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आज फिर तेरी याद आई

आज फिर तेरी याद आई
अब यहाँ क्या मुँह लटकाए खड़ा है?बालकनी से सिर्फ़ ये चिल पो करता हुआ दिल्ली का ट्रैफ़िक ही दिखेगा,तेरी पुरानी मासूका नही निकल कर आ जाएगी।चल अंदर सारे दोस्त इंतज़ार कर रहे।-प्रकाश बोल कर चला गया।
मनाने रूठने के खेल में इस तरह बिछड़ जाएँगे कभी सोचा ही नही था।ख़ैर इसमें तेरा क्या क़सूर मेरी सोना ये रोग तो मैं ही जानबूझकर ख़ुद से लगाया था।हुह!-बुदबुदाते
 हुएअमित अंदर आ गया।

अरे आ गए आशिक़ साहब!
अरे मजनू कहो आशिक़ नही!
अबे हट अब तो ये देव बाबू हो गए हैं देवदास जी!
महफ़िल में दोस्तों ने अमित को देखते ही तंज कसने का सिलसिला शुरू कर दिया।
यार हद है दो साल होने को हैं इस बात को अब तो नया देख आगे लाइफ़ में।निकल यार पास्ट से।दो पेग लगाई नही कि खो गया अपनी पूजा की पूजा में।-प्रकाश लगभग डाँटते हुए बोला।
अरे वो आशिक़ ही क्या जो दो पेग पीने के बाद अपने पुराने प्यार को याद ना करे-सोनू तंज कसते हुए बोला।
जानते हो क्या दिक़्क़त है तुम लोगों के साथ की तुम लोग दूसरे के दुःख में ढाढ़स नही दोगे बल्कि उसके दुःख पर मज़े लोगे कुरेदना शुरू कर दोगे।-अमित ग़ुस्से में बोला।
अबे ओये दुखी आत्मा दुःख साले एक दो दिन या महीने भर का होता है तेरा दुःख जबसे पटना उतरा तबसे शुरू है और दो साल हो गए अभी तक चालू है।ये तेरा दुःख है या सरकार की कोई योजना जो बस चल ही रही है-सोनू अमित को जवाब देते हुए बोला।
वो गली में जब कोई कुड़ा बिनने वाला अपनी पोटली उठाए गुज़रता है तो सुस्त मरियल कुत्ते भी उसे देखकर भोकने लगते हैं ठीक वैसे ही जब आप अपनी ग़लतियों की पोटली लेकर निकलते हैं तो हर वो शख़्स जिसको आपसे कोई मतलब नही है वो भी..ख़ैर छोड़-अमित सोनू की तरफ़ देखते हुए बोला।
अरे रुक क्यूँ गया बोल ना हम सब कुत्ते हैं भोंक रहे हैं।-सोनू खड़े होते हुए अमित से बोला।
बैठ जा यार बात को घुमा मत वैसे ही बहुत परेशान हूँ आज पूजा का बर्थडे है और चाह करके भी विश नही कर पा रहा हूँ।बहुत रोकना पड़ता है ख़ुद को दूसरे के ख़ुशी के लिए।तू नही समझेगा।-अमित माहौल को नोर्मल करते हुए बोला।
तो लिख दे ना फ़ेसबूक पर अगर वो भी तुझसे अभी तक प्यार करती होगी तो प्रोफ़ायल देखने तो ज़रूर आती होगी।-प्रकाश एक नया सगुफा महफ़िल में रख दिया।
बिलकुल ठीक-सभी एक साथ बोल उठे।
वो फ़ेसबूक पर है नही मैंने कई बार सर्च किया था उसको।-अमित लगभग आइडिया को इग्नोर करते हुए बोला।
अरे भाई सरनेम बदल गया होगा अब तो उसके पति का होगा आगे नाम-सोनू मुस्कराहट के साथ बोला।
