उस दिन पहले पहल ब्यूटी-पार्लर वाली को मेरे घर बुलाया गया था। माँ को विश्वास था कि ब्यूटी-पार्लर वाली मुझे सुंदर बना देगी। मेरे परिजन मुझे सुंदर बनाकर वर –पक्ष वालो के सामने प्रस्तुत करने वाले थे। वे लोग मेरा निरीक्षण –परिक्षण कर देखते की उनके परिवार की बहू बनने योग्य हूँ या नहीं। जिस लड़के से मेरी शहदी प्रस्तावित थी उसका नाम आनंद था। वह M.B.A. कर रहा था I
माटी की मूरत बनाकर ब्यूटी पार्लर वाली मुझे संवारने लगी। उसी समय मेरे भीतर एक संशय धधक रहा था। क्या ब्यूटी पार्लर वाली मेरे काले रंग को गोरब्ना देगी क्या यह मुझे नाटी को लंबी बना देगी माँ मेरे लिए हमेशा हाई –हिल सैडल खरीदती है। जब यह सैडल मेरी लबाई नहीं बढ़ा पाई तो ब्यूटी पार्लर वाली मुझे गोरा कैसे बना देगी मेरे रंग और कद से मेरे पिता के लिय समस्या खड़ी हो रही थीI मेरी शादी के लिए रिस्ता तय करने में दोनों तत्व बाधक थे। मै बी.कोम क्र चुकी थी। लेकिन दुल्हन का पात्रता के लिए मात्र शिक्षा ही नही सौदर्य भी आवश्यक था।
पापा ने जब पहले पहल आनंद को देखा तो उनकी आशा पल्लवित हो उठी कि यह काले रंग का युवक शादी के लिए तैयार हो जाएगा। लेकिन मेरे भीतर क्या हो रहा था मैने उससे पहले आनंद को देखा नही था। मेरी सामाजिक संस्कृति उसकी अनुमति ही मुझे नही देती। मुझे तो वही पसंद करना था जो मम्मी-पापा को पसंद हो। मै तो मात्र एक वस्तु हूँ। वर पक्ष वाले अपनी उपयोगिता के आधार पर निर्णय लेगे के मै उनके उपयोग के लायक हूँ या नही। जब वर पक्ष वाले मुझे देखने आएगे तब मै अपनी सातवी पास माँ के आदेशानुसार छुई-मुई बन जाऊगी। पलके निचे कर धीमी आवाज में बात करुगी। चरण छू कर उन्हें प्रणाम करुगी। लेकिन उतना कुछ करने के बाद भी क्या वे एक काली नाटी लड़की को अपनी बहू बनाने के लिए तैयार हो जाएगे आनंद का काला रन तो मम्मी-पापा की उम्मीद को परवान चढ़ा रहा था।
निरीक्षण के लिए होटल का कमरा लिया था। पापा फल’मिठाई और उन लोगो के लिए ने कपड़े लेकर गए थे। मुझे सजा-धजाकर भाड़े की गाड़ी में बैठाकर होटल ले जाया गया।
आनंद के परिजनों के आते ही मैने उन सबो के पैर छुए। आशीष पाई। फिर मै सोनपुर मेले की बिकाऊ मैना बन गई। काली मैना। मेरे भीतर भी एक उमंग उठ रही थी। लड़के का रंग काला है तो लोगो को मेरे रंग। पर आपति नही होगी। ये लोग मेरी शिक्षा – दीक्षाके बारे में कुछ पूछेगे। किंतु शीघ्र ही चेहरे पर मै उनकी निगाहों के ताप को महसूसने लगी। मेरे चेहरे पर उनकी दृष्टी किसी बेल्दिग प्लांट के गैस सिलिंडर से निकलती आग हो उठी। पर पसीना आ गया। पसीना से ब्यूटी पार्लर वाली व्दारा लगाया रंग धुलने लगा। उन्होंने मेरा नाम पूछा। उम्र और शिक्षा के बारे में पूछा। एक महिला लगातार मेरे पैरों की तरफ देख रही थी। मेरा हाई हिल सैंडल दिख गया। मैं खड़ी हुई। मुझे चप्पल निकालने के लिए कहा। मैंने चप्पल निकालने. बी•कॉम की डिग्री मेरे बैग में छटपटा रही थी। कॉलेज की संगीत प्रतियोगिता में प्रथम आने का मेडल बैग में ही कसमसा रहा था। महिला बोली- "हाई हिल सैंडल पहनकर आई है। लंबाई तो पाँच फिट से भी कम है।" उस सबों के चेहरों का रंग बदलने लगा। पापा ने उनके सामने फल और मिठाई की तश्तरियां बढ़ाई। उन लोगों ने कुछ भी नहीं खाया। वे उठकर जाने लगे। पापा ने पूछा- "आप लोगों ने कोई आदेश नहीं दिया।"
