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चिपकू

"अच्छा वहां दिल्ली जा ही रही तो उस लड़के से भी मिल लेती तेरी मौसी को बहुत पसंद है जब फोन करती है बहुत तारीफ करती है तेरी फोटो भी लड़के को भेजी थी उसे भी पसंद है बस एक बार मिलना चाहता है। तू तो जानती ही है तेरे जमाने के लड़को को बिना मिले कुछ फाइनल नहीं करते हैं। तू भी मिल लेगी तो बातचीत फिर आगे बढ़ाऊंगी।"
"मां सुनो मैं वहां संगीता की शादी में जा रही हूं एन्जॉय करने ये फालतू के चोचले मेरे माथे पर नारियल की तरह मत फोड़ो। मैं नहीं मिल रही किसी से मुझे नहीं करनी ये तुम्हारी अरेंज मैरेज वेरज। जब करनी होगी तो लव मैरेज करूंगी नहीं तो शादी ही नहीं करूंगी।"
"हाँ मैं तो जिंदगी भर बैठी रहूंगी तेरे लव होने के इंतजार में। तेरी सारी सहेलियों की शादी हो गई सब कितनी खुश हैं तेरी बची खुची आखिरी वाली सहेली संगीता ये भी तो करने जा रही है। मुझे तो वो फूटी आंख नहीं भाती थी तू ही सारा दिन उसके साथ चिपकी रहती थी पता नहीं क्या तेरे पर जादू टोना कर दी है कमीनी ने। मैं कुछ नहीं जानती अनु तू दिल्ली पहुंच के शादी में बाद जाना पहले उस लड़के से मिल लेना बस।"
"अच्छा हो गया आपका लेक्चर अब मैं जाऊं बहुत शॉपिंग करनी है मुझे।" इतना कहकर अनु निकल गई शॉपिंग के लिए।
इतना कन्फूज थी आज वो इतनी सारी शॉपिंग करनी थी पर आज बिल्कुल अकेली सी पड़ गई थी कोई नहीं था साथ जो उसकी पसंद में हामी भर पाए ट्रायल रूम के बाहर इंतजार करे उसका। संगीता थी उसकी भी शादी हो रही है आज पहली बार इतना अकेला फील कर रही थी आज पहली दफा लगा जिंदगी में कोई तो होना चाहिए। लड़के तो इतने आए पर जैसे आए वैसे ही अनु ने सबको रास्ता दिखा दिया वापसी का। कब लखनऊ का हजरतगंज बीत गया गोमती नगर आ गया पता ही नहीं चला।
अगले दिन रात की ट्रेन थी दिल्ली की पूरी रात अनु को नींद नहीं आ रही थी। अजीब सी बेचैनी थी अजीब सा अकेलापन था आज की इतनी शॉपिंग की थी पर किसी को दिखा भी नहीं सकती थी। कॉलेज में इतने दोस्त थे सब एक दूसरे का कपल बनाते थे पर अनु के दिल में कोई उतरा नहीं। पूरी रात अनु के दिमाग में यही सब चलता रहा।
"अच्छा मम्मी सुनो बोल देना उस लड़के को मिल लेगा आकर पर ये भी सुन लो अगर लव एट फर्स्ट साइट हुआ तभी उससे शादी करूंगी।नहीं तो चलता कर दूंगी उसको" इतना कहकर अनु निकल पड़ी चारबाग के लिए।