शायद! हो सकता है वैसे भी मैं कल पटना जा रहा हूँ कुछ दिन घर रहूँगा तो बेचैनी कम होगी यहाँ सब काटने को होता है।-अमित नज़रें झुकाए बोला।
महफ़िल में सन्नाटा छा गया।
अरे छोटू एक चिल्ड पानी की बोतल दियों-अमित ट्रेन में पानी बेच रहे बच्चे से बोला।
ये लो साहब पंद्रह रुपए छुट्टे दे दो-लड़का बोतल बढ़ाते हुए कहा।
ये लो अब ख़ुश-अमित पैसे देते हुए मुस्कुराया।
हाँ अब ख़ुश-लड़का आगे बढ़ते हुए बोला।
अरे सुन तुमने पानी पिया।
नही अभी अगले स्टेशन पर पियूँगा गरमी बढ़ गयी है।
सुन एक बोतल और दे दे ये पैसे ले।-अमित पैसे बढ़ाते हुए बोला।
ये लो जी।
ये बोतल तेरे लिए है पी जा गटागट गरमी बहुत है-अमित हँसते हुए बोला।
अरे नही साहब-लड़का हिचकिचाते हुए मना किया।
बोला ना जब मैंने पैसे दे दिये तो तू क्यूँ परेशान हो रहा है अब जा आगे बोगी में बेच-अमित डाँटते हुए बोला।
लड़का हँसते हुए पानी पीते निकल गया।
हम्म यही तो एक अच्छी आदत है जो पूजा ने मुझे दी।मैं कैसे अपने सामने किसी को परेशान देख सकता हूँ।वो हमेशा कहती थी अपनी ख़ुशी के लिए तो सब ज़िंदगी जीते हैं पर दूसरों की ख़ुशी के लिए कोई नही।कभी दूसरों की ख़ुशियों के लिए जी कर देखना बहुत सुकून मिलता है।
अमित ट्रेन की खिड़की से बाहर पेड़ को,पहाड़ों को,खेतों को पीछे जाते हुए देख रहा था उसका दिमाग़ भी अतीत की यादों में बहुत पीछे चला गया था।
एक्सक्यूज मी!
अचानक से आयी आवाज़ से अमित का अधपका ख़याल टूट गया।वो सकपकाते हुए बोला-'जी कहिए'
हाय! मैं संध्या।अकेले बोर हो रही थी मेरी बुक भी ख़त्म हो गयी थी देखा आप भी सामने अकेले बोर हो रहे थे तो डिस्टर्ब कर लिया।अगर कोपसेंजर अच्छा हो तो रास्ते का पता नही चलता बातों बातों में।ऐसा मैंने सुना है।हाहाहाहा।
अच्छा वैसे आपको कैसे पता मैं अच्छा हूँ या बुरा?ज्योतिषी हैं क्या आप?
हाहाहाहा अरे नही बाबा मैने तो बस गेस किया था आप अभी जब पानी वाले लड़के को पानी पिला रहे थे उस बात से।आज के ज़माने में ऐसा कोई करता है क्या?आप ही बताइए?वैसे कहाँ जा रहे हैं आप?
जी पटना।
अरे वाह ये तो मेरा शहर है।मैं भी पटना जा रही हूँ यहाँ बुआ के यहाँ आयी थी।चलो बढ़िया है ये बचे खुचे बीस घंटे भी कट जाएँगे बात-सात करते करते।
जी-अमित दुबारा खिड़की से बाहर देखने लगा।
आप जानते हैं मेरा नाम संध्या क्यूँ पड़ा?अरे आप कैसे जानेंगे मैं बताती हूँ।ये जो शाम होती है ना जो अभी है ये बहुत कुछ अपने में समेटे होती है।एकदम ठंडी सी,थोड़ा सा सुबह,थोड़ी सी रात,थोड़ा नीला आकाश तो थोड़ा नारंगी।ये शाम बहुत चंचल होती है बहुत थोड़ी देर रहती है।बहुत सुकून होता है इस शाम में।तभी तो मेरा नाम संध्या रखा गया।और आपका नाम...ओफफफ सॉरी भूल गयी आपका नाम पूछना।क्या नाम है आपका?
