ा लगाइये आप इसी से कि वो अब रातों को सो नहीं पाता। वो हैलुशीनेशन का मरीज़ हो चुका है।
और भी न जाने कितने लोग होंगे जिनके साथ यौन-शोषण हुआ होगा वो भी अपने घर में, अपनों के द्वारा।
ये चीज़ें इतनी आसानी से न तो ख़त्म होंगी और नहीं जिनके साथ ये हुआ है वो इस भयावह सच से अपना पीछा छुड़वा पायेंगे। ऐसे में जरुरी है कि अगर आपका बच्चा आपको किसी के बारे में कुछ बता रहा हो तो प्लीज उसकी बातों को ध्यान से सुनिए। शायद वो खुल कर कह भी नहीं पा रहा होगा। उसके अंदर न जाने कितना डर, कितनी कुंठा बैठ गयी होगी। उसके एक-एक शब्द को सुन कर, उनको जोड़ कर उसके मन का हाल समझने की कोशिश कीजिये।
दूसरी अहम चीज़ प्लीज् अपने बच्चों से खुल कर बात कीजिये। उन्हें good touch-bad touch बताइए। उनको समझाइये की खेल-खेल में भी कोई उनके प्राइवेट पार्ट्स को न छु पाए। आप दुनिया के पीछे कितना भागेंगे। अपने बच्चों को अलर्ट कीजिये। जागरूक बनाइये।
अब आते हैं उस मुद्दे पर। जिनके साथ ये हो चुका है उन्हें सम्मान दीजिये। उनको बेचारा होने का अहसास कम होगा। जो आप उन्हें प्यार कर रहें है तो उन्हें वक़्त दीजिए। उनके फीलिंग्स को समझने की कोशिश कीजिये। हो सकता है कि आप प्यार से उनके लिए कुछ करें या कुछ कहें मगर वो हर्ट हो जाएँ या आपसे नाराज़ हो जाएँ। ऐसे में पेशेंस से उनको समझिये अपनी बात उनको समझाइये।
स्पेस! ये बहुत जरुरी है। उनको उनका स्पेस दीजिये। जहाँ वो खुद से खुद फिर से एक स्टैंड पर ला कर खड़ा कर पाएं। इसमें बस आप उनका सपोर्ट कीजिये। ये उनकी लड़ाई है उनके वज़ूद के लिए उनको लड़ने दीजिये। अपने प्यार को उनका स्ट्रेंथ बनाइए। उनको जकड़िये मत।
और हाँ आप में से जिनके साथ भी ऐसा कुछ हो रहा प्लीज किसी न किसी से बात कीजिये। खुल कर बात कीजिये। माँ-बाप भले नहीं समझेंगे एक बार के लिए, किसी दोस्त, किसी टीचर से बात कीजिये। जरूर आपकी बात सुनी भी जाएगी और समझी भी।
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