"विचार कर बाद में बताएंगे।" उनके उत्तर में बेरुखी थी।
"मिठाई तो खाइये।"
"अभी नहीं।"
मैंने आनंद को देखो वह मुझे लगातार देखे जा रहा था। अब मेरी आँखों में न तो आनंद के प्रति कोई आशक्ति थी और न ही विरक्ति। तो यही है वह काला युवक जिसके परिजनों को लम्बी लड़की चाहिए।
"कुछ तो कहने की कृपा की जय।" मेरे पापा ने फिर कहा। आनंद के पिता बोले- "खानदान दूसरे के खानदान से बनता है और बिगड़ता भी है। लड़की काली और नाटी है। अगली पीढ़ी खराब हो जाएगा। मुझे सोचने का समय दीजिए।
" वे लोग उठकर कमरे से बाहर हो गए। आनंद ने जाते-जाते फिर मुझे देखा। मैंने भी उसे देखा। उसकी आँखों में उपेक्षा और मेरी आँखों में आक्रोश था। आनंद इस आक्रोश से अवगत हो गया। वह परिजनों के पीछे-पीछे कमरे से निकल गया।
मेरी पीड़ा मुझे भीतर तक कंपा रही थी। कह नहीं सकती की उस समय मेरी पीड़ा बड़ी थी या आक्रोश बड़ा था। किन्तु पराजिता का आक्रोश स्वयं उसके लिए दुःख पैदा करता है। मैंने पापा को देखा। वे तश्तरियों से मिठाइयां उठाकर पैकेट में पुनः बंद कर रहे थे। उनकी पीड़ा का आकलन कौन करेगा? क्या है अपराध उनका? यही न की उन्होंने आज से पच्चीस वर्ष पहले एक काली नाटी लड़की से शादी कर ली थी। यही न की उन्होंने एक काली-नाटी लड़की को पैदा भी किया था।
हम सभी घर लौट गए। रात में कोई नहीं सो सका।
इसके बाद अगले सात वर्षो की अवधि में मुझे बीसों बार विभिन्न वर पक्ष के परिजनों को इसी रूप में दिखाया जाता रहा। हर बार ब्यूटी पार्लर वाली आती थी। हर बार वह मुझे सुंदर बनाने का प्रयास करती। हर बार उसे पारिश्रमिक की राशि दी जाती। हर बार मुझे देखने आने वाले लोग मिठाई खाए बिना चले जाते। हर बार वे बाद में सुचना देने की बात कहकर चले जाते। हर बार वे बाद में सुचना देने की बात कहकर जाते। सुचना कहीं से नहीं मिली। उस बीच मेरी तीन-तीन सहेलियों की शादी हो गई।उनके नन्हे-नन्हे बच्चे हैं। पीटीआई और बच्चों के साथ जब कभी वे मायके आती हैं तो मुझसे जरूर मिलती हैं। उन्हें देखकर मेरे भीतर वैसा ही दाम्पत्य जीवन जीने की मर रही लालसा बिलखने लगती है। किसने छीन लिया मेरी ज़िंदगी का आगत सुख। मेरा आक्रोश उन लोगों के प्रति तीव्र हो जाता जो मुझे अस्वीकार कर रहे थे। किन्तु प्रशांत महासागर की तलहटी में विस्फोटित ज्वालामुखी का लावा कभी महासागर की ऊपरी सतह तक नहीं पहुंच सकता। इसके बावजूद मेरी आँखों में एक अनन्त प्रतीक्षा कायम थी।
कभी-कभी मैं सोचने लगती की अप्राप्त की प्राप्ति की ललक कहीं मुझे जीवन के अन्य सुख से वंचित तो नहीं करने लगी है। मैं इस कामना से मुक्ति क्यों नहीं पा सकती। सच तो यह है की मेरी सहेली का दाम्पत्य और गृहस्त जीवन-सुख मेरी कामना की आग में घी डालने लगा था। दांपत्य जीवन के सुख को मैं नारी-जीवन की पूर्णता मानती थी। शायद अब भी मेरी सोच वही है। इस सत्य को मैं नकार नहीं सकती। हाँ, निरन्तर अस्वीकृति का दंश मेरे भीतर एक प्रतिहिंसात्मक आक्रोश को जन्म दे चूका था।