जी अमित।
हाहाहा लग ही रहा था जिस हिसाब से आप नापतोल कर बात कर रहे हो अमित नाम सूट करता है आप पर।अब आपको ये बताने की ज़रूरत नही पड़ेगी कि आपका नाम अमित क्यूँ रखा गया।हाहाहा।
हाहाहा सही कहा आपने ऐसा ही हूँ मैं।वैसे काफ़ी बोल लेती हैं आप।क्या पढ़ रही थीं?
ये-संध्या किताब बढ़ाते हुए बोली।
ओह शायरियाँ वो भी मोहब्बत के शायर जिगर मुरादाबादी की।
आप पढ़ते हैं शायरियाँ।मुझे तो ये लव वाली कहानियाँ शायरियाँ बहुत पसंद है।कोई शायरी सुनाइए ना।
हाहाहा मैं तो बस ऐसे ही पढ़ लेता हूँ कभी कभी।इनकी ही एक शायरी है-
न ग़रज़ किसी से न वास्ता,मुझे काम अपने ही काम से
तेरे ज़िक्र से,तेरे फ़िक्र से,तेरे याद से,तेरे नाम से।
वाह वाह! आपको तो मुँह ज़बानी याद है।अब तो हम दोस्त हो गए हैं ना क्यूँ?
अमित बस मुस्कुराया और खिड़की से बाहर देखने लगा।
आपने कोई जवाब नही दिया।हम्मम शायद आप बात करने में इंटरेस्टेड नही हैं मैं ही दिमाग़ खाए जा रही हूँ।
अरे नही ऐसी कोई बात नही है मैं कम बोलता ही हूँ ख़ुद में ही खोया हुआ ज़्यादा रहता हूँ-अमित मुस्करा कर जवाब दिया।
तो आप हाँ या ना में भी तो जवाब दे सकते थे दोस्ती का।ख़ैर कोई और शेर सुनाइए ना जिगर साहब की।प्लीज़।
हाहाहा इसमें प्लीज़ वाली क्या बात है।
"
ये इश्क़ नही आसाँ इतना समझ लीजे
इक आग का दरिया है और डूब के जाना है"
वाह वाह!आपने कभी इश्क़ किया है क्या?इफ़ यू डोंट माइंड.
किया था या हूँ पता नही नॉट श्योर।
ऐसा भी क्या कि आप ही कन्फ़र्म नही हैं।आपको लगा कभी इश्क़ आग का दरिया होता है।
लगा क्या मैं डूब ही रहा हूँ अभी तक।-अमित हल्की मुस्कान के साथ जवाब दिया और बाहर कि ओर देखने लगा।
मुझे तो नही लगा कभी या ये हो सकता है मेरा प्यार ही एकतरफ़ा हो।-संध्या अमित की तरफ़ सवालों भरी नज़र से देखते हुए बोली।
माहौल में सिर्फ़ ट्रेन की आवाज़ थी शायद किसी पुल पर से गुज़र रही थी।वैसी ही गूँज उन दोनो के ज़ेहन में भी शोर कर रही थी।
आप अचानक शांत क्यूँ हो गयी ? -इस बार अमित ने बात की पहल की।
कुछ नही कुछ पुराना जिसे मैं याद नही करना चाहती अचानक से याद आ गया।
होता है इन यादों को मुझसे अछे से कौन जानता होगा।अच्छा लगा तुमसे बात करते हुए।
आपको अब अच्छा लगा पाँच घंटे बीत जाने के बाद।इसका मतलब आप अभी तक मुझे झेल रहे थे और जब मैं ख़ुश थी अच्छे मूड में थी तब तो आपको अच्छा नही लगा जहाँ दुःख ग़म की बात शुरू हुई आपको आनंद आने लगा।क्यूँ?
