"अरे मम्मी देख लिया मिल भी लिया मेरी टाइप की नही है वो"!
उधर से मम्मी ने क्या बोला मैंने बस एक कान से सुना और दूसरे से निकाल दिया।अच्छा दिल्ली पहुँच कर फ़ोन करता हूँ इतना कह कर फ़ोन काट दिया।
लखनऊ स्टेशन आने वाला था शायद।आउटर पर ट्रेन धीरे होने लगी थी चारबाग़ के पहले गोमती नगर स्टेशन पर रुकी।मलीहाबादी आम बेचने वाला जैसे चढ़ा मैं लपक कर उसको रोक लिया कि कहीं आगे ना निकल जाए।मीठा देखते ही मेरी भूख तीनगुनी रफ़्तार पकड़ लेती है बचपन से ही।मैं आम लेने लगा तब तक ट्रेन चारबाग़ पहुँच चुकी थी यहाँ स्टॉपेज आधे घंटे का था।तभी सामने वाले बर्थ पर एक लड़की आकर बैठ गयी साथ में शायद उसके रिश्तेदार थे।मैं जोड़ गुणा करने लगा मन ही मन की मेरी लोअर बर्थ है मेरे साइड की मिडल ख़ाली है और ऊपर वाले बर्थ पर
एक अंकल जी कई घंटो से ख़रार्टे भर रहे थे कौन सा स्टेशन गया उनको उससे मतलब ही नही था।ठीक ऐसे ही सामने वाली अपर बर्थ पर भी कोई खाना खा रहा था।मतलब मेरे साइड की मिडल और सामने की लोअर और मिडल बर्थ ख़ाली थी अभी तक और ये लोग भी तीन हैं तब तो लड़की मेरे सामने रहेगी।
मैं मन ही मन ख़ुश था जैसे वीराने रेगिस्तान में मुझे पानी का तालाब मिल गया हो।मैं क़नखियो से उसको निहारने की कोशिश करने लगा।वो लम्बे बाल मुझे याद नही मैंने इतने लम्बे बाल किसी के देखे हों अभी तक।उन बालों से सब कुछ ढका हुआ था उसका लेकिन बाहर से चल रही हवा ने जब ज़ुल्फ़ें उड़ाई तो ऐसे लगा स्वर्ग से कोई परी आकर मेरे सामने बैठ गयी हो।ग़ज़ब का ओरा था उसके चेहरे पर।
मुझे तो उससे तुरंत प्यार हो गया।मुझे हमेशा से ऐसे ही प्यार होता आया है एक नज़र में ही चाहे वो एकतरफ़ा ही क्यूँ ना हो? ट्रेन सिटी बजाई और हल्के हल्के रेंगने लगी प्लेटफ़ॉर्म पर।तभी उसके साथ बैठे शायद उसके मम्मी पापा उतरने लगे और वो उनका पैर छू कर खिड़की से बाय बाय करने लगी।
अब तो मेरे बाँछे ही खिल गए मेरे सपनो की रानी ठीक मेरे सामने वाली सीट पर बैठी थी।वो भी अकेले।मैं मन ही मन ख़ुद को शबासी देने लगा।लेकिन अब बस एक दिक़्क़त थी मैं जब भी उसको देखने की कोशिश करता तो नज़रें मिल जाती और झेप कर मुझे खिड़की से बाहर देखना पड़ता था
लेकिन भगवान मेहरमान थे आज पूरे मुझ पर।उन्नाव में एक आंटी जी चढ़ गयी हमारे बोगी में।उनकी सीट मिडल वाली थी मैंने उनको अपनी खिड़की वाली सीट ऑफ़र कर दी और मैं दूसरे साइड उस लड़की के बग़ल में बैठ गया।