सुबह लखनऊ मेल नई दिल्ली पहुंच गई थी। अनु फ्रेश होने के लिए डोरमेट्री की तरफ बढ़ी तभी एक फोन आया- " हेल्लो मैं अभय बोल रहा हूं आपकी मम्मी का कल फोन आया था की आप सुबह पहुंच रही हैं" अभी दूसरी तरफ की बात पूरी भी नहीं हुई थी अनु बोल पड़ी "अरे! बड़े उतावले हो मिलने के लिए अभी सुबह के छ: बज रहे हैं और कोई काम वाम नहीं है क्या तुमको।" इतना कहकर अनु फोन काट दी।
थोड़ी देर बाद जब ऑटो लेने के लिए बाहर आई तो देखा 20 मिस कॉल पड़े थे फोन पर "उफ्फ यार ये तो बड़ा चेपु है तब तक फिर फोन आया इस बार अनु ने बिना दूसरी तरफ की बात सुने बिना ही बोल दी की "शाम को मिलूंगी अभी सहेली के यहां जा रही हूं।"
"टैक्सी! लाजपत नगर चलोगे। कितना लोगे?अरे 200 बनते हैं कोई नई थोड़ी न आई हूं दिल्ली में यही घर है मेरा बाहर का देखे नहीं लूटना शुरू कर दिए।मीटर ऑन कर दो खुद ही पता चल जाएगा कितना बनता है।"
टैक्सी में बैठे बैठे अनु का दिमाग बस घूमता रहा कोई किसी को क्यू चाहता है ?आखिर ऐसा क्या होता है कि कोई अचानक से पसंद आने लगता है ?ये शादी के बाद किसी अंजान के साथ कैसे खुश रहने लगते हैं सब। कैसे कोई बिना जाने किसी से शादी कर लेता है।
मैम लाजपतनगर आ गया।
"हाँ ! यही उतार दो देखो मीटर सिर्फ 190 का बना है बस तुम लोग लूटने पर तुले रहते हो। अनु भून भुनाती हुई उतर गई। टैक्सी जा चुकी थी।अनु चौराहे पर खड़ी होकर संगीता को काल करने ही जा रही थी पर उसका फोन नहीं मिल रहा था। 
"ओह्ह नो सीट मेरा फोन तो टैक्सी में ही छूट गया।" अनु खुद पर ही चिल्लाई।
अरे यार अब तो किसी का नंबर भी नहीं है मेरे पास अनु परेशान होकर सोचने लगी। तभी एक बाइक वाला उसके पास आया हेलमेट उतार कर उसको घूर घूर कर देख रहा था। तभी अनु चिल्ला कर बोली "क्या है क्या चाहिए तुमको।"
लड़का मुस्कुरा रहा था बोला -"कोई परेशानी है मैं मदद करूं आपकी।" 
जी नहीं अनु गुस्से से आंखे तरेर कर उसकी तरफ देख कर बोली। 
पर वो लड़का तो एकदम ढीठ था गया ही नहीं वहां से बगल में चाय के दुकान पर खड़ा हो गया और इधर अनु मन ही मन उसको गाली देते हुए अपना ट्रॉली बैग डगराते हुए पी सी ओ की दुकान खोजने लगी।
"हैलो मम्मी ज़रा संगीता का नम्बर देना मेरा फ़ोन टैक्सी में छूट गया है।"
"तेरा भी दिमाग़ पता नहीं कहाँ रहता है दुनिया के सारी चीजे तुझ अकेले से ही खोती है।चल लिख।और वो लड़का आया था स्टेशन मैंने उसको बोला था?"
