आज फिर वही हुआ। आनंद के मोबाइल की घण्टी बजी। फोन उठाया तो पता चला गलती से गलत नम्बर धर लिया था। ये स्थिति कोई नहीं थी। आनंद ने जब से अपना नया मोबाइल लिया था तभी से यह सिलसिला शुरू हो गया था। हफ्ते में दो-चार गलत नम्बरों से कॉलें आहि जाती थी। पहले-पहले जब दोस्तों ने आनंद से उसका नंम्बर पूछा तो उसने बताया 9431******
'क्या बे BSNL का नम्बर लियो है? दोस्तों ने जोर का अट्टहास लगाते हुए कहा।
'क्यूँ क्या हुआ?' आनंद ने पूछा।
'अबे शाले BSNL सरकारी लोगों की पहचान है। तुझे इसका फुलफॉर्म मालूम है की नहीं BSNL मतलब ................................................।' आनंद के दोस्तों ने उसका मज़ाक उड़ाते हुए कहा।
आनंद एक गरीब घर का अच्छा लड़का था। इंटर गाँव से पास करने के बाद उनके पापा ने उसे शहर जाकर कोई हुनर सिखने को कह रहे थे। आनंद होनहार व काम में तेज लड़का था। उसका मन आगे और पढ़ने का था। इस इस बारे में जब उसके पापा को पता चला तो वे बोले, 'बेटा, घर के हालात का तो तुझे पता ही है। कोई हुनर सीखेगा तो कमाएगा। पढ़कर क्या करेगा और पढ़ाई में भी पैसा लगेगा। तुझे तो पता पता ही है फिर पढ़ने-लिखने के बाद भी आज-कल नौकरी मिलती कहाँ है?'
आनंद की मम्मी से आनंद की उदासी देखी न गयी उन्होंने अपनी जमा पूंजी अपने शरीर से उतारकर दे दी। इस प्रकार आनंद ने किसी तरह शहर के एक कॉलेज में ग्रेजुएशन में दाखिला ले लिया। अब घर पर कुल चार प्राणी रह गए। उसकी मम्मी-पापा और आनंद की दो बहनें।
कुछ ही दिंनों में शहर की चकाचौंध से आनंद का दिमाग खुलने लगा। यार, दोस्त बढे और उसकी पढ़ाई का एक साल गुजर गया। दूसरे साल आनंद ग्रेजुएशन सेकण्ड इयर के एग्जाम देने के बाद घर आया हुआ था। उसने एक अपने पापा से मोबाइल दिलवाने को कहा। उसके पापा ने रूखी आवाज़ में कहा, 'मोबाइल क्या करेगा तू? यहाँ खाने-पिने पैसे नहीं और तुझे मोबाइल चाहिए। पीसीओ से महीने में एकाध बार फोन कर लिया कर बस....।'
आनंद उगता सूरज था। उसके सभी दोस्तों के पास एक से एक बढ़िया मोबाइल फोन्स था। आनंद ने मम्मी से कहा, 'मम्मी मेरे दोस्त कुन्दन के पास बहुत बढ़िया मोबाइल है, उससे फोटु भी खीच जाता है। उसने मामू ने उसे ख़ास दिल्ली से लाकर दिया है। मम्मी मेरे मामू मुझे कभी कुछ नहीं देते...।'
मम्मी क्या कहती, चुप रहीं और इस साल भी आनंद की मोबाइल लेने की ख्वाहिशें पूरी न हो सकी।
फाइनर इयर में पहुचते-पहुचते वह दो चार जगह ट्यूशंस पढ़ाने लगा। मोबाइल खरीद लेने की उसकी इच्छा ने उसके खर्चे कम करा दिए। पैसे जोड़-जोड़ कर धीरे-धीरे उसने मोबाइल खरीदने लायक पैसा जमा कर लिए और ग्रेजुएशन का रिजल्ट आते-आते उसने एक मोबाइल खरीद लिया। अपने नए मोबाइल के लिए अपने BSNL कंम्पनी का सिमकार्ड लिया था। उस दिन वह बहुत खुश था और तुरन्त ही उसने अपने सभी दोस्तों को अपना नम्बर बाँट दिया था। उसने सबसे पहली कॉल अपने घर पर की और बताया की उसने अपनी कमाई से एक अच्छा सा फोन खरीद है। उसकी बहनें उसका मोबाइल देखने के लिए जिद करने लगीं। उसके मम्मी-पापा भी यह सोचकर खुश हुए की चलो लड़का लाइन पे लग गया। उसने कई बार अपने मोबाइल को उलट-पलट कर देखा, कभी बटन दबाकर रिंगटोन्स सुनने लगता तो कभी गेम्स खेलने लगता। अपनी कमाई से लिए गए इस आधुनिक खिलौने से खेल-खेलकर वह प्रफुल्लि हो रहा था।
ट्यूशन्स से उसका खर्च निकल आता था इसलिए अब उसने घर से मदद लेना भी कम कर दिया था। आज दोस्तों की बात सुनकर पहले तो उसने नम्बर चेंज करने की ठानी लेकिन लगभल सभी जगह वह अपना नम्बर दे चूका था। उस समय आज की तरह MNP सेवा भी नहीं थी। खैर उसका वह नम्बर बना रहा।
ग्रेजुएशन पास करने के बाद उसने कई जगह नौकरी वगैरह के लिए हाथ-पाँव मारने शुरू कर दिए मगर बेरोजगारी के बाद उसने कई जगह नौकरी वगैरह के लिए हाथ-पाँव मरने शुरू कर दिए एमजीआर बेरोजगारी के इस दौर में उसे आसानी से नौकरी कहाँ मिलनी थी। कुछ समय बाद आनंद ने मार्किट में पुस्तकों की एक दुकान में एक छोटी-मोटी नौकरी कर ली जिससे उसके रूम का किराया एंव उसका एनी खर्च निकल आता था। आनंद के कमरे से पुस्तकों की दुकान लगभग चार किलोमीटर की दुरी पर थी। पैसे बचाने के लिए वह अपने कमरे से दुकान तक पैदल ही जाता था। उसके पास इतने पैसे न थे की वह कोई गाड़ी खरीद सकता मगर उसके मन में तमाम बढ़िया गाड़ियां की तस्वीरें छाई रहती। सड़क पर एक से अच्छी गाड़िया को देखकर उसका मन मचल उठता। वह सोचता की काश वह भी एक गाड़ी सकता जिस पर वह अपनी मम्मी-पापा को बैठाकर पुरे शहर भर की सैर कराता।
आनंद का तेज दिमाग धीरे-धीरे कुंद होता जा रहा था। घर से पहली बार शहर आते वक़्त उसकी मम्मी ने एक बात बताई थी "की की बेटा कुछ भी हो हर वक़्त यह जरूर याद रखना की भगवान हमें देखता है उसकी नजरों से कहीं कुछ भी छिपा नहीं है। ये दुनिया और इस दुनियां के तमाम मसले उसी के बनाए हुए है। बुरे वक़्त में घबराना नहीं और अच्छे वक़्त में उसे भूलना नहीं।" मगर अब वह पूरी तरह से मनिनाइडेड बन चूका था। वह सोचता था की शायद आज के दौर में जिसके पास पैसा है वह खुश है। उसने गरीबी के दश को झेला था जिसका जिम्मेदार वह उपरवाले को मानता था और इसी वजह से वह पूजा भी नहीं करता था।