अब यहाँ से सब कुछ सही था खिड़की से बाहर देखने के बहाने मैं बार बार उसको देख लेता कभी कभी एक टक़ बस उसे ही देखता रहता।ये पोजीसन बिलकुल सेफ़ थी।वो अपने मोबाइल में लगी थी फ़ेसबूक खोलकर।मेरी नज़र उसके प्रोफ़ायल पर पड़ी।नाम बबिता था उसका।मैं तो उस वक़्त ख़ुशी से पागल ही हुआ जा रहा था।
सूरज भी अब अलविदा कहने वाला था रात शाम को चादर ओढ़े बस आने को थी।हल्के पीले रंग के सूट पर बने नीले नीले फूल और बाहर से आती शाम की नारंगी रोशनी में वो बला की ख़ूबसूरत लग रही थी।कितनी रूमानी शाम हो जाती है जब सारी दुनिया खिड़की से बाहर पीछे की ओर जा रही हो और आप अपने एकतरफ़ा प्यार या क्रश के साथ खिड़की से बाहर देख रहे हों।अद्भुत था ये मंज़र मेरे लिए।
तभी कानपुर स्टेशन आ गया।बाहर से चाय समोसा बेचने वाले आवाज़ देने लगे।मैं आदतन ख़ुद को रोक नही पाया।लपक कर खिड़की की ओर गया समोसे वाले को आवाज़ देने मैं अभी बोला ही था उसे की मेरा हाथ बबिता के हाथ से छू गया वो एक झटके में हाथ खींच ली और मेरे शरीर में हज़ारों वोल्ट का करेंट पास हो गया।
जी माफ़ कीजिएगा मैंने जानबूझकर नही किया।-मैंने मासूमियत भरी नज़रों से उसकी ओर देख कर बोला।
वास्तव में मैं शरीफ़ हूँ पर मैं थोड़ा और शरीफ़ बनने की कोशिश कर रहा था।पर उसने कोई जवाब नही दिया।समोसे वाला बोगी में आ गया और देने लगा।
तभी एक कोमल सी आवाज़ मेरे कानो से होते हुए सीधे दिल तक पहुँची।मैं पीछे पलट कर देखा तो बबिता थी।
सुनिए यहाँ के समोसे मत खाइए सुबह के बासी होते हैं आप चाय मँगा ले लीजिए मैं घर के बने पराँठे लाई हूँ।
मैं आँख फाड़े बस उसकी ओर देख रहा था जैसे कोमा में चला गया हूँ।आज भगवान इतने मेहरबान
उसने मेरी ओर देखा बोली आप भी पराँठे खाइए।
अचानक से सारे मूड की ऐसी तैसी हो गयी वो सामने बैठी आंटी से ये बात बोल रही थी।लेकिन जब मैं देखा तो फ़ोरमलिटी में मेरे को भी ऑफ़र कर दी।
मैंने समोसे वाले को वापस भेज दिया और बबिता ने जो पराँठे आंटी की तरफ़ से मेरी ओर बढ़ाए थे उसमें से एक छोटी बाइट ले लिया।
फिर भी मूड ठीक करते हुए मैं फिर इम्प्रेस करने के लिए बोला-वाउ बहुत यम्मी टेस्टी बनाती हैं आप पराँठा।
उसने पहले मेरी तरह घूरा फिर थोड़ी देर बाद बोली-एक बाइट में ही आप जान गए पारखी हैं वैसे ये मैंने नही मम्मी ने बनाए हैं।