"अरे आप उसको स्टेशन आने के लिए बोल दी थी क्या हो गया है मम्मी आपको कोई सुबह छः बजे लड़का देखता है आप भी पागल हो चुकी हैं।चलिए मैं संगीता के घर पहुँच कर अपडेट देती हूँ।"
"हेलो संगीता मैं यार लाजपत नगर मेट्रो के पास खड़ी हूँ मेरा फ़ोन टैक्सी में छूट गया है तू किसी को भेज दे मुझे लेने के लिए।"
"अरे मैंने भेजा तो था अपने कज़िन को तुझे लेने के लिए।चल तू वही रुक मैं ख़ुद आ रही हूँ।"
अनु फिर मेन रोड पर आ गयी और इधर उधर रोड पर देखने लगी तभी वो लड़का फिर उसकी तरफ़ आने लगा।अब तो अनु का दिल ज़ोर ज़ोर से धड़कने लगा था।
"हेलो मैडम आप बहुत परेशान लग रही हैं मैं आपकी मदद करूँ।"
"ओये सुन तेरी मदद रख अपनी पॉकेट में और चल निकल ले यहाँ से नहीं तो यही कुटाई शुरू कर दूँगी।"
कुछ मिनट में संगीता आ गयी वहाँ।दोनो सहेली मिलाप किए फिर अनु ने संगीता को बोला ये लड़का मुझे बहुत देर से फ़ॉलो कर रहा है।
संगीता जोर से हसने लगी और उस लड़के को पास बुलाई बोली यही तो मेरा कज़िन है अभय।इसी को तो मैंने भेजा था तुझे स्टेशन से लाने के लिए।
अनु अभय की तरफ़ देखी और झेप गयी उसकी आँखों में पछतावा साफ़ साफ़ था।पर अभय अभी भी ढीठ की तरह उसी को देख रहा था।
"तुम जब मेरे पास आए थे तभी क्यूँ नहीं बताया? "
"अरे मैं जब भी तुम्हारे पास गया तुम भड़की हुई रहती थी।मुझे कुछ आगे बोलने ही भी देती थी।"
तीनो एक साथ ठहाके लगाए और फिर घर की तरफ़ चले गए।
लेडीज़ संगीत शुरू हो चुका था सब मौज मस्ती कर रहे थे अनु ने नोटिस किया अभय एक टक उसको देख रहा है जब दोनो की नज़रें मिली अभय मुस्कुराया और अनु के पास आया।
"आप बहुत अच्छा डाँस करती हैं और पर्पल क़लर आप पर बहुत फबता है।"
"अच्छा जी और आप एक नम्बर के निठल्ले हैं आपकी बहन की शादी है और आप यहाँ मुझे ताड़ रहे हैं जाइए जाकर कुछ काम वाम कीजिए।"
"कमाल है मैं आपकी तारीफ़ कर रहा हूँ और आप मुझ पर ही चढ़ी जा रही हैं।ये लीजिए आपका मोबाइल जो टैक्सी में भूल गयी थी।"
"हाँ ठीक है लाओ।"
"अरे यार थैंक्स भी कोई शब्द दुनिया में बना है मैं तुमको तबसे देखकर यही सोच रहा था की ये रोमांटिक गानो पर कैसे डाँस कर रही है इसको तो बॉर्डर पिक्चर के गानो पर डाँस करना चाहिए।"
"हो गया तुम्हारा।तो निकल लो यहाँ से और हाँ मैंने नहीं बोला था मेरा फ़ोन लाने को तो मैं क्यूँ थैंक्स बोलूँ।"
इतना कहकर अनु मुँह बिचककार वहाँ से चली गयी।
अरे सुनो तो।ये तुम परवल की तरह क्यूँ हो?
क्या मतलब तुम्हारा परवल से? मैं परवल हूँ? हाउ डेयर यू!
