ख़त्म हो गई सदभावना, गुम हो गया सुविचारों का दौर,
धोखे और भ्रष्टाचार की लूट मची है चहुं ओर,
नहीं देश की फ़िक्र किसी को नहीं किसी का कोई उसूल,
ईमानदारी घोल कर पी गए सब करने लगे पैसा वसूल,
दौलत की चमक से धुँधला गई आंखें,
भ्रष्टाचारियों के खेमे में अगर कोई और झांके,
जुटा पाए जो हिम्मत कुछ बोल जाने की,
डराकर ज़ुबान काट दी जाती है उस दीवाने की,
भ्रष्टाचारियों ने इस दीवार को इतना मज़बूत बनाया है,
कि हर वर्ग ने इसे अपना हथियार बनाया है,
आसानी से काम निकालने का ज़रिया बनाया है,
किसी ने उपहार बताकर इसे और आसान बनाया है,
हो गया रक्त इतना विषैला कि शुद्ध हो नहीं पाता,
चाहे कोई फरिश्ता आये इसे बदल नहीं अब पाता,
अब तो डर लगता है रगों में बहते हुए इस रक्त से,
आने वाली संतानों को कैसे बचायेंगे इस रोग से,
कसूर नहीं होगा उनका हमें ही निर्णय लेना है,
आने वाली पीढ़ियों को भेंट स्वरूप हमें क्या देना है,
रोक लो इस छूत की बीमारी को यह सब नष्ट कर देगी,
पीढ़ी दर पीढ़ी किसी को भी नहीं छोड़ेगी,
बह रहा है जो रक्त रगों में उसे शुद्ध करना होगा,
भ्रष्टाचार की दीमक से देश को मुक्त करना होगा,
स्वच्छता अभियान की ही तरह,
भ्रष्टाचार मुक्त भारत,
का सपना साकार करना होगा और
हर देशवासी को इस प्रयास में अपना हाथ बंटाना होगा।