जो पराँठा जुगाली करते हुए मैं चबा रहा था अचानक से रोक लिया मन ही मन सोचा ये लड़की इतना भीगा कर मारी है अब ये निवाला अंदर लूँ या बाहर।लेकिन आख़िर में ख़ुद को समझाया आशिक़ कभी बेज्जती नही महसूस करते है और निवाला अंदर की ओर ढकेल लिया।
दुबारा इश्क़ के काम पर लगते हुए बोला-आपको काफ़ी जानकारी है कानपुर स्टेशन के बारे में।
वो दुबारा घूरी और फिर खीझते हुए बोली-मैं आपके सामने ही लखनऊ से ही चढ़ी हूँ और कानपुर बग़ल में ही है अक्सर आती जाती रहती हूँ।
अबकि बार मैं ख़ुद को समझाया बेटा तेरी दाल यहाँ ना गलने वाली।
धीरे धीरे शाम गुज़र गयी और शायद बबिता के मोबाइल की बैटरी भी।
क्या आपके पास पॉवर बैंक है? यहाँ चार्जिंग पोईंट काम नही कर रहा है।-बबिता मुझे हिलाते हुए बोली।
मैं अचानक से आँख मलता उठ बैठा।पता नही कब मुझे नीद आ गयी थी जो अब पूरी तरह हवा हो गयी थी।
हाँ ना मैं सकपकाते हुए बोला।-शायद मैं इस सवाल के लिए तैयार नही था।
हाँ या ना?वैसे जाने दीजिए मैं मैनिज कर लूँगी-और बबिता खिड़की से बाहर देखने लगी।
मैं भौचका था की समझ में नही आ रहा था किस तरह मदद करूँ।
कुछ लोग खाना खाने लगे थे और कुछ सो चुके थे सामने वाली आंटी अपने मिडल बर्थ वल्लसियत के तौर पर मुझे देकर मेरे बर्थ पर सो चुकी थी।
मैं भी उनको देखता कभी तो कभी बबिता को।इन्हें देख कर दुबारा मुझे झपकी आने लगी और कब मैं बबिता के कंधे पर गिर गया पता ही नही चला।
जब ट्रेन किसी पुल से गुज़री तब मेरी आँख खुली ठंडी हवा का झोंका मेरे साँसो से टकरा रहा था और साथ में हल्के नीले रंग का उसका दुपट्टा बार बार मेरे चेहरे पर थपेड़े मार रहा था।
लेकिन ये क्या पता नही कितने सेकंड या कितने मिनट या घंटो से मैं उसके कंधे पर था लेकिन उसने उठाया नही मुझे।
ओह आप उठ गए।-बबिता ने मेरी तरफ़ देखा।
मैं कन्फ़्यूज़ था ये मैं क्या सपना देख रहा हूँ या शायद खुली आँखो की हक़ीक़त है ये।
जी माफ़ कीजिएगा मुझे पता नही चला।मैं अपना बर्थ उठा लेता हूँ आपको मेरे कारण तकलीफ़ का सामना करना पड़ा।-मैं अपने अन्दर की सारी शराफ़त जो शरीर में थोड़ी बहुत जहाँ तहाँ थी वहाँ से इकट्ठा करके बोला।मन ही मन कितने लड्डू फूट रहे थे ये मैं ही जानता था।
वो मुस्कुराई और बोली-इट्स ओके कुन्दन।अभी मुझे नीद नही आ रही है अगर आपको आ रही हो तो आप सो जाइए।
मैं आँख फाड़े ख़ुद को झकझोरते हुए उसकी तरफ़ देखते हुए पूछा-आपको मेरा नाम कैसे पता।चार्ट में देखा था क्या?