हाहाहा अरे ऐसा नही है बस लगा थोड़ी देर पहले की दिल हल्का महसूस कर रहा है।दोस्ती करोगी मुझसे।
ये ऑफ़र तो मैं पहले ही दे चुकी थी लोगों का ध्यान यहाँ ग़म में डूबा हो तो कहाँ कुछ याद।
अमित हँसते हुए संध्या की तरफ़ दोस्ती का हाथ बढ़ाया।
अब आप जल्दी से अपना व्हाटसप नम्बर बताओ मैं भूलकड़ हूँ बाद में भूल जाऊँगी और फिर रोऊँगी की अच्छा दोस्त गुम गया।
अमित और संध्या दोनो टहाके लगाने लगे।अमित संध्या के मोबाइल में नम्बर डायल कर दिया।
अब सेव कर लो कहीं यहाँ से भी ग़ायब ना कर दो।
वेरी फंनी।कर लूँगी अब तो।अब तो हम दोस्त हैं तो कुछ बताओगे अपने इश्क़ के बारे में।
अर्ज़ किया है-
"
ज़ख़्म वो दिल पे लगा है कि दिखाए न बने
और चाहे कि छुपा ले तो छुपाए ना बने।"
चलिए खाना खा लेते हैं।पेट एक बार भर जाए फिर इतिहास कि किताब खोला जाएगा।
हाहाहा।ये भी ठीक है।
साढ़े तीन साल नही पूरे पौने चार साल पहले की बात है तब मैं ग्रैजूएशन सेकंड ईयर में था।अगस्त से सेशन स्टार्ट हुआ था।बात टीचेर्स डे की थी हमारे कॉलेज में इस दिन को हम सब एक गेट टूगेदर प्रोग्राम की तरह मनाते थे। फ़र्स्ट ईयर की लड़कियों का झुंड चाय की दुकान के आगे गिफ़्ट के पैकेट लिए हँसी ठहाके लगा रहा था।हम लड़कों का भी झुंड एज यूज़ूअल उन सबको ताड़ रहा था।तभी मेरी नज़र एक लड़की पर गयी।
नीली सिफ़ोन की साड़ी में उलझी हुई एक साँवली सी लड़की जो कभी अपने बालों को सम्भालती तो कभी साड़ी को।सबसे अजीब बात ये थी कि गुलाब का फूल बेचने वाली औरत से वो उसके सारे गुलाब ख़रीद रही थी।मेरी तरह वहाँ सभी लड़कियों को भी आश्चर्य हुआ लेकिन उसका वो जवाब और वो लड़की उसी पल मेरा दिल चुरा ले गए।
क्या कहा था उसने-संध्या तपाक़ से पूछी।
वही बात जब तक वो थी मेरे साथ हमेशा कहती थी 'अपनी ख़ुशी के लिए तो सब ज़िंदगी जीते हैं पर दूसरों की ख़ुशी के लिए कोई नही।कभी दूसरों की ख़ुशियों के लिए जी कर देखना बहुत सुकून मिलता है।'
ओह सो स्वीट कितनी अच्छी है वो-संध्या अपने गालों पर हाथ रखते हुए बोली।
हाँ यही उसकी एक बात तो मैं अपने साथ हमेशा लेकर चलता हूँ।
फिर आगे-संध्या बोली।
आगे फिर उस फ़ंक्शन में हमारी मुलाक़ात हुई।परिचय हुआ।मैंने बोला आप काफ़ी ख़ूबसूरत लग रही हैं और वो बोली 'हूँ नही लग रही हूँ क्यूँकि अभी मेकअप में हूँ।'
और हसने लगी।मैं थोड़ा झेप गया था उस वक़्त।लेकिन हिम्मत जुटा कर दुबारा बोला।आप वाक़ई ख़ूबसूरत लग नही रही हैं आप ख़ूबसूरत हैं।
उसके चेहरे पर अचानक गम्भीर भाव आ गए।उसकी वो आँखे मुझे अब भी हुबहू याद हैं बहुत गहरी थी उस वक़्त उसकी आँखे शायद किसी समंदर से भी गहरी।बहुत मासूमियत से उसने पूछा था 'कैसे'
इस बार मैं ठहाके लगाकर हँसा।फिर बोला अभी जब सारा गुलाब तुम ख़रीद रही थी उस वक़्त मैं वहीं खड़ा था।जिसका दिल इतना ख़ूबसूरत हो तो उससे ख़ूबसूरत इंसान धरती पर कहाँ होगा।