और नहीं तो क्या जैसे खाते समय परवल में बीज बीच में आ जाता है वैसे ही तुम्हारा ग़ुस्सा तुम्हारी मासूमियत के बीच में आ जाता है।
वेरी फंनी हुँह।मतलब इस पूरे घर में तुमको सुबह से मैं ही मिली हूँ लाइन मारने के लिए।
और तुमको सुबह से मैं ही मिला हूँ ताड़ने के लिए जबसे आइ हो एक टक़ देखे ही जा रही हो।
"वो मैं देख रही थी की तुम तो मुझे नहीं देख रहे और" पर अनु इस बार अपनी बात पूरी नहीं कर पाई और हँसते हुए संगीता की कमरे में चली गयी जाने के पहले उसने पलट कर अभय को देखा और नज़र मिलते ही शरमा कर आँखें झुका ली।
अरे अनु इतनी खिलखिला क्यूँ रही है चिड़िया की तरह चहकते हुए आ रही है-संगीता ने अनु से पूछा।
कुछ नहीं यार एवेही तेरी शादी है खिलखिलाऊँगी नहीं बता।
बेटा ये लक्षण मेरी शादी की ख़ुशी वाले नहीं हैं सही सही बता बात क्या है संगीता ने अनु को छेड़ते हुए कहा।
कुछ नहीं बोला ना। ये तेरा भाई अभय कितना चेपू टाइप का आदमी है यार पीछे ही पड़ा है सुबह से।
फिर दोनो सहेलियाँ एक दूसरे को देखी और उनकी चंचल मुस्कान खिलखिलाहट में बदल गयी।
अगले दिन संगीता की विदाई हो गयी अनु अब फिर अकेलापन महसूस करने लगी थी।रात में उसकी लखनऊ की ट्रेन भी थी।अभय को अनु को स्टेशन छोड़ने की ज़िम्मेदारी दी गयी थी।
अनु ने सोचा जाते जाते उस लड़के से भी मिलती जाए नहीं तो लखनऊ पहुँच कर मम्मी उसका जीना हराम कर देंगी।अनु ने अपना मोबाइल निकाला पर पता नहीं क्या सोच कर वापस बैग में डाल दी।आज एक अजीब सी गुदगुदी हो रही थी उसके दिल में अभय को लेकर।हालाँकि उसकी और अभय की मुलाक़ात बातचीत ज़्यादा नहीं हुई थी अभी तक।पर फिर भी अनु का मन बार बार अभय को देखने का हो रहा था।
रात को अभय स्टेशन उसको लेकर आ गया था बर्थ के पास तक पहुँचा कर उसको एक तीन लाल गुलाब का बुके दिया।बोला 
तुम कोई भी एक ले सकती हो पीला गुलाब हमारी दोस्ती के लिए पिंक गुलाब टेक केयर के लिए और लाल गुलाब मेरा दिल अपने पास रखने के लिए।बताओ कौन सा लोगी।
अनु ने ग़ुस्से वाली नज़र का नाटक करते हुए अभय की तरफ़ देख़ी पर वो मुस्कुरा रहा था इस बार अनु अपनी हँसी नहीं रोक पायी और बोली-
पूरा चिपकू हो तुम यार।अगर मैं ये तीनो रखना चाहूँ तो।
और फिर दोनो मुस्कुरा दिए।अनु बोली अपना नम्बर मुझे दे दो और तब तक ट्रेन चल पड़ी।
अनु पूरी रात सोई नहीं बस गुलाब हाथो में लिए मन ही मन मुस्कुराती रही।अगली सुबह घर पर मम्मी उसको आते ही गले लगा ली बोली जा जल्दी से नहा ले आज घर पर पूजा करा रही हूँ।
अनु अभी आगे कुछ बोलती मम्मी ने कहा लड़का तो तेरे मौसी को पहले से ही पसंद था अब तुझे भी पसंद आ गया मेरा तो जीवन धन्य हो गया बस जल्दी से मुहूर्त निकलवा देते हैं।
अरे मम्मी क्या हो गया आपको मैं तो लड़के से मिली ही नहीं-अनु ने आश्चर्य करते हुए माँ से पूछा।
अरे तू मिली नहीं अभय आया तो था तुझे स्टेशन छोड़ने।
अनु के मुँह से बस इतना निकला वो अभय था।
तभी उसके मोबाइल पर मैसेज आया "आइ लव यू अनु पूरी ज़िंदगी ऐसे ही रहना जैसे तुम मुझे मिली थी तुम्हारा अभय"
अनु सोच में पड़ गयी की वो लव मैरिज करने जा रही है या अरेंजेड।कांपती हुई ऊँगली से उसने बस इतना मोबाइल पर टाइप कि आइ लव यू टू।
©भारती
Storybaazi by Shailendra Bharti

कहानी पढ़िए  शादी दोस्त और भूख

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