जी नही वैसे सॉरी आप सो गए थे और मैं बोर हो रही थी तो साथ में रखी आपकी डायरी हाथ लग गयी तो कुछ पन्नो को उलट पलट के पढ़ ली।-वो शैतानी भरी नज़रो से मुझे देखते हुए बोली।
मैं अवाक् था।शर्म से लाल एकदम।ऐसे महसूस हो रहा था जैसे किसी ने मुझे बिना कपड़ों के देख लिया हो।आख़िर सब कुछ तो लिखता हूँ मैं अपनी डायरी में।मैं अब उससे नज़रें नही मिला पा रहा था।ग़नीमत यही थी आज की कोई बात मैंने अभी नही लिखी थी।
अच्छा लिखते हो काफ़ी बातें अच्छी लिख रखी है तुमने।-वो बिना मेंरी ओर देखे बोली।
मैं सोच ही रहा था कि ये उसने तारीफ़ में बोला है या फिर टोंट में लेकिन वो अचानक से मुड़ी और बोली-"तनहा हूँ एकल हूँ बेचैन और उदास हूँ लेकिन फिर भी मैं अकेला नही अपने साथ खड़ा हूँ।"तुमने इँट्रो में जो ये लिखा है मेरा फ़ेवरेट है।आइ लाइक ईंट।
मैं ख़ामोश था समझ में नही आ रहा था क्या बोलूँ।कुछ देर बाद वो फिर मेरी तरफ़ मुड़ी और बोली
राइटिंग अच्छी है पर ग्रामर बहुत ख़राब पेन नही था नही तो मैं ठीक कर देती।पर्सनल लाइफ़ में भी तुम इंसान अच्छे हो पर काफ़ी सुधार कि ज़रूरत है।वैसे जैसे दिख रहे हो वैसे हो नही तुम।
मैं चुप था।ट्रेन छुकछुक करके बढ़े जा रही थी मैं अब क़सम से यही सोच रहा था जल्दी से दिल्ली आ जाए और मैं भागूँ यहाँ से।
बोले नही कुछ तुम।नीद आ रही है क्या-वो खिड़की से बाहर कि ओर देखते हुए बोली।
मैं भी देखा बाहर अँधेरा था कहीं कहीं दूर दूर पर हल्की रोशनी दिखाई दे रही थी।मैं भी अपने अन्दर कहीं कहीं पर जो हिम्मत बची दिख रही थी उन्हें जुटा कर बोला-जी जगा हूँ।आप टीचर हो क्या?
अरे हाँ!-वो चहकते हुए अचानक से मेरी ओर मुड़ी।
और तुरंत सवाल दाग़ दी- कैसे पता चला तुमको?क्या मैं बहन जी टाइप दिखती हूँ इस वजह से बोल रहे हो?
अरे नही आप डायरी में भाव कि जगह ग्रामर की ग़लतियाँ खोज कर लाई इस वजह से।वैसे आप बहन जी टाइप बिलकुल भी नही हैं बबिता जी-अब तो मैं अपने अंदर के मर्द को जगाकर एक साँस में बोल दिया।
तो आपको मेरा नाम पता है।वैसे मैं ये नही पूछूँगी की कैसे पता चला।इस तरह कि ढेरों कहनियाँ भरी पड़ी हैं आपकी डायरी में।आप एक्सपर्ट हैं इस मामले में।
उसने एक बार और भीगा कर मारा मुझे।अभी मैं पूछने वाला था कि अब हम दोस्त हो सकते हैं लेकिन ये सवाल हलक से बाहर आने के पहले ही निगल लिया मैंने।
इस दुनिया में दो तरह के लोग होते हैं एक वो होते हैं जो सीधे 'नही' कह देते हैं तो सामने वाला एक बार हर्ट होता है लेकिन एक वो भी होते हैं जो ना तो 'नही' कहते हैं और ना ही 'हाँ' कहते हैं तो सामने वाला हर मरतबा हर्ट होता है।-उसने इस बार मेरी आँखो में झाँकते हुए या समझ लो घूरते हुए बोली।
मैं एकदम से सकपका गया ऐसा लगा मैं क्लास रूम में बैठा हूँ वो भी बिना होम वर्क किए-जी मैं कुछ समझा नही??