ये हमारी पहली मुलाक़ात थी।इसके बाद हम कई बार मिले।मिले क्या मैं ही कई बार जानबूझकर अनजाने में टकराने का नाटक किया करता था।कभी लाइब्रेरी में कभी लैब में तो कभी कैंटीन में।जब भी मिलते बात कुछ ना कुछ आगे बढ़ती।
एक बार बहुत हिम्मत करके मैंने एक लेटर लिखा।वो सारे ख़याल जो पहली बार मेरे हार्मोन में पैदा हुए थे।उस जवानी की दहलीज़ पर मेरे जीन में जो भी बदलाव महसूस किए थे जो मेरे दिमाग़ पर तो नही मेरे दिल पर काफ़ी असर कर रहे थे सब उकेर दिया मैंने उस गुलाबी फूल वाले काग़ज़ पर और दे आया उसे।
फिर उसने क्या कहा-संध्या जिज्ञासा से पूछी।
उस वक़्त वो कनख़ियो से इधर उधर देखी की कोई देख ना रहा हो फिर मेरे नोट बुक से वो लेटर अपने नोट बुक में रख ली।बोली आज घर पर मेहमान आ रहे हैं कल मैं पढ़ कर बताऊँगी।
वो रात बहुत लम्बी रात थी मेरी ज़िंदगी की।
अच्छा चलो आगे बताओ-संध्या बात को वापस पटरी पर ले कर आई।
फिर! फिर क्या बस मिलते रहे हम दोनो।उसकी जोईँट फ़ैमिली थी।रोज़ उस वक़्त कुछ ना कुछ दिक़्क़तें।मम्मी नही थी उसकी।वो दो बहने सबसे बड़ी पूजा।समझौतों से कट रही थी उसकी पारिवारिक ज़िंदगी।लेकिन इन सब के बीच वो मुझे हमेशा मोटिवेट करती थी।पगली कहती थी कि भविष्य हमारा वर्तमान बनाता है।तुम आज जो करोगे वही कल मिलेगा।
मेरे लिए नोट्स बनाना घर के पचड़ों के साथ साथ।जी जान से मदद करती थी मेरी वो हर प्रतियोगी परीक्षाओं में और मैं उसकी घर कि बातों को सुनता जो वो अपने पापा से नही कह सकती थी।बस यही समझाता कि कब तक करोगी समझौता और वो बोलती जब तक तुम क़ाबिल ना बन जाओ।
फिर तुमने उसे अपना क्यूँ नही बनाए।तुम तो सेटल हो-संध्या सुधीर से ग़ुस्से में पूछी।
नही उस वक़्त नही था।उसकी शादी तय हो गयी थी।मुझे अच्छी तरह याद है वो आख़िरी मुलाक़ात समझ में नही आ रहा था क्या बोलूँ उसको।दोनो की आँखे नम थी गला भराया हुआ था।आवाज़ नही निकल रही थी।काँपते हाथो से उसने मेरे हाथो पर हाथ रखा इतना ही बोली आख़िरी समझौता शायद करने जा रही हूँ।घर कि इज़्ज़त और छोटी के भविष्य की बात है।मैं आज जो वर्तमान में करूँगी वही भविष्य होगा।भूल जाना मुझे प्लीज़।
अमित ट्रेन के बाहर देखने लगा।रात में कहीं कहीं कुछ उजाले दिख रहे थे जैसे पूजा की यादें चमक रही हों।सिर्फ़ ट्रेन की गड़गड़ाहट की आवाज़ थी माहौल में।संध्या के पलकों तक आँसू दस्तक दे चुके थे।
सॉरी ना चाहते हुए भी आपको दर्द पहुँचाई।ना मैं सवाल पूछती ना आपको अपने अतीत में जाना पड़ता-संध्या अमित की तरफ़ देखते हुए बोली।
नही ऐसी बात नही है अच्छा किया तुमने पूछ लिया दिल हल्का हो गया।उफ़्फ़...फिर तेरी याद।-अमित माहौल की गम्भीरता को कम करते हुए बोला।
सफ़र का पता ही नही चला।बातों बातों में पटना आ गए।अच्छा एक बात पूछूँ?