क्या नही समझे मेरी बात या ये कि तुम दूसरी कटेगरी में हो-इस बार वो पहले से थोड़ा ज़्यादा ग़ुस्से में बोली।
मैं नज़रें चुराते हुए मासूम बच्चे सा पूछा-जी मैं अब भी आपकी बात को नही समझ पा रहा हूँ मैंने तो आपके साथ ऐसा कुछ किया नही की आप हर्ट हों।
अब वो थोड़ा ठंडी साँस लेते हुए बोली-मैं तुम्हारी माँ की बात कर रही हूँ जैसा कि तुमने डायरी में लिखा है।
मैंने कब मम्मी को हर्ट किया-इस बार मैं उसकी आँखो में आँखे डाल कर पूछा।
पढ़ाई में भी टूबलाइट थे क्या तुम?अभी तक तुमने चार लड़कियों को शादी के लिए देख रखा है और इस वक़्त भी वही करके दिल्ली लौट रहे हो।लेकिन एक का भी जवाब माँ को तुमने नही दिया ना ही उन लड़कियों को।आख़िर तुम्हें क्या हक़ है किसी को बार बार हर्ट करने का एक बार 'नही' बोल दो सबको।
मैं मन ही मन सोच रहा था इसको क्या हक़ है मुझसे ये सब पूछने और कहने का बड़ी आई।
कुछ बोलोगे या फिर इसका जवाब भी नही है तुम्हारे पास बिना बोले बात को सिर्फ़ तुम टाल सकते हो।लेकिन ज़िंदगी बार बार तुम्हें टालने का मौक़ा नही देगी कभी ना कभी तुमको जवाब ढूँढना पड़ेगा चाहे वो हाँ में हो या ना में।
क़सम से यार किस मास्टरनी के पल्ले पड़ गया मैं।जल्दी जान छूटे इससे।
मैं ख़ुद से ही बुदबुदाने लगा।
कुछ बोलना चाहते हो ऐसे मन में क्या बोल रहे हो-वो झिड़कते हुए बोली।
जी कुछ भी तो नही।वो जी मैं अब सोचूँगा इस बारे में।अभी तक कोई कमियाँ बताने वाला था नही ना-मैं गर्दन इधर उधर घुमाते हुए बोला।
यार लड़की हूर की परी है जन्नत की अप्सरा है मेरे दिल को चीरने वाली है इसकी ख़ूबसूरती इसकी आवाज़।क्या मैं इसका मास्टरनी वाला ऐटिटूड नही झेल सकता ज़िंदगी भर?मैं ख़ुद से ही सवाल कर रहा था।
लेकिन इस बार मेरे पास किसी सवाल का जवाब था वो भी बिना हर्ट किए 'हाँ' में।हाँ मैं झेल सकता हूँ इस टीचर को और ले सकता हूँ इससे नम्बर अपने प्यार की परीक्षा का।बस अब एक सवाल था क्या ये इस इग्ज़ाम में मुझे पास करेगी?
खिड़की के बाहर सूरज की किरने ललिमा लिए आने लगी थी ट्रेन की छूक छूक की आवाज़ में चिड़ियों की चहचह्हाट कि भी आवाज़ साफ़ सुनाई दे रही थी।थोड़ी देर में ट्रेन के हॉर्न के साथ स्टेशन का अनाउन्स्मेंट भी सुनाई देने लगा दिल्ली आ गया था।सब लोग अपना अपना सामान पैक करके मेरे अग़ल बग़ल आ गए थे सबको उतरना था पर मुझे नही अभी तो उसे बताना था मुझे कुछ।
आख़िर मेरी हिम्मत नही हुई सबके सामने कुछ बोलने की।वो मेरे बग़ल से अपना सामान लेकर उतरने लगी उसका दुपट्टा मेरे हाथो को छूता हुआ दूर चला गया।आख़िरकार मैं भी अपना बैग उठाए निराश मन से आगे बढ़ने लगा।
तभी पीछे से आवाज़ आयी 'कुन्दन'।मैं पलटा।
यार टूबलाइट अपनी डायरी तो लेते जाओ नही तो मेरे साथ चली जाती और तुम इस बार की कहानी कैसे लिख पाते।
वो खिलखिला कर हँसी मैं बस फ़ोर्मलिटी में मुस्कुराया।डायरी लेकर आगे बढ़ गया एक बार पलट कर देखा वो वहीं खड़ी मुस्कुरा रही थी।मैं आगे बढ़ गया और उसकी आँखो से ओझल हो गया।
डायरी लिखने के लिए जैसे ही मैं उसे खोला पहले पेज पर लिखा था-
आदमी शरीफ़ हो थोड़ा सुधार की ज़रूरत है अगर लाइफ़ टाइम के लिए टीचर चाहिए तो मेरा नम्बर 8434****84 ये है।-बबिता।
By:-Shailendra Bharti