हाँ पूछो।
अगर कभी पूजा मिली तो?
संध्या की बात काटते हुए अमित बोला-तो बस यही पूछूँगा कि हम दोस्त पहले थे बाद में कोई और रिश्ता था।कम से कम हाल तो बता दिया करो यार!
हाहाहा ये भी सही है भगवान करे मिले पूजा कभी तुमसे।अच्छा कल क्या कर रहे हो कहीं मिले कल अगर तुमको कोई आपत्ति ना हो तो।
अरे इसमें क्या है मिलते हैं कल शाम को गंज में।पक्का।
दोनो हाथ मिलाकर चारबाग़ स्टेशन से अलग अलग दिशाओं में चले गए।
...........
अगले दिन-
ये लो तुम्हारे लिए।
अरे रेड रोज़ तो किसी ख़ास को देते हैं-अमित बोला।
हाँ ये पटना की तरफ़ से तुम्हें।वहाँ चले नया कॉफ़ी हाउस ओपन हुआ है।
हाहाहा चलो।वैसे मुझे नयी चीज़ों से ज़्यादा अच्छी पुरानी चीजे लगती हैं।
ओह पूजा के आशिक़ दुनिया पूजा के अलावा भी है।
हाहाहा वेरी फ़नी।क्या लोगी तुम ऑर्डर करो।ये देखो कह रही थी कि दुनिया पूजा के अलावा भी है वो सामने फ़्रेंम में देखो क्या लिखा है "तुम आज जो करोगे वही कल मिलेगा" यहाँ भी पूजा की ही बात।
रियली यार।
एक मिनट मैं आया।-अमित भागते हुए रिसेप्शन की तरफ़ पहुँचा।
एक्सक्यूज मी!ये फ़ोटो में ये जो लड़की है ये कौन है।
जी सर ये हमारे रेस्ट्रोरेंट की ओनर मिस पूजा जी हैं-रिसेप्शनिस्ट ने बोला।
क्या मिस पूजा।-अमित एक बार और कन्फ़र्म करते हुए पूछा।
कहाँ मिलेंगी ये-संध्या बीच में बोल पड़ी।
इधर ऊपर केबिन में हैं।-आगे से जवाब आया।
अमित धीरे धीरे ऊपर की तरफ़ बढ़ने लगा।सामने केबिन के काँच के उस तरफ़ पूजा बैठी थी।दोनो की नज़रे टकराई।ख़ामोशी सी छा गयी।
पूजा....अमित काँपते आवाज़ में सिर्फ़ इतना ही बोल पाया।
अमित मैं वो आख़िरी दहेज का समझौता नही कर पाई।बस मै उस वक़्त यही सोची कि मैं आज जो करूँगी यही तो भविष्य होगा मेरा।बस मैं....तुम बहुत देर कर दिए आने में...पूजा अमित को रोते हुए गले लगा ली।
संध्या बग़ल में मुस्कुरा रही थी उसके आँसू आँखो से बहे जा रहे थे।ख़ुद से ही वो बोली सच में इश्क़ आग का दरिया है और डूब कर जाना है।



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